साल 2020 और 2021 कोरोना महामारी की कड़वी यादों के लिए वर्तमान पीढ़ी को आजीवन याद रहेगा।इस घातक बीमारी ने कई परंपराओं और आयोजनों पर जैसे प्रतिबंध लगा रखा था। साल के बारह महीनों को तीज त्यौहार के साथ जीने वाला हमारा देश हंसना खिलखिलाना भूल गया था।कामना करते हैं ईश्वर फिर कभी वो दुर्दिन ना दिखाए।
दो सालों के बाद इस साल विघ्नहर्ता भगवान गणपति पूरे ठाठ के साथ गणेश पंडालों में दर्शन दे रहे हैं।गांव,कस्बों और शहरों की छोटी बड़ी समितियां अपने स्तर पर भव्य गणेशोत्सव मना रही है। गणेश की मूर्तियों और पंडालों की डिजाइन में आमूलचूल परिवर्तन देखने में आ रहा है।
पहले तालपत्री, कपड़ों और बांस बल्लियों से भगवान गणेश का मंडप सजता था। जिसमें स्थानीय लोग मेहनत करते थे।अब टेंट का काम करने वालों को सीधा मंडप तैयार करने का ठेका दे दिया जाता है।पैसा फेंको... तमाशा देखो...नो चिकचिक..नो झिकझिक।अब के आयोजन में समर्पण का अभाव दिखता है।
बहुत कुछ बदल भी गया है अब...ना चंदा मांगने वाले लोगों का जत्था है..ना प्रसाद लेने के लिए इस मोहल्ले से उस मोहल्ले घूमने वाले बच्चों की टोली।देशी झालरों का स्थान रंगबिरंगे चाइनीज झालरों ने ले लिया है।उषा कंपनी की छोटे छोटे बल्ब और उस समय के झालर अब नजर नहीं आते। हमारे बचपन के दिनों में थोड़ा बहुत इलेक्ट्रॉनिक का जानकार गणेशोत्सव के दिनों में किसी इंजीनियर से ज्यादा इज्जत पाता था।रोज शाम को लकड़ी का स्टूल लेकर किसी वैज्ञानिक के जैसे फ्यूज बल्ब का पता लगाना कोई मामूली काम नहीं होता था।हम उसी फ्यूज बल्ब को पता लगाने की उसकी योग्यता और झालर बल्ब के जल जाने पर तालियां बजाते थे। मनोरंजन के लिए पूरे ग्यारह दिन तक नाचा,आल्हा उदल, विडियो और पंडवानी जैसे कार्यक्रम आयोजित किया जाता था।हर्ष और उल्लास से सराबोर ग्यारह दिन कब निकल जाते थे।पता ही नहीं चलता था।अनंत चतुर्दशी के दिन जब गणेश जी को विसर्जन के लिए ले जाना होता था तब गांव में विराजित हरेक प्रतिमा गांव के चौक में एकत्रित होती थी।सब मूर्तियों को समस्त ग्रामवासी नाचते गाते विसर्जित करने जाते थे।
अब गुजरा दौर तो वापस नहीं आ सकता।पर उस दौर की मीठी यादों को भूलाया भी तो नहीं जा सकता....