कल ही की तो बात है। प्रतिदिन की भांति वाटसप को खंगाल रहा था तो एक ग्रुप मे अचानक छत्तीसगढ़ कलाजगत के अनमोल रतन और छत्तीसगढ़ी लोकसंगीत के पितामह श्री खुमान लाल साव जी के देहावसान का समाचार मिला।यकीन नहीं हुआ तो एक दो और कलाप्रेमी मित्रों से समाचार को पुष्ट करने का प्रयास किया।जब उनका उत्तर नहीं मिला तो गूगल गुरु से समाचार की पुष्टि हुई और इस मनहूस से समाचार से दिल बैठ सा गया।
खुमान लाल साव, छत्तीसगढ़ी कलाजगत के ऐसे वटवृक्ष थे जिनके नीचे कितने ही कलाकारों ने आश्रय पाया और कलाजगत मे नाम कमाया।एक शिक्षक के रुप मे भी उन्होंने यश कमाया और एक कलाकार के रुप मे उनके साथ छत्तीसगढ़ ने भी यश कमाया।उनके संगीत का जादू ऐसा था कि बरबस मन मयूर झूम उठता था। अश्लीलता और बाजारू गीत-संगीत से उनका दूर-दूर तक कोई नाता न था।उनके रचे संगीत मे साहित्य स्थान पाता था।पं.रविशंकर शुक्ल,पं.द्वारिका प्रसाद तिवारी"विप्र",संत पवन दीवान,लक्ष्मण मस्तूरिहा जैसे विलक्षण साहित्य साधकों की रचना को उन्होंने अपने संगीत के जादू से अमर कर दिया है। उनके संगीत का स्पर्श पाकर छत्तीसगढ़ की मशहूर गायिका श्रीमती कविता वासनिक की आवाज को प्रसिद्धि मिली। प्रसिद्ध कवि लक्ष्मण मस्तूरिहा के गीतों को एक नया आयाम मिला।
जिन लोगों ने चंदैनी गोंदा की प्रस्तुति देखी है वे लोग खुमान साव जी के संगीत और प्रस्तुति मे उनके समर्पण को बेहतर महसूस कर सकते हैं।जब तक उनके शरीर ने जवाब नहीं दिया वे चंदैनी गोंदा की प्रस्तुति मे स्वयं हारमोनियम बजाते रहे।वे सिगरेट के कस लगाते रहते और पूरी रात उनका कार्यक्रम निर्बाध गति से चलता रहता। उनके साथ मेरा प्रत्यक्ष रुप से मिलना नहीं हुआ था लेकिन उनको करीब से देखने और उनके संगीत को सुनने का सौभाग्य मुझे प्राप्त हुआ है।लगभग चार वर्ष पूर्व उनका कार्यक्रम हमारे गांव मे हुआ था।
हमारे गांव से कुछ लोग जब उनके कार्यक्रम को अनुबंधित करने उनके गृहग्राम ठेकवा गए थे तो उनसे जुडी एक वाकया साथ गए एक सज्जन ने बताया कि जब वे उनके निवास पहुंचे और बताया कि कार्यक्रम अनुबंध के सिलसिले मे वे लोग ढाई सौ किलोमीटर दूर से आए हैं तो साव जी ने उनको आत्मीयता से बिठाया और तत्काल उनकेे लिए जलपान की व्यवस्था किए।बाद मे जब कार्यक्रम के लिए एडवांस पैसा दिया तो वे उसे बिना गिने रखने लगे।जब उनसे गिनने का आग्रह किए तो बोले-"तुमन छत्तीसगढ़िया हरव।अउ एक छत्तीसगढ़िया ह दूसर छत्तीसगढ़िया ल ठगही थोरे जी।"ऐसा कहते हुए उन्होंने पुनः बिना गिने ही पैसा रख लिया।उनका ऐसा स्वभाव देखकर साथ गए लोग गदगद हो गए।
वे अपने धुन मे रमे व्यक्ति थे। राजनीतिक उठापटक और सम्मान पुरस्कार की दौड से कोसों दूर। दर्शकों के प्यार को ही वे अपना सबसे बडा पुरस्कार मानते थे। उन्होंने बहुत से पुरस्कार को पुरस्कार नीति से आहत होकर ग्रहण नहीं किया।पिछले वर्ष ही उनको राष्ट्रपति महोदय के द्वारा संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार प्राप्त हुआ।कला प्रेमियों के द्वारा उनकी इस उपलब्धि के लिए उनका नागरिक अभिनंदन राजनांदगांव मे किया गया।वे पुरस्कार के लिए जुगाड लगाने वालों मे से नहीं थे। इसलिए प्राय: उपेक्षित ही रहे।मेरा मानना है कि खुमान साव जी पद्म पुरस्कार के हकदार रहे हैं।जो उन्हें नहीं मिल पाया। उनका निधन छत्तीसगढी कला जगत के लिए अपूरणीय क्षति है। पर संगीत प्रेमियों के दिलों मे उनका स्थान सदैव रहेगा।अपने रचे अमर संगीत के माध्यम से वे छत्तीसगढ़ मे सदैव गुंजित रहेंगे।जन्म लेने वाले का मृत्यु निश्चित है।इस कठोर सत्य से कोई नहीं बच सकता।उनके जाने के बाद मुझे चंदैनी गोंदा की प्रस्तुति और उनके संगीतबद्ध गीत बहुत याद आ रहे हैं और उन अनेक गीतों में से एक गीत...
माटी होही तोर चोला रे संगी! माटी होही तोर चोला.....
खुमान बबा ल विनम्र श्रद्धांजलि
खुमान लाल साव, छत्तीसगढ़ी कलाजगत के ऐसे वटवृक्ष थे जिनके नीचे कितने ही कलाकारों ने आश्रय पाया और कलाजगत मे नाम कमाया।एक शिक्षक के रुप मे भी उन्होंने यश कमाया और एक कलाकार के रुप मे उनके साथ छत्तीसगढ़ ने भी यश कमाया।उनके संगीत का जादू ऐसा था कि बरबस मन मयूर झूम उठता था। अश्लीलता और बाजारू गीत-संगीत से उनका दूर-दूर तक कोई नाता न था।उनके रचे संगीत मे साहित्य स्थान पाता था।पं.रविशंकर शुक्ल,पं.द्वारिका प्रसाद तिवारी"विप्र",संत पवन दीवान,लक्ष्मण मस्तूरिहा जैसे विलक्षण साहित्य साधकों की रचना को उन्होंने अपने संगीत के जादू से अमर कर दिया है। उनके संगीत का स्पर्श पाकर छत्तीसगढ़ की मशहूर गायिका श्रीमती कविता वासनिक की आवाज को प्रसिद्धि मिली। प्रसिद्ध कवि लक्ष्मण मस्तूरिहा के गीतों को एक नया आयाम मिला।
जिन लोगों ने चंदैनी गोंदा की प्रस्तुति देखी है वे लोग खुमान साव जी के संगीत और प्रस्तुति मे उनके समर्पण को बेहतर महसूस कर सकते हैं।जब तक उनके शरीर ने जवाब नहीं दिया वे चंदैनी गोंदा की प्रस्तुति मे स्वयं हारमोनियम बजाते रहे।वे सिगरेट के कस लगाते रहते और पूरी रात उनका कार्यक्रम निर्बाध गति से चलता रहता। उनके साथ मेरा प्रत्यक्ष रुप से मिलना नहीं हुआ था लेकिन उनको करीब से देखने और उनके संगीत को सुनने का सौभाग्य मुझे प्राप्त हुआ है।लगभग चार वर्ष पूर्व उनका कार्यक्रम हमारे गांव मे हुआ था।
हमारे गांव से कुछ लोग जब उनके कार्यक्रम को अनुबंधित करने उनके गृहग्राम ठेकवा गए थे तो उनसे जुडी एक वाकया साथ गए एक सज्जन ने बताया कि जब वे उनके निवास पहुंचे और बताया कि कार्यक्रम अनुबंध के सिलसिले मे वे लोग ढाई सौ किलोमीटर दूर से आए हैं तो साव जी ने उनको आत्मीयता से बिठाया और तत्काल उनकेे लिए जलपान की व्यवस्था किए।बाद मे जब कार्यक्रम के लिए एडवांस पैसा दिया तो वे उसे बिना गिने रखने लगे।जब उनसे गिनने का आग्रह किए तो बोले-"तुमन छत्तीसगढ़िया हरव।अउ एक छत्तीसगढ़िया ह दूसर छत्तीसगढ़िया ल ठगही थोरे जी।"ऐसा कहते हुए उन्होंने पुनः बिना गिने ही पैसा रख लिया।उनका ऐसा स्वभाव देखकर साथ गए लोग गदगद हो गए।
वे अपने धुन मे रमे व्यक्ति थे। राजनीतिक उठापटक और सम्मान पुरस्कार की दौड से कोसों दूर। दर्शकों के प्यार को ही वे अपना सबसे बडा पुरस्कार मानते थे। उन्होंने बहुत से पुरस्कार को पुरस्कार नीति से आहत होकर ग्रहण नहीं किया।पिछले वर्ष ही उनको राष्ट्रपति महोदय के द्वारा संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार प्राप्त हुआ।कला प्रेमियों के द्वारा उनकी इस उपलब्धि के लिए उनका नागरिक अभिनंदन राजनांदगांव मे किया गया।वे पुरस्कार के लिए जुगाड लगाने वालों मे से नहीं थे। इसलिए प्राय: उपेक्षित ही रहे।मेरा मानना है कि खुमान साव जी पद्म पुरस्कार के हकदार रहे हैं।जो उन्हें नहीं मिल पाया। उनका निधन छत्तीसगढी कला जगत के लिए अपूरणीय क्षति है। पर संगीत प्रेमियों के दिलों मे उनका स्थान सदैव रहेगा।अपने रचे अमर संगीत के माध्यम से वे छत्तीसगढ़ मे सदैव गुंजित रहेंगे।जन्म लेने वाले का मृत्यु निश्चित है।इस कठोर सत्य से कोई नहीं बच सकता।उनके जाने के बाद मुझे चंदैनी गोंदा की प्रस्तुति और उनके संगीतबद्ध गीत बहुत याद आ रहे हैं और उन अनेक गीतों में से एक गीत...
माटी होही तोर चोला रे संगी! माटी होही तोर चोला.....
खुमान बबा ल विनम्र श्रद्धांजलि