शुक्रवार, 13 दिसंबर 2024

उमरिया ला धोखा धोखा मा खोई डारे भाई....

 


पिछले दिनों एक मित्र के पिताजी का देहावसान हो गया तो उनके दशगात्र कार्यक्रम में शामिल हुआ। छत्तीसगढ़ में दशगात्र के दिन मृतक की आत्मशांति के लिए विशिष्ट पूजा किया जाता है।

निकटतम परिजनों और ग्रामीणों के द्वारा तालाब में जाकर 5 अंजुरी पानी अर्पित कर देह त्यागने वाली आत्मा को श्रद्धांजलि अर्पित की जाती है।इस अवसर पर कहीं कहीं भजन कीर्तन आदि का कार्यक्रम रखा जाता है। लोकजीवन में परंपरागत लोकभजन के माध्यम से शरीर की नश्वरता और प्रभु भक्ति की श्रेष्ठता का गायन किया जाता है।

वहां पर भी ऐसा ही कुछ गीत लोकधुन में खंजरी,तमूरा और झांझ की मधुर आवाज़ के साथ कुछ बुजुर्ग गा रहे थे... उमरिया ला धोखा धोखा मा खोई डारे भाई...।बिना तामझाम के ताली की थाप और तीन वाद्ययंत्रों का संगम गीत को सरस बना रहा था।भजन के बाद एक बुजुर्ग दृष्टांत और कथा का वाचन करता था। तत्पश्चात पुनः वही भजन चल पड़ता था।

मैं भी कुछ समय के लिए उनके पास बैठ गया।जो बुजुर्ग टीका कहकर दृष्टांत वाचन कर रहे थे वो भक्ति की श्रेष्ठता और संत सेवा की महानता के बारे में बता रहे थे। उसने कथा प्रसंग में शबरी की गुरुवचनों के प्रति आस्था के बारे में बताया।जब मतंग ऋषि ने शबरी को ये बताया कि तुम प्रभु की प्रतीक्षा करो...वो जरुर आयेंगे।दिन,सप्ताह,माह और वर्ष बीतते गया।शबरी प्रभु की प्रतीक्षा में तरुणी से वृद्ध हो गई पर उन्होंने गुरुवचनों पर संदेह नहीं किया।वो गुरुवचनों पर आस्था रखकर प्रतीक्षा करती रही.. अंततः प्रभु श्रीराम उनके पास स्वयं चलकर आए।इसके बारे में उन्होंने बताया कि मनुष्य अधीर होता है।वह किसी की भी प्रतीक्षा लंबे समय तक नहीं करता है।अपना मार्ग और विचार बदल देता है। लेकिन शबरी एकटक प्रभु का ही राह निहारती रही।इस अवधि में ना तो वह किसी तीर्थ दर्शन के लिए गई और ना ही किसी देवी-देवता की भक्ति में जप तप किया।उसका एकमात्र लक्ष्य था त्रिलोक अधिपति के सम्मुख दर्शन करना। इसलिए भगवान को स्वयं उसके पास आना पड़ा।

ग्रामीण बुजुर्ग के मुख से इस प्रकार का अद्भुत टीका सुनना मेरे लिए अद्भुत था। इसके बाद पुनः वही भजन चल पड़ा..

धोखा धोखा मा खोई डारे उमरिया ला

धोखा धोखा मा खोई डारे भाई

ना भाव भक्ति करे,ना संत सेवा जाने

न तो करे करम कमाई भाई

उमरिया ला धोखा धोखा मा खोई डारे भाई...

इस भजन का भावानुवाद कुछ इस तरह है कि मनुष्य मेरे पास बहुत समय बाकी है सोचकर राग रंग में व्यस्त रहता है। फिर अकस्मात जब उसकी मृत्यु का समय आ जाता है तब वह पछतावा करता है कि उसने ना तो किसी का सेवा किया और ना ही किसी प्रकार का सद्कर्म किया।इस प्रकार पछतावा लिए जीव पुनः जन्म मरण के चक्कर में फंस जाता है।

इसलिए अगर समय रहते मनुष्य चेत जाए तो वह अपने जीवन को अनुकरणीय बना सकता है।

जय जगन्नाथ 

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