मंगलवार, 29 जनवरी 2019

मेरा छोटा सा प्रयास....उदीम

भारत की मर्मस्थल और धान का कटोरा उपमा से अलंकृत छत्तीसगढ़ अपनी मनमोहक लोकजीवन और स्वभाव मे निश्छल सादगी लिए पौराणिक काल से आज तक यहां आनेवाले प्रत्येक आगंतुक का मन मोह लेता है।
मर्यादा पुरूषोत्तम भगवान श्रीराम के ननिहाल कहे जानेवाले छत्तीसगढ़ ने ही उनको चौदह वर्ष के कठिन वनवास काल मे आश्रय दिया था।दण्डकारण्य के घनघोर वन, नदी और पहाडियों मे आज भी उनकी स्मृतियां विद्यमान है।महाभारत काल मे पांडवों के लिए भी छत्तीसगढ़ ने अपना स्नेह लुटाया था और उनको भी अपने कोरा(गोद)मे स्थान दिया था।
छत्तीसगढ़ महतारी अपना स्नेह अपनी संतान पर सदा लुटाती रही है।मुक्त हस्त से अपनी संपदा अपनी संतानों लिए न्यौछावर करती रही हैं।ऐसी स्नेहमयी माता के चरणों मे प्रणाम निवेदित करते हुए अपने अंतर्मन की बातों और जानकारियों को साझा करने का प्रयास मै इस ब्लॉग के माध्यम से करना चाहूंगा।सहयोग अपेक्षित है।
रीझे



1 टिप्पणी:

Unknown ने कहा…

जी बिल्कुल अगोरा में रबो संगवारी

दिन चारी मइहरवा में....सुरता स्व.मिथलेश सर के

  लोकगीतों की अपनी एक अलग मिठास होती है।बिना संगीत के भी लोकगीत मन मोह लेता है,और परंपरागत वाद्य यंत्रों की संगत हो जाए, फिर क्या कहने!! आज ...