सोमवार, 10 जून 2024

कैसा रेल बनाया बनाने वाले...

फोटो गूगल से साभार 


 बचपन के दिनों में जब रेडियो ही मनोरंजन का सर्वव्यापी साधन हुआ करता था,उन दिनों छत्तीसगढ़ के मशहूर गायक पंचराम मिर्झा का ये गीत खूब हमने खूब सुना था। जिसमें मनुष्य शरीर की नश्वरता और और भजन की महत्ता के बारे में बताया गया है। हमारी कक्षा चौथी के हिन्दी पाठ्य-पुस्तक में भी एक पाठ रेल के बारे में था।भारत में पहली रेलगाड़ी ठाणे से मुंबई के बीच चली थी ये अब तक मुंहजबानी याद है।

रेल, शब्द से हम सब बचपन से परिचित हैं।रेलगाड़ी का खेल खेलकर ही हम सब बड़े हुए हैं। इंटरनेट पर रेल का शाब्दिक अर्थ खंगालने पर पता चला कि इसका मतलब बहाव,भाप के दबाव से चलने वाला वाहन और लोहपथगामिनी है।अर्थात लोहे के सड़क पर चलने वाला वाहन।रेल (Rail) परिवहन का एक ज़रिया है जिसमें यात्रियों और माल को पटरियों पर चलने वाले वाहनों पर एक स्थान से दुसरे स्थान ले जाया जाता है। पारम्परिक रूप से रेल वाहनों के नीचे पहियें होते हैं जो इस्पात (स्टील) की बनी दो पटरियों पर संतुलित रूप से चलते हैं, लेकिन आधुनिक काल में चुम्बकीय प्रभाव से पटरी के ऊपर लटककर चलने वाली 'मैगलेव' (maglev) और एक पटरी पर चलने वाली 'मोनोरेल' जैसी व्यवस्थाएँ भी रेल व्यवस्था में गिनी जाती हैं। रेल की पटरी पर चलने वाले वाहन अक्सर एक लम्बी पंक्ति में एक दुसरे से ज़ंजीरों से जुड़े हुए डब्बे होते हैं जिन्हें एक या एक से अधिक कोयले, डीज़ल, बिजली या अन्य ऊर्जा से चलने वाला इंजन (engine) खेंचता है। इस तरह से जुड़े हुए डब्बों और इंजनों को 'रेलगाड़ी' या 'ट्रेन' (train) कहते हैं।

रेल यातायात का सबसे बड़ा साधन है। दुनिया में चौथे स्थान पर भारतीय रेलवे है।साल दर साल रेलवे खुद को अपडेट कर रहा है।कोयले वाले इंजन से रेलवे का सफर शुरू हुआ था जो अब शत् प्रतिशत विद्युतीकरण की ओर है।

कॉमर्स मिनिस्ट्री के ट्रस्ट इंडिया ब्रांड इक्विटी फाउंडेशन के अनुसार, भारत में हर दिन लगभग 22,593 ट्रेनें संचालित होती हैं।इनमें 13,452 यात्री ट्रेनें हैं, जो करीब 7,325 स्टेशनों को कवर करती हैं। इन यात्री ट्रेनों से रोजाना 2.40 करोड़ यात्री सफर करते हैं। ट्रेनों की इस संख्या में मेल, एक्सप्रेस और पैसेंजर सभी तरह की ट्रेनें शामिल हैं।

रेलवे की मालगाड़ियां औद्योगिक विकास और व्यवसाय के लिए रीढ़ की हड्डी की तरह है‌।यह ना कभी रुका है और ना कभी थका है।कोरोनाकाल को छोड़कर।

आश्चर्य होता है ये कल्पना करके कि लाखों करोड़ों लोगों को रोजगार देने वाले रेलवे स्टेशन में कोरोना काल के समय पसरा सन्नाटा कितना भयावह रहा होगा।

रेल के प्लेटफार्म में संपूर्ण भारत का दर्शन होता है।रंग बिरंगी खान-पान और संस्कृति का परिचय रेलवे में यात्रा के दौरान होता है।रेल की खिड़की से शहर, जंगल,गांव,खेत,नदी पहाड़ को निहारने का आनंद अलग ही होता है।हर प्रदेश का अपना विशिष्ट खान-पान और चना चबैना भी होता है जिसका आनंद रेल के सफर के दौरान बख़ूबी उठाया जा सकता है।

रेल का सफर स्लीपर और जनरल बोगी में कष्टकारी हो गया है। रेलवे शौचालय की गंदगी इतने प्रयत्नों के बाद भी खत्म नहीं हो पाई है। विभागीय उदासीनता और लोगों के गैरजिम्मेदाराना रवैया के चलते इसका निराकरण होना भी मुश्किल लगता है।

स्लीपर कोच और जनरल डब्बा में अंतर खत्म हो गया है।लोग भेड़ बकरियों की तरह ठूंस दिए जाते हैं और यात्रा यातना में बदल जाती है।

नियमों की धज्जियां यात्रीगण खुलकर उड़ाते हैं।सबसे भयावह पल तब होता है जब किन्नर बोगियों में घुसकर वसूली करते हैं। अश्लील गालियां देते हुए जब ये किन्नर राशि मांगते हैं तब परिवार समेत यात्रा करते यात्री शर्मसार हो जाते हैं।इस समस्या के निराकरण का कोई उपाय अब तक नहीं निकाला जा सका है।इन सबके बावजूद रेलयात्रा का अपना अनूठा आनंद है। 

वैसे हमारा शरीर भी तो एक रेल ही है जो सांसों के कोयले पर जीवन की पटरी पर दौड़े जा रही है।सुख दुख के स्टेशनों को पार करती..बार बार...लगातार। इसलिए जीवन में जब भी अवसर मिले निकल पड़ें छुकछुकिए पर.... दुनिया को जानने समझने और आनंद के लिए।





खैर,अब वंदे भारत जैसे हाइटेक ट्रेन यात्रा को त्वरित और सुगम बना रही है।बुलेट ट्रेन चलाने की दिशा में भी भारत सरकार लगातार कोशिश कर रहा है। उम्मीद है अच्छे दिन आयेंगे।

फिल्म दोस्त में किशोर कुमार ने रेल पर एक बहुत बढ़िया गीत गाया है..... गाड़ी बुला रही है सीटी बजा रही है.... चलना ही जिंदगी है...चलती ही जा रही है...

सच है ना... चलने का नाम ही जिंदगी है। मिलते हैं अगले पोस्ट में...तब तक राम राम

दिन चारी मइहरवा में....सुरता स्व.मिथलेश सर के

  लोकगीतों की अपनी एक अलग मिठास होती है।बिना संगीत के भी लोकगीत मन मोह लेता है,और परंपरागत वाद्य यंत्रों की संगत हो जाए, फिर क्या कहने!! आज ...