लिखना मेरा शौक रहा है, और उसे शौक से ऊपजा था ये ब्लॉग।नये साल पर हमेशा कुछ ना कुछ लिखता रहा।
पर पिछले साल की त्रासदी ने मुझे कुछ लिखने लायक ही नहीं छोड़ा।जीवन में कुछ घटनाएं ऐसी होती हैं जो बहुत कुछ बदल जाती है।जीने का नजरिया,तौर तरीका और भी बहुत कुछ...
जीवन चलने का नाम है।जीवन पथ पर जो भी जैसे भी मोड़ आए सबको पार करते हंसते रोते आगे बढ़ना ही जिंदगी है।
ज़ेहन में बार बार एक गीत आता है।शायद सफर फिल्म का गीत है...
नदिया चले चले रे धारा
चंदा चले चले रे तारा....
तुझको चलना होगा...तुझको चलना होगा...
इस गीत की पंक्तियों में जीवन दर्शन समाया सा लगता है।
जीवन कहीं भी ठहरता नहीं है
आंधी से तूफां से डरता नहीं है
तू ना चलेगा तो चल देंगी राहें
मंजिल को तरसेंगी तेरी निग़ाहें...
तुझको चलना होगा...
बस इसी के धुन में चले जा रहे हैं। वक्त के साथ बदलना कभी कभी इंसान की मजबूरी हो जाता है।वो चाहकर भी खुद को हमेशा एक सा नहीं रख सकता। कुछ कमियां जीवन भर पूरी नहीं होती। लेकिन इंसान को कमियों के साथ भी जीना है..आगे बढ़ना है।नये साल या पुराने साल का उमंग उत्साह अब गुदगुदाता नहीं है।आज सोच लिया था कि कुछ लिखना ही है...सो लिख डाला। क्या पता फिर से मेरा लिखना चालू हो जाए।डाॅ. हरिवंशराय बच्चन जी ने भी लिखा है कमियों के साथ जीना सिखाते हुए...
अंबर के आनन को देखो
कितने इसके तारे टूटे
कितने इसके प्यारे छूटे
पर बोलो टूटे तारों पर
कब अंबर शोक मनाता है...
जो बीत गई सो बात गई