कुछ महीनों से ब्लॉग लेखन बंद था।कुछ भी लिखने का मन नहीं कर रहा था।वैसे मेरे लेख को पसंद करने वाले लोग सतत मेरा उत्साह वर्धन ब्लाग पर आकर या मेरे निजी नंबर से संपर्क कर करते रहते हैं,जो मेरे ब्लाग लेखन में निरंतरता के लिए टानिक का काम करता है।लेखन का कार्य भी दिमाग के ऊपर आश्रित होता है।कभी कभी लिखने के लिए जगह और विषय मायने नहीं रखती, धाराप्रवाह मन का आवेग शब्दों में उतर जाता है और कभी कभी पूरी तैयारी के साथ भी लिखने के लिए बैठो तो कुछ भी नहीं सूझता।मेरे मित्रों ने लेखन के लिए सदैव मेरा उत्साह बढ़ाया है।उनका सतत सहयोग भी मुझे मिलता है।मैं मित्रों को परेशान करना अपना जन्मसिद्ध अधिकार समझता हूं और जब वे सीधे नहीं मानते तो बरपेली(जबरदस्ती)उनको सहयोग देने के लिए बाध्य करता हूं।
पिछले दिनों एक परिचित से मुलाकात हुई। पिछले वर्ष वे अकस्मात पक्षाघात के शिकार हुए और उसके चेहरे के दांये भाग और हाथ को लकवा मार गया था। लेकिन अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति और प्राकृतिक उपचार की ताकत से अब अच्छी हालत में हैं।दैनिक दिनचर्या को स्वयं कर लेते हैं अकेले साइकिल चला पा रहे हैं।हालांकि मुंह में थोड़ा टेढ़ा पन आ गया है और बातचीत में हकलाहट अभी भी होती है।फिर भी उनकी बातें समझ में आ जाती है।साल भर पहले तक हट्टे कट्टे इंसान थे पर लकवे ने उनको कमजोर कर दिया है।पहले भारी भरकम बोझ को यूं ही चुटकियों में फेंक देते थे।पेशे से मजदूर है।
पिछले साल अचानक जब किसी से उसके साथ घटी घटना के बारे में सुना तो यकीन करना मुश्किल था मेरे लिए,महज अडतीस साल के गबरू जवान को लकवा मार जाने की बात मेरे लिए अविश्वसनीय था। लेकिन वर्तमान में स्वास्थ्यगत घटनाओं के संबंध में कुछ भी नहीं कहा जा सकता।किसी के साथ कभी भी और कुछ भी घटित हो सकता है।
मुलाकात होने पर मैंने उनसे हालचाल पूछा और इधर उधर की बातें हुईं।इसी दौरान उनके साथ घटी घटना का प्रसंग चल पड़ा तो उसने अपने साथ घटी घटना का कारण अत्यधिक मानसिक तनाव को बताया।
कभी कभी मनुष्य के जीवन में ऐसे अवसर भी आते हैं जब वह किसी निर्णय पर नहीं पहुंच पाता और इसी अनिश्चय की स्थिति में तनाव ग्रस्त हो जाता है। उनके साथ भी कुछ ऐसा ही घटित हुआ था।किस्सा कुछ यूं था कि उनके पहले से ही दो संतान थी और तीसरे की आने की संभावना निर्मित हो गई थी।इसी बात पर उनका अपने मां-बाप से मतभेद हो गया।उनके मां-बाप तीसरी संतान लाने के लिए सहमत नहीं थे और वो(जिनके बारे में लिख रहा हूं) गर्भपात के पक्ष में नहीं थे। वैसे आर्थिक दृष्टिकोण से उनका परिवार सक्षम था और उनकी श्रीमती को भी कोई स्वास्थ्यगत परेशानी नहीं थी।कुल मिलाकर कहा जाए तो ऐसा कोई कारण नहीं था,जिसके आधार पर तीसरी संतान ना लाया जा सके।
तीसरी संतान के जन्म के विषय में उनका अपने माता-पिता से मतभेद हो गया।उनके माता-पिता ने उनको जमकर खरी खोटी सुनाई।
खैर,इस संबंध में जब उन्होंने मुझे बताया तो मेरे हिसाब से उनके मां-बाप का निर्णय वहां पर गलत था। चूंकि हमारे यहां मां बाप की आज्ञा को सर माथे से लगाने की परंपरा रही है और वह भी आज्ञाकारी पुत्र था इसलिए अपने मां-बाप की आज्ञा का उल्लंघन करने का साहस नहीं जुटा पाया और उसके दिमाग में एक द्वंद्व महीनों चलता रहा और दुर्भाग्य से एक दिन वह तनाव के कारण पक्षाघात का शिकार हो गया।समय रहते उनको उचित इलाज मिल गया तो आज अच्छी स्थिति में है। हालांकि इस सही गलत फैसले के कारण बहुत बड़ी धनराशि व्यय हुआ और मानसिक प्रताड़ना सबने झेली वो अतिरिक्त था।
उनकी किस्मत अच्छी रही और वह काफी हद तक स्वस्थ हैं और अपनी पूर्व दिनचर्या में लौटने की उनकी कोशिश जारी है। माता-पिता का सम्मान सदैव किया जाना चाहिए।इस बात में कोई दोमत नहीं है। लेकिन गलत निर्णय कभी कभी माता-पिता द्वारा भी हो सकता है।
मुझे उनकी उस स्थिति के जिम्मेदार उनके मां-बाप ही लगे।क्या किसी सही बात के लिए अपने मां बाप का विरोध करना गलत है जबकि उनके मां-बाप गलत का साथ दे रहे हों। तथाकथित आदर्शवाद के पालन के लिए बाध्यता क्यों?कभी कभी विद्रोह भी जरूरी होता है। महाभारत के प्रसंग को याद करें जब द्रौपदी का चीरहरण हो रहा था तब सभी वरिष्ठ जनों ने अपने मुंह सी रखे थे।किसी ने भी उस अनुचित कार्य का विरोध करने का साहस नहीं किया।फलत: आगे चलकर उन सबको अपने मौन का फल भोगना पड़ा।उसी प्रकार जब रामायण के प्रसंग में भरत जी को राजगद्दी दिलाने के लिए उसकी मां कैकेई ने जब षड्यंत्र रचा तब भरत ने उनका विरोध किया।उन्होंने वहां अपनी जन्मदात्री माता के गलत निर्णय का विरोध किया।लंका के प्रसंग को देखें तो विभीषण ने भी अपने भाई रावण के अनुचित कृत्यों में सहभागिता के बजाय उनके शत्रु के पक्ष में जाना अधिक उचित समझा क्योंकि वहां सत्य था।
आदर्शवाद की परंपरा का निर्वहन करके गलत का साथ देना क्या गलत नहीं है?गलत को गलत कहने का साहस करना क्या गलती है?मुझे तो लगता है कि जहां पर भी गलत हो, वहां पर गलत के खिलाफ विद्रोह जरूरी है।आप लोगों का क्या कहना है?