आज फिर से नए साल का आगाज़ हुआ।अनवरत चलते समय के प्रवाह में एक वर्ष और जुड़ गया। वैश्विक रूप से इसी नए साल को मान्यता प्राप्त है।वैसे अलग-अलग धर्मों और जातियों में भी अपने-अपने नववर्ष को मनाने का चलन है।हमारे भारतीय पंचांग के अनुसार नववर्ष का आरंभ चैत्र महिने से होता है।उस समय को भी हम उत्सव के रूप में मनाते हैं।
खैर,हम इस मुद्दे से अलग हटते हैं और बात करते हैं बाहें पसारे खड़े नववर्ष के स्वागत की।हर नया साल उम्मीदों की एक बड़ी झोली लेकर आता है।ऐसा लगता है कि हमारे मानस में पैठी तमाम इच्छाओं की पूर्ति नए साल में जरूर हो जाएगी।हर साल का बदलता कैलेंडर मन में उम्मीद की एक लौ जरूर जलाती है।लेकिन साल पूरा होते-होते आधे-अधूरे सपनों के साथ ही साल बीत जाता है।हम हर पर्व में संकल्प लेते हैं।अपने भीतर की फलां बुराई को दूर करुंगा,समय की कद्र करूंगा,रिश्तों को सम्मान दूंगा आदि-आदि इत्यादि।लेकिन कुछ महीनों के बाद वही ढाक के तीन पात।
हम अपने संकल्पों पर अडिग नहीं रह पाते।जीवन में आनेवाले समय का उतार-चढ़ाव हमें या तो अपने संकल्पों को भूलने के लिए बाध्य कर देते हैं या हम स्वमेव ही अपनी तकलीफों का हवाला देते हुए हथियार डाल देते हैं।नया साल किसी के लिए कैलेंडर मात्र के बदलाव का नाम है तो किसी के लिए कुछ नया कर गुजरने का बेहतरीन मौका।ये आपको तय करना होगा कि आप नया साल को किस तरह देखते हैं।जन्म लेने के बाद आदमी की जिन्दगी केवल घटती है, बढ़ती नहीं।एक समय के बाद शरीर पर उम्र का प्रभाव हावी होने लगता है।ये नैसर्गिक है,कोई इससे बच नहीं सकता।तो जब तक शरीर फिट है,सारे सिस्टम सही सलामत है तो कोशिश बदलाव की होनी चाहिए।बदलाव स्वयं के अंदर,अपने आसपास और समाज में भी किया जा सकता है।एक अच्छा प्रयास तमाम मुश्किलों के बाद भी सफल अवश्य होता है।
दुनिया आज पैसे बनाने की अंधी दौड़ में भागी जा रही है।पैसे बनाने की अंधी हवस आज लोगों से क्या नहीं करा रही है?समाज में फैली हैवानियत,भ्रष्टाचार और दरिंदगी इसी का ही तो परिणाम है।इस दौड़ से बाहर आने की छोटी कोशिश जरूर होनी चाहिए।स्वयं को, परिवार को और समाज को समय देने की आज बेहद जरूरत है। रिश्तों को सम्मान देने की जरूरत है।हमारे अपनों को उनकी छोटी-मोटी बुराइयों के साथ सहजता से स्वीकारने की जरूरत है।सबका अपना-अपना दुनिया को देखने का नजरिया होता है।हम आखिर क्यों किसी को अपने जैसा बनाने के लिए बाध्य करते हैं।हम क्यों सिर्फ अपने अहम की तुष्टि के लिए किसी की जीवनशैली को बाधित करते हैं। मैं खुद भी अपनी इसी आदत के कारण अपनों के साथ एक अच्छा समय गुजारने से वंचित हुआ हूं।जीवन के कुछ थपेड़ों से मुझे ज्ञात हुआ है कि सबसे पहले आप अपने शरीर का ध्यान रखें।फिर परिवार का ध्यान रखें उसके बाद अपने आसपास और समाज को वक्त दें। भौतिक सामग्री के संचय में कोई सुख नहीं मिलता।एक छोटा सा उदाहरण दूंगा।याद कीजिए जब आपका मूड बेहद खराब होता है तो क्या आपको अपना मनपसंद मोबाइल, पसंदीदा गाना,टीवी का कोई फेवरेट कार्यक्रम राहत देता है।आपका जवाब संभवत: नहीं होगा।ये सही बात है।जब हम किसी परेशानी से व्यथित होते हैं तो हमें अपने आसपास के भौतिक संसाधनों के प्रयोग से सुकुन नहीं मिलता।किसी अपने के दो साहस भरे , उम्मीद भरे बोल ही हमें राहत देती है।तो मित्रो! नववर्ष की इस बेला का स्वागत अपनों के साथ करें।
नववर्ष की मंगल कामनाएं!!!
खैर,हम इस मुद्दे से अलग हटते हैं और बात करते हैं बाहें पसारे खड़े नववर्ष के स्वागत की।हर नया साल उम्मीदों की एक बड़ी झोली लेकर आता है।ऐसा लगता है कि हमारे मानस में पैठी तमाम इच्छाओं की पूर्ति नए साल में जरूर हो जाएगी।हर साल का बदलता कैलेंडर मन में उम्मीद की एक लौ जरूर जलाती है।लेकिन साल पूरा होते-होते आधे-अधूरे सपनों के साथ ही साल बीत जाता है।हम हर पर्व में संकल्प लेते हैं।अपने भीतर की फलां बुराई को दूर करुंगा,समय की कद्र करूंगा,रिश्तों को सम्मान दूंगा आदि-आदि इत्यादि।लेकिन कुछ महीनों के बाद वही ढाक के तीन पात।
हम अपने संकल्पों पर अडिग नहीं रह पाते।जीवन में आनेवाले समय का उतार-चढ़ाव हमें या तो अपने संकल्पों को भूलने के लिए बाध्य कर देते हैं या हम स्वमेव ही अपनी तकलीफों का हवाला देते हुए हथियार डाल देते हैं।नया साल किसी के लिए कैलेंडर मात्र के बदलाव का नाम है तो किसी के लिए कुछ नया कर गुजरने का बेहतरीन मौका।ये आपको तय करना होगा कि आप नया साल को किस तरह देखते हैं।जन्म लेने के बाद आदमी की जिन्दगी केवल घटती है, बढ़ती नहीं।एक समय के बाद शरीर पर उम्र का प्रभाव हावी होने लगता है।ये नैसर्गिक है,कोई इससे बच नहीं सकता।तो जब तक शरीर फिट है,सारे सिस्टम सही सलामत है तो कोशिश बदलाव की होनी चाहिए।बदलाव स्वयं के अंदर,अपने आसपास और समाज में भी किया जा सकता है।एक अच्छा प्रयास तमाम मुश्किलों के बाद भी सफल अवश्य होता है।
दुनिया आज पैसे बनाने की अंधी दौड़ में भागी जा रही है।पैसे बनाने की अंधी हवस आज लोगों से क्या नहीं करा रही है?समाज में फैली हैवानियत,भ्रष्टाचार और दरिंदगी इसी का ही तो परिणाम है।इस दौड़ से बाहर आने की छोटी कोशिश जरूर होनी चाहिए।स्वयं को, परिवार को और समाज को समय देने की आज बेहद जरूरत है। रिश्तों को सम्मान देने की जरूरत है।हमारे अपनों को उनकी छोटी-मोटी बुराइयों के साथ सहजता से स्वीकारने की जरूरत है।सबका अपना-अपना दुनिया को देखने का नजरिया होता है।हम आखिर क्यों किसी को अपने जैसा बनाने के लिए बाध्य करते हैं।हम क्यों सिर्फ अपने अहम की तुष्टि के लिए किसी की जीवनशैली को बाधित करते हैं। मैं खुद भी अपनी इसी आदत के कारण अपनों के साथ एक अच्छा समय गुजारने से वंचित हुआ हूं।जीवन के कुछ थपेड़ों से मुझे ज्ञात हुआ है कि सबसे पहले आप अपने शरीर का ध्यान रखें।फिर परिवार का ध्यान रखें उसके बाद अपने आसपास और समाज को वक्त दें। भौतिक सामग्री के संचय में कोई सुख नहीं मिलता।एक छोटा सा उदाहरण दूंगा।याद कीजिए जब आपका मूड बेहद खराब होता है तो क्या आपको अपना मनपसंद मोबाइल, पसंदीदा गाना,टीवी का कोई फेवरेट कार्यक्रम राहत देता है।आपका जवाब संभवत: नहीं होगा।ये सही बात है।जब हम किसी परेशानी से व्यथित होते हैं तो हमें अपने आसपास के भौतिक संसाधनों के प्रयोग से सुकुन नहीं मिलता।किसी अपने के दो साहस भरे , उम्मीद भरे बोल ही हमें राहत देती है।तो मित्रो! नववर्ष की इस बेला का स्वागत अपनों के साथ करें।
नववर्ष की मंगल कामनाएं!!!