शनिवार, 28 सितंबर 2024

पुरी धाम की ओर





 जय जगन्नाथ!!!

कल विश्व पर्यटन दिवस था।ये पोस्ट मैं कल ही डालने वाला था लेकिन कुछ कारण से नहीं हो पाया। पर्यटन का मतलब होता है घूमना।नये नये जगहों की सैर।ये स्थान धार्मिक स्थल भी हो सकते हैं या प्राकृतिक या कृत्रिम भी। कुछ लोग कुदरत की बनाई चीजें देखकर आनंदित होते हैं तो कुछ लोग मानव निर्मित कलाकृति देखकर खुश हो जाते हैं।वैसे मैं स्वभाव से ज्यादा घुमक्कड़ नहीं हूं। ज्यादातर घर में रहकर ही समय गुजारता हूं। मेरे जैसे प्राणियों के लिए छत्तीसगढ़ी में एक शब्द है घरखुसरा।बस वही समझिए।
मेरी हार्दिक इच्छा थी कि भगवान जगन्नाथ स्वामी के दर्शन से ही घुमक्कड़ी की शुरुआत करुं।लेकिन ये संभव नहीं हो पाया। परिस्थितियां कुछ ऐसी बनी की ये संभव नहीं हो पाया।साल 2022-2023 मेरे जीवन में कड़वी यादों का साक्षी बना।मन व्यथित और दुखी था। कड़वी यादों से इतर मन बहलाने के लिए और मानसिक शांति की चाह में मैं भगवान जगन्नाथ के शरण में जाने के लिए आतुर था।यात्रा के लिए परिचितों से चर्चा किया तो संयोग से मुझे 5 साथियों का सहयोग भी पुरी यात्रा के लिए मिल गया।सड़क मार्ग से नीजी वाहन पर जाने का प्लान बना। जितने लोग जा रहे थे उसमें  से तीन लोगों  ने पूर्व में जगन्नाथ जी का दर्शन कर लिया था।तीन लोगों के लिए पहला अवसर था।छुरा से 5 लोग थे एक सर राजिम से थे।उनको पहले कई बार पुरी यात्रा का अवसर मिला था पर किन्हीं कारणों से नहीं जा सके थे, इसलिए वे भी लालायित थे। राजिम से महाडिक सर के आने के बाद हम छः लोग 16 मई की शाम को मित्र की गाड़ी में सड़क मार्ग से चल पड़े।निवास से निकलने के बाद 5 किमी ही आए थे कि गाड़ी का एक पहिया पंचर हो गया। लेकिन किसी ने इस घटना को नकरात्मक रुप से नहीं लिया। सबने एक स्वर में कहा कि चलो संकट टला और अब आगे कि यात्रा निर्विघ्न संपन्न होगी।हम छः लोग साथ चले थे उसमें से 4 कुशल ड्राइवर थे इसलिए कोई दिक्कत होने की संभावना नहीं थी लंबी यात्रा के दौरान।खरियार रोड नुआपड़ा मार्ग से होकर जाने का निर्णय लिया और चल पड़े।रास्ते में कोमाखान से होते हुए नर्रा गांव पहुंचे तब हमारे ग्रुप के महाडिक सर ने बताया कि महान मराठा शासक बिंबाजी भोंसले की समाधि इसी ग्राम में है। इतिहासकार बताते हैं कि बिंबाजी भोंसले मराठा शासन के दौरान यहां के सर्वेसर्वा थे। धार्मिक प्रवृत्ति के व्यक्ति थे। रतनपुर के पास रामटेकरी में इन्होंने विशाल राम मंदिर बनवाया था। गाड़ी के संग मराठा शासन की उपलब्धि के बारे में बातें चलती रही।महाडिक सर स्वयं मराठा हैं अतः इस चर्चा के दौरान उनकी गर्वानुभूति स्वाभाविक थी।गर्मी का महीना था और शाम ढलने लगी थी। हम लोग छत्तीसगढ़ की सीमा को पार कर ओड़िशा की सीमा को स्पर्श करने वाले थे।तभी घनश्याम ने कहा कि चलो कुछ नास्ता कर लें। फिर उसने घर से लाया चना मुरमुरा और पोहे का जबरदस्त भेल तैयार किया। घनश्याम हमारी टीम के भोजन प्रभारी थे। उसके साथ रहो तो कभी भूखे नहीं सकते।बाहर निकलने के बाद वो भरपूर स्टाक लेकर चलते है खाने पीने की चीजों का।हल्का नास्ता के बाद निकल पड़े ओडिशा की ओर... भगवान जगन्नाथ स्वामी की दर्शन अभिलाषा लिए... शेष अगले पोस्ट में 

1 टिप्पणी:

बेनामी ने कहा…

पुरानी यादें ताजा हो गई, मन प्रफुल्लित हो गया।अब शेष वृतांत का इंतजार है।

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