बुधवार, 30 जुलाई 2025

एक्सीडेंटल टूर राजस्थान

 






जीवन भी एक यात्रा है।हर जीव जिसने जन्म लिया है वो इस मार्ग के पथिक है। जीवन की यात्रा किस्मत और कर्म के वाहन पर सुख और दुख के पडा़वों को पार कर अंततः मृत्यु के गंतव्य पर पहुंचकर विराम पाती है। मनुष्य का जीवन तो वैसे भी बहुत कठिन होता है।ऐसा अब तक के अपने नीज अनुभव के आधार पर कह सकता हूं।

साल 2022 मेरे जीवन के कठिनतम वर्षों में एक साल था। दुर्भाग्यपूर्ण। राजस्थान वैभव और वीरता की भूमि है। वहां जाने की बहुत इच्छा थी। लेकिन जिन परिस्थितियों में राजस्थान की यात्रा करनी पड़ी उसकी कड़वाहटें आज भी महसूस करता हूं।

एक मेडिकल इमरजेंसी में मुझे और मेरे एक अनुज को राजस्थान की यात्रा करनी पड़ी।वो मेरे गुरु पुत्र थे। दोनों एक ही दर्द से गुजर रहे थे। दोनों की मंजिल एक थी। फिर क्या था... ईश्वर को स्मरण करके ठान लिया लक्ष्य तक पहुंचने का। लक्ष्य तक पहुंचना आसान नहीं था। राजस्थान छत्तीसगढ़ से लगभग 1200 किमी दूर था। सड़क मार्ग से होकर जाना दुष्कर हो सकता था। प्लानिंग थी कि रेल से जाएं। लेकिन जो वक्त हमने चुना था वो शीतकालीन छुट्टियां मनाने का समय था।दूर दूर तक टिकट मिलने की कोई संभावना नहीं थी। फिर हमने तय किया कि सड़क मार्ग से ही जायेंगे।पर समस्या ये आई कि किनके साथ जायेंगे?

दोनों के दोनों लंबी दूरी की यात्रा के अभ्यस्त नहीं थे।मुझे तो 100 किमी बंद गाड़ी के सफर में 2 बार उल्टी हो जाती थी। लेकिन जब तकलीफ बड़ी हो तो छोटी-छोटी तकलीफ का ध्यान नहीं रहता।भाई से चर्चा हुआ तो बताए कि उनके फूफाजी अपने एक राजस्थानी दोस्त के साथ हमको राजस्थान लेकर जायेंगे। फूफाजी से मेरा कोई परिचय नहीं था। मुझे लगा कि कोई नौजवान व्यक्ति होंगे। छत्तीसगढ़ से बाहर किसी राज्य में जाने के लिए लंबी सड़क मार्ग से यात्रा का ये मेरा पहला अनुभव था। हालांकि मेरे साथ जो भाई था वो पहले भी उज्जैन तक आ चुका था।

खैर हमने ठान लिया कि राह की सारी परेशानी को देखा जायेगा और यात्रा की रुपरेखा तैयार हुआ।चार दिन की यात्रा थी। पहले दिन 24 घंटे का लगातार सफर और दूसरे दिन गंतव्य तक पहुंचना। तीसरे दिन अपना काम करवाना और उसी रात फिर से वापसी के लिए निकलना।

22 दिसंबर को तड़के सवेरे हम लोग बस से बालोद पहुंचे। वहां फूफाजी अपनी गाडी,ड्राइवर और राजस्थानी मित्र के साथ खड़े थे।जब फूफाजी को देखा तो वे लगभग 55 साल के मैच्योर दमदार लंबी कदकाठी और रौबदार व्यक्ति थे। उन्होंने आते ही पहले ढाबा में खाना खाने के लिए कहा। उन्होंने पहले से ही चार दिन की यात्रा के लिए दो कार्टून पानी बाटल,गरम कपड़े वगैरह रख लिए थे। गाड़ी में बैठते ही उन्होंने कहा कि कोई संकोच नहीं करना है।जब जैसी जरुरत महसूस हो बोल देना।फिर हमारी गाड़ी चल पड़ी।उनके साथ एक अनुभवी ड्राइवर और था।नाम था मिष्टी... हालांकि वो बंगाली हिन्दू था लेकिन उसका झुकाव इस्लाम की ओर ज्यादा था ये चार दिन की यात्रा के दौरान पता चला।

बालोद से निकली गाड़ी राजनांदगांव होकर महाराष्ट्र की सीमा पर पहुंची तो महाराष्ट्र पुलिस ने स्वागत किया। उन्होंने भरसक प्रयास किया कि गाड़ी में कुछ कागजी कमियां मिले तो औपचारिक लेन देन की रस्म पूरी हो सके। लेकिन फूफाजी ट्रांसपोर्ट के व्यापार से जुड़े अनुभवी आदमी थे। कोई कमी नहीं रखते थे।सारे नियमों से अप टू डेट।ऐसी पुलिसिया पड़ताल रास्ते भर होती रही और उन्होंने कई बार ड्यूटी में लगे कर्मचारियों को यात्रियों को अनावश्यक रोककर समय खराब करने के लिए लताड़ भी लगाई। महाराष्ट्र होते हुए दोपहर 2 बजे के लगभग हम लोग एमपी पहुंचे। गाड़ी हाईवे पर नानस्टाप दौड़ रही थी। भोजन का समय हो चुका था इसलिए फूफाजी ने एक जगह ढाबा देखकर गाड़ी रोकी और वहां भोजन करवाया।पेमेंट भी खुद ही किया।हम दोनों को कहीं पर भी पेमेंट नहीं करने का हिदायत दिया और गाड़ी फिर दौड़ पड़ी।स्पीड कितना रहा होगा नहीं जानता।पर शाम को 7 बजे हमलोग भोपाल के भोजताल के पास से गुजर रहे थे। गाड़ी में बैठे उनके राजस्थानी मित्र जिनका नाम रामदेव था उनके साथ बातचीत चल रही थी। इसलिए जानकारी भी मिल रही थी।उनके बातचीत से मालूम पड़ रहा था कि सुबह-सुबह हम लोग राजस्थान पहुंच जायेंगे।

मानसिक तनाव से जूझते मेरे मस्तिष्क में कोई उत्सुकता या रोमांच नहीं था। केवल लक्ष्य था।राघौगढ़ से झालावाड़ होकर राजस्थान जाने का रुट था।रात 10 बजे के लगभग उसी मार्ग के एक ढाबे में दाल-बाटी खाई।फ्रेश हुए और फिर निकल पड़े।इस बीच घर से समय-समय पर फोन आता रहा और मैं लोकेशन बताता रहा। लगभग-लगभग 2 बजे रात तक मैं जगता रहा।फिर थकान से आंख लग गई।सवेरे साढ़े चार बजे आंख फिर खुली तो रामदेव भैय्या ने बताया कि हम लोग कोटा पहुंच गए हैं। लगभग 3 घंटा की यात्रा के बाद हमलोग अजमेर हाइवे पर थे।सिक्स लाइन हाइवे के पहिली बार दर्शन हुए।ठंड भी हाड़ जमा देने वाली थी। वहां एक चाय टपरी देखकर गाड़ी रोकी और दुकानदार से पानी मांगकर ब्रश वगैरह किया।ठंड बहुत थी। गर्मागर्म चाय का कप हाथ पर गिर गया लेकिन जलन का एहसास नहीं हुआ।हाड़ कंपाती जाड़े में चाय का घूंट गले के अंदर जाकर गर्माहट दे रही थी।चाय पीने के बाद हमने अपने गंतव्य की राह पकड़ी। रामदेव भैय्या के मार्गदर्शन और फूफाजी के अनुभवी ड्राइविंग के कारण हम एक बार भी कहीं नहीं भटके। सुबह-सुबह साढ़े आठ बजे हम अपने गंतव्य तक पहुंच गए थे। लेकिन हमारा काम उस दिन नहीं था।अगले दिन था। इसलिए वहां से आवश्यक जानकारी लेकर एक होटल में रुक गए। होटल में नास्ता और भोजन की सुविधा थी।नहा धोकर भोजन किया और सो गए।बिना रुके हमने सफर किया था इसलिए थकान स्वाभाविक थी।दोपहर में लगभग साढ़े तीन बजे आंख खुली तो फूफाजी ने बताया कि वहां से लगभग डेढ़ सौ किमी की दूरी पर भगवान कृष्ण का एक प्रसिद्ध मंदिर है। यहां तक आए हैं तो चलो दर्शन कर ही लेते हैं कहा और तैयार होने के लिए बोले।फिर चार बजे चित्तौड़गढ़ से आगे मंडफिया में भगवान कृष्ण के एक अलौकिक मंदिर पहुंचे। जहां भगवान श्रीकृष्ण सांवलिया सेठ के नाम से पूजे जाते हैं।


मेवाड़ क्षेत्र के श्रद्धालुओं सहित यह मंदिर कृष्ण प्रेमियों के लिए अद्भुत है। रामदेव भैय्या बता रहे थे कि मीराबाई इसी क्षेत्र की रहने वाली थी और ये वही मूर्ति है जो वो हमेशा अपने साथ लेकर चलती थी।इस मंदिर के साथ व्यापारियों का अद्भुत जुड़ाव है।बताते हैं कि श्री सांवलिया सेठ को अनेक व्यापारी अपने व्यापार का हिस्सेदार बनाते हैं और आय का निश्चित हिस्सा मंदिर के दानपेटी में जमा करते हैं। मंदिर भव्य है।लाल पत्थर से बने मंदिर की भव्यता देखते ही बनती है।...शेष अगले पोस्ट में 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक्सीडेंटल टूर राजस्थान

  जीवन भी एक यात्रा है।हर जीव जिसने जन्म लिया है वो इस मार्ग के पथिक है। जीवन की यात्रा किस्मत और कर्म के वाहन पर सुख और दुख के पडा़वों को प...