मंगलवार, 22 फ़रवरी 2022

दिव्य आयोजन -मानस यज्ञ छुरा नगर

 










 छत्तीसगढ़ में मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम के प्रति अगाध श्रद्धा है।लोकजीवन राममय है।यहां के गांवों में दिन की शुरुआत राम नाम के अभिवादन से होती है और राम भजन में शाम होता है। जहां चार सज्जन मिल जाए, वहीं राम चर्चा शुरू हो जाती है।तुलसीकृत श्रीरामचरितमानस को यहां बड़े श्रद्धा और भक्ति के साथ गाया व सुना जाता है। तुलसी दास जी कहते हैं-
रचि महेस निज मानस राखा। पाइ सुसमउ सिवा सन भाषा॥
तातें रामचरितमानस बर। धरेउ नाम हियँ हेरि हरषि हर॥
जिस श्रीरामचरित मानस को स्वयं भगवान शिव ने रचा है।वो ग्रंथ अलौकिक ही होगा। तुलसीदास जी कहते हैं छहों शास्त्र सब ग्रंथन को रस। अर्थात श्री रामचरितमानस में सभी शास्त्रों और सभी ग्रंथों का निचोड़ है। इसी अलौकिक ग्रंथ के प्रचार प्रसार के लिए सन् 1957-58 के आसपास हमारे छुरा नगर में मानस मंडली का गठन किया गया।उस समय छुरा के जमींदार श्री त्रिलोकशाह जी के नेतृत्व में उनके युवा साथियों का दल तब आसपास के गांवों में रामकथा का संदेश बांटते घूमते थे।ये वही त्रिलोकशाह जी थे,जिन्होंने सन् 1967 में कांकेर लोकसभा के अस्तित्व में आने के बाद प्रथम सांसद के रुप में क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया था।वरिष्ठ रामायणिक श्री कामता प्रसाद तिवारी जी बताते है कि सन् 1959 में छुरा में बिलासपुर जिले से पधारे स्वामी रोशनपुरी के मार्गदर्शन और राजपुरोहित श्री बनमाली शर्मा जी के साथ समस्त क्षेत्रवासियों के सहयोग से प्रथम बार श्रीरामचरितमानस यज्ञ का आयोजन किया,जो नगर के मध्य में लगातार तीन वर्षों तक आयोजित हुआ। तत्पश्चात राजिम में तीन वर्षों तक आयोजित हुआ।उसके बाद स्थान बदल बदलकर श्रीरामचरित मानस यज्ञ का ये आयोजन चलता रहा।सांसद बनने के बाद राजा साहब द्वारा राजनीति के क्षेत्र में व्यस्तता के कारण समय नहीं दे पाने के कारण क्षेत्रवासियों व स्थानीय ब्राम्हणों के सहयोग से यह आयोजन तब भी निर्बाध रूप से जारी रहा।उस समय भी इस आयोजन पर राजपरिवार की ओर से यथोचित सहयोग मिलता रहा।
कुछ वर्षों के बाद स्थानीय पंडितों ने मिलकर छुरा में आजीवन मानस यज्ञ का संकल्प लिया और यज्ञ संचालन कार्यकारिणी का गठन किया।तब से मानस यज्ञ स्थायी रूप से छुरा में होने लगा।सन् 1979 से छुरा में होनेवाला यह दिव्य आयोजन विगत 42 वर्षों से आज भी जारी है।बाद के वर्षों में इस यज्ञ में हुबलाल जी व्यास मिर्जापुर यूपी ,संत पवन दीवान(स्वामी अमृतानंद) ब्रम्हचर्य आश्रम राजिम,संत श्री सियाभुनेश्वरीशरण(सिरकट्टी आश्रम कुटेना), आदि संतों का जुडाव हुआ। राजपुरोहित श्री बनमाली प्रसाद शर्मा दुल्ला,श्री झुमुक लाल शर्मा मजरकटा गरियाबंद,श्री कृष्ण कुमार दीक्षित छुरा और श्री गजानंद प्रसाद देवांगन छुरा की महत्वपूर्ण भूमिका इस आयोजन में होती थी।मानस यज्ञ में संत पवन दीवान और लावणीधर महराज जी के प्रवचन सुनने के लिए तब क्षेत्रवासियों की भीड़ यज्ञ परिसर में उमड़ पड़ती थी।पैदल,सायकल और बैलगाड़ी के माध्यम से लोग इस दिव्य आयोजन में शामिल होने के लिए आते थे।
सन् 1985 के आसपास यज्ञ परिसर में श्रीराम जानकी मंदिर और यज्ञमंडप का निर्माण राजपरिवार और जनसहयोग के संयुक्त प्रयास से हुआ।यज्ञ मंडप का प्रादर्श चित्रकूट सतना से लिया गया था।
11 फरवरी 1987 को छुरा निवासी श्रीमती रंभाबाई लोन्हारे द्वारा प्रदत्त मूर्ति की मानस मंदिर में धूमधाम से प्राण प्रतिष्ठा की गई।
हमारे बचपन के दिनों में यज्ञ स्थल के बाहर चना होरा और भक्का लाडू मिला करती थी।उसका आनंद ही अनूठा था। यज्ञाचार्य श्री झुमुक महराज जी के कंठ से उच्चारित जय हो पिता कोसलेस जय हो माता जानकी।जय हो रणबांकुरे वीर हनुमान की ।।आज भी कंठस्थ है।उस समय प्रवचन स्थल पर जामुन डारा से मंडप बनाया जाता था।बाद में पक्के छत का निर्माण हो गया।
सन् 2008-09 में मंदिर का जिर्णोद्धार मानस यज्ञ समिति और स्व त्रिलोकशाह के सुपुत्र श्री ओंकारशाह जी द्वारा करवाया गया।मंदिर का स्थापत्य उत्कल शैली का है।ओडिशा के कारीगरों ने ही यज्ञ मंडप और मंदिर को नवीन स्वरूप प्रदान किया है।मानस मंदिर के यज्ञ मंडप के सम्मुख ही दक्षिणमुखी पवन पुत्र हनुमान जी और बालिपुत्र अंगद जी की मूर्ति छोटे मंदिरों में शोभायमान है।हनुमान जी की मूर्ति तो सर्वत्र विद्यमान दिखाई देता है लेकिन अंगद जी का पृथक मंदिर मेरी जानकारी में इसके अलावा अभी तक नहीं है।
मानस यज्ञ परिसर में बीते कुछ वर्षों में स्थानीय श्रद्धालुओं के द्वारा शिवमंदिर,श्री राधा कृष्ण मंदिर और भगवान जगन्नाथ जी के मंदिर का भी निर्माण करवाया गया है।दिन प्रतिदिन यहां के मंदिर की भव्यता बढ़ती ही जा रही है।यज्ञ समिति द्वारा इस वर्ष मंदिर में आकर्षक रंग रोगन कराई गई है।माघ-फाल्गुन महीने में छुरा नगर को राममय बनाने वाला ये दिव्य आयोजन वास्तव में अनूठा है।

दिन चारी मइहरवा में....सुरता स्व.मिथलेश सर के

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