गुरुवार, 28 नवंबर 2019

जीवन चलने का नाम..

नमस्कार मित्रों!बहुत दिनों तक मैं लेखन गतिविधियों से दूर रहा। इसलिए नया पोस्ट नहीं डाल पाया।
    जिंदगी संघर्ष का नाम है।सबको अपने जीवन पथ पर अनेक कठिनाइयों का सामना करते हुए वांछित लक्ष्य की प्राप्ति के लिए अग्रसर होना ही पड़ता है। परिस्थितियां ज्यादातर हमारे अनुकूल नहीं होती।हमें ही परिस्थितियों को अनुकूल बनाते ही हुए सार्थक जीवन जीने का प्रयास करना चाहिए।हमारी कई पौराणिक कथाओं में उनके महानायकों ने प्रतिकूल परिस्थितियों को वश में करके अपने लक्ष्य को प्राप्त किया है। उन्होंने हमारी आपकी तरह परिस्थितियां खराब होने का रोना नहीं रोया और न ही परिस्थितियों के अनुकूल होने की प्रतीक्षा की। उन्होंने अपने साहस और संघर्ष से विपरीत परिस्थितियों पर विजय प्राप्त किया।
       भारतीय जनमानस में राम और कृष्ण के प्रति अगाध आस्था है।और दोनों का जीवन चरित संघर्ष की दास्तान है। हालांकि इनका जन्म धन-धान्य से परिपूर्ण राजकुल में हुआ था और इनको किसी भी प्रकार की भौतिक संपदा की कमी नहीं थी। लेकिन परिस्थितियां इनके लिए भी कम कष्टदायी नहीं थी। कृष्ण का जन्म राजपुत्र होने के बावजूद कारागार में हुआ था जबकि राम को युवावस्था में सुखमय गृहस्थ जीवन के बजाय वनवास और पत्नी वियोग का दारूण दुख सहना पड़ा। कृष्ण को बाल्यकाल मे क्षण- प्रतिक्षण मौत की अनेक बाधाओं से जूझना पड़ा जबकि राम को बियाबान वन में हिंसक जंगली पशुओं और मौसम की प्रतिकूल परिस्थितियों में दुर्दिन का सामना करना पड़ा। लेकिन उन्होंने जीवन संघर्ष से हार नहीं मानी।
   कृष्ण ने राजपुत्र होने के बाद भी सामान्य जीवन व्यतीत करते हुए गौचारण का कार्य किया।राम ने स्थानीय संसाधन और वन्य जीवों के सहयोग से त्रिलोक विजयी रावण जैसे असुर को मारने का अद्भुत कार्य किया। उन्होंने अपने जीवन में आनेवाले कठिनाइयों के सामने घुटने नहीं टेके अपितु पूर्ण साहस और धैर्य के साथ उनका सामना किया। उन्होंने कभी भी अपनी राजकीय शक्ति का प्रयोग अपना हित साधने में नहीं किया। परिस्थितियां मनुष्य के धैर्य और साहस की परीक्षा लेती हैं।आपने चिडियों को घोसला बनाते देखा होगा।घोसला के निर्माण में बहुत श्रम भी करती हैं नन्ही चिड़िया। लेकिन कभी कभी उसके घोसले को प्रकृति नेस्तनाबूद कर देती हैं।आंधी,तूफान और बारिश जैसी विपदाएं उनके घोसले को तबाह कर देती है। लेकिन इसके बावजूद वो हार नहीं मानती और न ही अफसोस करने में वक्त गंवाती है।वो पुनः तिनका तिनका इकट्ठा करके अपने घोसले के नवनिर्माण में जूट जाती हैं।जब छोटी सी चिड़िया विषम परिस्थितियों से नहीं घबरातीं तो हम मनुष्य होकर भी केवल सुख की कामना क्यों करते हैं?तकलीफों से दूर भागने के लिए इतना उतावलापन क्यो?क्या हम एक चिड़िया से भी गए गुजरे हैं?
  मानता हूं जिंदगी में कभी कभी ऐसी परिस्थितियां भी आती है जब धैर्य साथ छोड़ देता है और मन का विश्वास डगमगाने लगता है।हम निराशा के गहरे सागर में डूबने वाले होते हैं तो हमें अपने आराध्य राम और कृष्ण के जीवन चरित्र का स्मरण करना चाहिए। हमारे आसपास भी कई ऐसे लोग आपको अवश्य मिलेंगे जिन्होंने प्रतिकूल परिस्थितियों के सामने आत्मसमर्पण नहीं किया बल्कि उसका डटकर सामना किया और उस पर जीत हासिल किया। हमारे पास ही के कस्बे में एक भाई हैं जो एक पैर गंवाने के बाद भी अपने परिवार के साथ खुशहाल जिन्दगी जी रहे हैं।उनके पैर गंवाने की कहानी और जीवन संघर्ष की गाथा प्रेरणास्पद है।
  उनका किस्सा कुछ यूं है।जिनका वर्णन मैंने ऊपर किया है वो भाई साहब गाय बैल चराने जंगल जाते थे।ज्यादा पढे लिखे नहीं थे और गाय बैल चराना उनका पुश्तैनी काम है।एक दिन जब वो गाय बैल चरा रहे थे तभी उसे एक जहरीले सांप ने काट लिया।उसने सांप को देख लिया और तत्काल उसी पल उस सांप को अपने टंगिया से(जो वो हमेशा पेड़ों की टहनियां काटने के लिए रखते थे)काट दिया।अब उसके सामने जीवन और मौत के बीच एक को चुनने की समस्या आ गई।अगर वो पीड़ा की परवाह करते तो मौत साक्षात खड़ी थी और पीड़ा बर्दाश्त करने का साहस नहीं हो रहा था। अंततः उसने जीवनरक्षा के लिए भीषण दर्द का सामना करने का निर्णय लिया और अपनी अंगुली जिसको सांप ने काटा था उसको अपने टंगिया से काट दिया।दर्द की अधिकता और खून बहने के कारण उस पर बेहोशी छाने लगी। तक उसके साथ गए अन्य साथी भी आ गए और उसको बेहोशी की हालत में अस्पताल में भर्ती कराया। कुछ दिन उपचार के बाद उसकी अस्पताल से छुट्टी मिल गया।घाव भरा नहीं था लेकिन जानकारी के अभाव और कुछ लापरवाही के कारण दो महिने के भीतर ही उसके पांव में गैंगरिन हो गया और उसके पांव को काटना पड़ा।छ:महिने की देखभाल के बाद वो अपने एक पैर को खोने के बाद वापस दुनिया के साथ तालमेल बिठाने के लिए तैयार खड़ा था। परिस्थिति पूरी तरह प्रतिकूल हो गई थी।अब वो अपना पुश्तैनी काम नहीं कर सकता था और भारी काम करने के लिए उसके पैर नहीं थे। लेकिन उसने साहस नहीं खोया।अपने अदम्य इच्छाशक्ति के बल पर उसने अपनी शारीरिक कमजोरी को बौना साबित किया।उसने एक पैर से ही सायकल चलाने का अभ्यास किया और उसमें पूरी तरह पारंगत होने के बाद वो आज सायकल से लकड़ी भी ले आता है।अपने घर के पास एक छोटा सा होटल भी खोल लिया हैं जहां वो बैसाखी की सहायता से अपना काम पूरी तन्मयता से करता है।और अपने छोटे से परिवार को खुशहाल जिन्दगी दे रहा है।
उनके साहस को सलाम!!तो मित्रों,प्रतिकूल परिस्थितियों के सामने झुके नहीं और न ही अनुकूल परिस्थितियों के आने का इंतजार करें।बल्कि उसका डटकर सामना करें.....
रीझे"देवनाथ"
टेंगनाबासा(छुरा)



दिन चारी मइहरवा में....सुरता स्व.मिथलेश सर के

  लोकगीतों की अपनी एक अलग मिठास होती है।बिना संगीत के भी लोकगीत मन मोह लेता है,और परंपरागत वाद्य यंत्रों की संगत हो जाए, फिर क्या कहने!! आज ...