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फोटो गूगल से साभार |
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फोटो गूगल से साभार |
जनम से लेकर मरण तक इंसान सिर्फ एक ही चीज पाने के लिए संघर्ष करता है।सोचिए क्या?....धन.. सम्मान... स्वास्थ्य....!!जी! सही समझे आप!इसका सही जवाब है सुख। इंसान सिर्फ सुख पाना चाहता है।
समय की यात्रा अनवरत जारी रहती है।समय किसी के लिए ना कभी रुका था,ना रुका है और ना ही रुकेगा।बचपन में स्कूल की किताबें अरुचिकर लगती है।संभवतः आप में से भी कोई सहमत हो।उस समय संत, कवियों के दोहे,सीख वाली कहानियां और सूक्तियां पढ़कर खिन्नता होती थी।हालांकि ये सब मूल्यवान तब भी थी,अब भी है और भविष्य में भी होगा।लेकिन बचपन में पढ़ी बहुत सी बातों का मर्म अब समझ में आ रहा है। स्कूली किताबों के पाठ्यक्रम में शामिल रहीम और कबीर के दोहे उस समय हमारी बालबुद्धि में समझ के बाहर थे।सोचते थे इन सबसे कब मुक्ति मिले?कब किताबों का ये जंजाल छूटे! कब बड़े हों!!!
कबीर का एक दोहा याद आ रहा है-
काल करे सो आज कर,आज करे सो अब!!
पल में परलय होएगी,बहुरि करेगा कब!!
मतलब ये है कि जो काम करना है वो तत्काल करनी चाहिए। बाद में शायद वक्त उस काम के लिए वक्त ही ना दे तो।कवि प्रदीप का लिखा एक गीत भी खूब चलता था।कभी उलटे कभी सीधे पड़ते अजब समय के पांव...कभी धूप तो कभी छांव....
सच में!कितनी गहरी बात है।समय कब बीत जायेगा या समय कब अपना मिजाज बदल ले कुछ कह नहीं सकते। हममें से ज्यादातर ने आज का काम कल पर टालने की आदत बना ली है।हर काम भविष्य के लिए अधर में लटकाकर वर्तमान में मुक्त रहना चाहते हैं।लेकिन क्या ये संभव है कि समय आपकी योजनाओं को भविष्य में कार्य रुप में परिणित करने के लिए समय देगा।ये कोई भी नहीं जानता।
हर एक के पास भविष्य के लिए ढेरों योजनाएं हैं।हर कोई वर्तमान का सुख छोडकर भविष्य में सुख पाने के लिए योजनाएं बना रहा है। मैं ऐसा करुंगा,मैं वैसा करुंगा...अमका..ढिमका वगैरह.. वगैरह..!!
वास्तव में ये सब कल्पना मात्र है। भविष्य समय के गर्भ में रहता है।मनुष्य अपने भविष्य के लिए योजनाएं तो बना सकता है, लेकिन उसका पूर्ण होना ना होना समय के हाथ में है।हम जो सोचते हैं या जो हमारी भविष्य की योजनाएं हैं उसकी पूर्णता हमारे हाथ में नहीं है।हम केवल कल्पना और परिश्रम कर सकते हैं। इससे अधिक कुछ नहीं।
कुछ दिन पूर्व ही एक विचित्र दृश्य देखा मैंने।एक शिक्षक जो कभी हृष्ट पुष्ट थे और विभिन्न प्रकार के सामाजिक संगठनों की अगुवाई करते थे। वर्तमान में पक्षाघात का शिकार होकर अपनी दिनचर्या के कार्यों के लिए दूसरे पर निर्भर है।एक दौर था जब वो अपनी मोटर सायकल में खूब घूमा करते थे।उसके पास मित्रों और समर्थकों का जमावाड़ा होता था।आज नितांत अकेले हैं।
एक अन्य व्यक्ति जो कभी बढ़िया कलाकार और नीजी स्कूल में शिक्षक रहे हैं। वर्तमान मेंअर्धविक्षिप्त जैसे इधर उधर घूमते रहते हैं।जबकि उनके परिजन आर्थिक रूप से समृद्ध है और उनको खूब शिक्षा दीक्षा भी दिलाए थे। संभवतः उन्होंने भी संबंधित के लिए अनगिनत स्वप्न देखे रहे होंगे और योजना बनाई होंगी।
एक व्यापारी थे जो कभी सिर्फ ब्रांडेड चीजें उपयोग करते थे।हर चीज में ब्रांड की बातें करते थे।स्थानीय स्तर पर उत्पादित सामग्री को लोकल कहकर तिरस्कार करते थे।आज दाने दाने के लिए मोहताज है।एक अन्य व्यापारी ने व्यापार में खूब पैसा बनाया और आलीशान बंगला बनवाया।उसकी कामना थी परिवार के साथ खूब ऐशोआराम से जिंदगी गुजारना।तभी समय ने करवट लिया और उनकी पत्नि का असामयिक निधन हो गया।अब उस बंगले में रहने के लिए कोई नहीं है।खुद बड़े से बंगले में खामोशी से बतियाते पड़े रहते थे।इन सब उदाहरणों को प्रस्तुत करने का एक ही मंतव्य है।क्या हम आज जो संपत्ति बना रहे हैं कल हमारे भविष्य को सुरक्षित कर सकती है?
मेरा नीजी विचार है नहीं कर सकती।इसलिए जो है सो वर्तमान है।वर्तमान को ही सार्थक बनाने की कोशिश होनी चाहिए। छोटी बड़ी जो सुख मिल रहे हों उसे समेटने का प्रयास होना चाहिए। सही नजरिया और सही नीयत किसी भी क्षेत्र में कामयाबी का मूलमंत्र है।इस मूलमंत्र को अपनाने वाले कभी निराश नहीं होते। हालांकि कभी कभी संघर्ष का समय कुछ अधिक लग जाता है। लेकिन जीत अंततः संघर्ष करने वाले की ही होती है। इसलिए आनंद को भविष्य के लिए जमा ना करें।हर छोटी बड़ी खुशियों का आनंद वर्तमान में लें।आपने अपने आसपास ही देखा होगा।कभी कभी गुलाब जामुन खाने का शौकीन व्यक्ति कंजूसी कर कर के बुढ़ापे में गुलाब जामुन खाने की योजना बनाता है।भरपूर गुलाब जामुन खाने लायक रुपया भी जमा कर लेता है। लेकिन तब तक सेहत जवाब दे चुका होता है।डाक्टर परहेज के बंधन में बांध देता है।शुगर लेवल से शरीर को खतरा की सूचना दे देता है।सेहत जवाब देने लगता है और परहेज करके जीना पड़ता है। अंततः सारी हसरतें धरी की धरी रह जाती है। और हाथ आता है केवल अफसोस!!पछतावा!!!उम्मीद है आप ऐसे व्यक्ति नहीं है...
लोकगीतों की अपनी एक अलग मिठास होती है।बिना संगीत के भी लोकगीत मन मोह लेता है,और परंपरागत वाद्य यंत्रों की संगत हो जाए, फिर क्या कहने!! आज ...