बुधवार, 3 फ़रवरी 2021

ड्रामे की किताब


 आज एक किताब की दुकान में जाना हुआ। पिछले साल से स्कूल कालेज बंद चल रहे हैंं। पर बच्चों की परीक्षा आयोजित होना तय है, इसलिए गाईड और प्रश्न बैंक वगैरह सजाके दुकानदार बैठा था।दुकानदार परिचित था इसलिए थोड़ी देर तक इधर-उधर की बातें होती रही।तभी मेरी नजर कुछ पुरानी पतली से पुस्तकों पर पड़ी।समय के मार से धूल खाते पड़ी थी।शायद सालों से उन पतली पुस्तकों की माॅंग नहीं थी। मैंने उन पुस्तकों पर पड़ी धूल झाड़कर देखा तो समझ में आया कि ये किताबें तो नाटकों की हैं,जो पहले गांवों के रंगमंचों पर खेला जाता था।
तब का जमाना भी क्या जमाना था? मनोरंजन के विशेष साधन ना थे। विशेष अवसरों पर ही नाचा या अन्य मंचीय कार्यक्रमों का संयोग बनता था।अक्सर दशहरे के अवसर पर रामलीला होता था।और अन्य अवसर के लिए ड्रामा की मंचीय प्रस्तुति होती थी। जिनमें सामान्यतः सामाजिक विषयों का फिल्मी टच के साथ मसालेदार कहानी हुआ करती थी।डाकू,सती,दहेज और रामायण तथा महाभारत के विभिन्न प्रसंगों के नाटक हुआ करते थे। नाटकों के शीर्षक भी दिलचस्प होते थे।जैसे-राखी के दिन, इंसाफ की आवाज,लहू की सौगंध,गरीब का बेटा,जयद्रथ वध,राजा हरिश्चंद्र,कीचक वध,सती सावित्री आदि।ये नाटक ऐसे होते थे जिन्हें कम बजट पर मंच पर प्रस्तुत किया जा सकता था।
इन नाटकों की पुस्तकें ज्यादातर भागलपुर बिहार से प्रकाशित हुआ करती थी।डायलॉग सरल सहज हिंदी में लिखे होते थे। जिन्हें गांव के कम पढ़े लिखे लोग भी आसानी से रट्टा मार लिया करते थे। मनोरंजन का सशक्त माध्यम होता था ये ग्रामीण क्षेत्रों में। जहां अभिनेता और दर्शक गांव के लोग ही होते थे। स्त्री पात्र का अभिनय भी पुरुष ही करते थे। 
इन नाटकों का कोई निर्देशक नहीं होता था।नाटक का मैनेजर ही सबका एक्टींग में मार्गदर्शन करता था। कलाकार भी भोले भाले ग्रामीण होते थे जिन्हें स्त्री पुरुष दोनों का अभिनय करना होता था।चेहरे की बनावट,अभिनय क्षमता और पार्ट याद करने की क्षमता के आधार पर पात्र का चयन किया जाता था।रातभर नाटक चलता था जिसमें बीच-बीच में प्रसंगानुसार स्थानीय बोली के गीत और फिल्मी गानों का भी समावेश होता था। पेट्रोमेक्स की रोशनी और लो बजट के साउंड सिस्टम के साथ कपड़े और बांस बल्लियों से बने अस्थाई रंगमंच पर रातभर कामेडी, इमोशन,एक्शन और रोमांस का तड़का लगता था। लोगों का रातभर मनोरंजन करने वाले कलाकार अगली सुबह फिर दैनिक दिनचर्या में व्यस्त हो जाते थे।
उस दौर में पैसे की कमी जरूर थी.... लेकिन दिल बड़ा हुआ करते थे

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