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खल्लारी माता प्राकट्य स्थल पर |
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प्रवेश द्वार |
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डोंगा पथरा |
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पहाड़ी सौंदर्य |
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भीम चूल्हा |
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भीम पांव |
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मां गंगा का आवाहन करते शिव जी |
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पुराने मार्ग की सीढ़ियां |
जैसा कि नाम से ही विदित होता है कि इस स्थान का संबंध पांच पांडवों में से एक भीम से है।
महाभारत के गाथानुसार जब पांडवों को वनवास मिला था तब वे वन-वन भटकते यहां पहुंचे थे।यह क्षेत्र उस समय राक्षसराज हिडिम्बासुर का क्षेत्र माना जाता था।वह अपनी बहन हिडिम्बा(हिरबिची कैना)के साथ रहता था।जब पांडव यहां से गुजर रहे थे,तब वे यहां की पहाड़ी पर रात्रि विश्राम के लिए रूके।जब भीम के चारों भाई और उनकी माता सो रही थीं तब भीम जागकर पहरा दे रहे थे।उन सबको हिडिंबा ने देखा और वह भीम को देखकर उस पर मोहित हो गई।इधर हिडिम्बासुर के नाकों तक मानव गंध पहुंच चुकी थी।वह उन सबको मारने के उद्देश्य से आया और भीम के साथ लड़ते लड़ते मारा गया।जब हिडिम्बासुर मारा गया तो हिडिम्बा ने माता कुंती के सामने अपनी व्यथा रखी।तब उन्होंने भीम को उसके साथ गंधर्व विवाह की अनुमति दे दी। फिर उन्होंने यहां की पहाड़ियों में बहुत समय व्यतीत किया।माना जाता है कि ये सभी घटनाएं भीमखोज के आसपास ही घटित हुई हैं।
खल्लारी माता की पहाड़ी पर भीम चूल्हा और भीम पांव आज भी देखे जा सकते हैं। यहां पर भीम का चीलम,हंडा और ढेलवा(झूला) होने की बात भी बताई जाती है।
बचपन से इस स्थान के बारे में सुनता रहा हूं,तो बड़ी तीव्र इच्छा और जिज्ञासा थी भीम पांव देखने की।कल्पना करता था कि भीम के बड़े-बड़े पांव के निशान होंगे।पर जब आके देखा तो मायूसी हाथ लगी। मैंने वहां मानव पांव की आकृति सोचा था,पर वहां केवल गोलाकार गड्ढे थे।बाद में पता चला कि ये गड्ढे असल में भीम पांव के ही है पर सामान्य रुप से धरती में चलते समय पड़े पगचिह्न नहीं है बल्कि हिडिम्बासुर से लड़ते समय चट्टानों पर धंसे भीम के पांव है।तब जाकर ठीक लगा।पांव के आकार से भीम की शारीरिक कद काठी का अनुमान लगाया जा सकता है।भीम विशालकाय शरीरधारी था।उसके शारीरिक मजबूती और सुदृढ़ डील-डौल के कारण ही आज भी सामान्य से अधिक ऊंचाई वाले मजबूत और तगड़े लोगों के लिए भीमकाय शब्द का प्रयोग किया जाता है।
भीमखोज की पहाड़ी पर भीमचूल्हा भी मौजूद है, जिसमें भीम ने अपनी माता और भाईयों के लिए भोजन बनाया था।भीम बलिष्ठ होने के साथ-साथ एक कुशल रसोईया था,जो उसके कीचक वध वाले कहानी से ज्ञात होता है।
भीमखोज के आसपास का इलाका पूरा भीममय है।खल्लारी पहाड़ी से कुछ किलोमीटर की दूरी पर एक और चिकनी पहाड़ी है,जो खल्लारी माता के मंदिर से स्पष्ट दिखाई देता है। वर्तमान में उस पर भीमसेन की विशाल प्रतिमा बनाई गई है। ग्रामीणों के बताए अनुसार मान्यता है कि ये पहाड़ी भीम के चीलम से निकली राख से बनी है।भीम अपने चीलम का राख यहीं झडाते थे जिसके कारण इस पहाड़ी के आसपास की वनस्पतियां जल गई और राख का एक पहाड़ बन गया। मजेदार बात है कि पहाड़ी में सचमुच पेड़ पौधे नहीं दिखाई देते।
खल्लारी माता पहाड़ी के आसपास बहुत से तालाब दिखाई देते हैं।माना जाता है कि पहले यहां छः आगर छः कोरी तालाब थे।क्या समझे?
छः आगर छः कोरी का मतलब होता है 126,कोरी मतलब बीस और आगर मतलब एक्स्ट्रा(अधिक) तो छः कोरी मतलब 120 और उसमें छः अधिक माने 126;पुराने समय की गणित और गिनती प्रणाली भी अद्भुत थी।
हालांकि ऐतिहासिक विद्वानों के अनुसार यहां लाक्षागृह होने की संभावना भी बताई जाती है। लेकिन इस ऐतिहासिक धरोहर की प्रशासनिक उपेक्षा से प्राय:सभी दस्तावेज धीरे धीरे नष्ट होते जा रहे हैं। पहाड़ी पर मौजूद ऐतिहासिक धरोहरों की जानकारी के लिए तख्ती तक नहीं लगाई गई है।
यहीं पहाड़ी पर डोंगा पथरा भी मौजूद है।जिसे बताया जाता है कि भीम ने कभी उस पत्थर को दो छोटे पत्थरों के ऊपर रख दिया है।देखने से ऐसा लगता है कि अब गिरेगा कि तब गिरेगा।पर अद्भुत संतुलन साधे ये चट्टान हजारों साल से पहाड़ी पर आज भी जस की तस मौजूद है।
पहाड़ी पर पर्यटकों के आकर्षण के लिए बनाई गई मूर्तियां भी स्थानुकुल प्रतीत नहीं होती।जिस डोंगा पत्थर को भीम ने रखा था वहां पर श्रीराम,जानकी,लक्ष्मण और केंवट की मूर्तियां बनाई गई है।जब ये स्थान महाभारत कालीन घटनाओं से जुड़ा है तो यहां पर रामायण के चरित्र की मूर्ति थोड़ी असहज लगती है।उसी प्रकार माता गंगा का आवाहन करते शिवजी और भागीरथी की मूर्ति भी चट्टान पर बनाई गई है।प्राय: धार्मिक स्थलों पर देखता हूं कि निर्माण के कुछ सालों तक इन मूर्तियों के रंग रोगन पर विशेष ध्यान दिया जाता है।बाद में प्राय:ऐसी मूर्तियां उपेक्षित पड़ी रहती हैं।किसी मूर्ति की उंगली टूटी है तो किसी का आंख गायब। धार्मिक स्थलों पर देवी-देवताओं की ऐसी मूर्तियां बनाने पर रोक लगनी चाहिए। सिर्फ लोगों के आकर्षण के लिए हम अपने ही देवी-देवताओं का मजाक बनाने लगे हैं।
पंचमुखी हनुमानजी की मूर्ति भी यहां देखा जा सकता है।खल्लारी माता के दर्शन के लिए आठ सौ से अधिक सीढ़ियों की चढ़ाई चढ़नी पड़ती है,जो उम्रदराज लोगों के लिए कष्टसाध्य कार्य है। हालांकि अब सीढ़ी के ऊपर टीनशैड लगाया गया है,जिससे चढ़ाई आरामदायक हो गई है।बैठने के लिए बीच-बीच में जगह भी है।
पुरानी सीढ़ी भी पहाड़ी पर मौजूद है,जो एकदम खड़ी है।उस सीढ़ी पर चलते समय थोड़ी सी असावधानी भी खतरनाक हो सकती है।माता का मंदिर बहुत सुंदर बन पड़ा है,जो बहुत विशाल है।पहले मंदिर एकदम छोटा-सा था।
भक्तों को माता के दर्शन सहजता से होते हैं। मूर्ति की फोटो खींचना वर्तमान में सुरक्षा कारणों से प्रतिबंधित है।माता के दर्शन पश्चात लौटते समय प्रवेश द्वार पर एक सूरदास माता के भजन गा रहा था... पहाड़ों वाली मैय्या तेरा अजब सजा दरबार।उनके गीत को सुनकर श्रद्धालुगण उनको सिक्के देकर पुण्य की पूंजी लूट रहे थे।उसको थोड़ी देर देखने के बाद पता चला कि वो लोगों के पदचाप सुनकर समझ जाता है कि लोग आ रहे हैं।तब वो भजन गाने लगता है।जैसे ही लोगों की आवाजाही बंद होती है,वो गीत गाना बंद कर देता था।मेरे साथ मेरा भांजा था।उसने बताया कि वो सूरदास पैसे देने पर फरमाइशी गीत भी गाता है।पिछली बार उससे नागिन धुन बजवाया था।लोग किसी की दीनता और अक्षमता का भी मजाक बनाने लगे हैं। भविष्य में मैंने उसको ऐसा करने के लिए मना किया।
पहाड़ी पर स्थानीय लोग प्रसाद, श्रृंगार सामग्री,खिलौने आदि बेचने का व्यवसाय करते हैं।उनसे चर्चा करने पर उन्होंने ने बताया कि इस साल की दोनों नवरात्रि पर होनेवाला व्यापार कोरोना महामारी की भेंट चढ़ गई।
पहाड़ी पर दर्शन के दौरान खरोरा से आये एक दिव्यांग दंपति से मुलाकात हुई।वे अपने दो बच्चों के साथ आए थे।उनको देखकर सुखद अनुभूति हुई। दोनों पति-पत्नी पोलियो ग्रस्त थे और बच्चे स्वस्थ थे।उनको देखकर लगा कि उनका परिवार सुखी था। शारीरिक अक्षमता किसी की खुशियों में बाधक नहीं बनती,उनको देखकर लगा। भगवान की लीला पर भी आश्चर्य हुआ।कहा जाता है कि जोड़ियां ऊपर से बनकर आती है।तो क्या दिव्यांग के लिए भगवान ने दिव्यांग जोड़ीदार बनाया है?
खल्लारी दर्शन के दौरान मुझे एक बात अच्छी लगी कि ना तो यहां पंडित दर्शन के दौरान छीना-झपटी करते हैं और ना ही व्यापारी पूजन सामग्री खरीदने के लिए मजबूर!!कभी अवसर मिले तो आइयेगा जरुर!
बोलो खल्लारी मातेश्वरी की जय!
बोलो वीर भीमसेन महराज की जय!!