मोहनदास करमचंद गांधी;नाटे कद का एक ऐसा विराट व्यक्तित्व जिसके आगे बड़े से बड़े व्यक्ति का कद भी बौना साबित होता था।एक ऐसा करिश्माई शख्सियत जिसने पूरी दुनिया को अहिंसा का पाठ पढ़ाया और सत्य की ताकत का एहसास कराया।पूरा भारतवर्ष उनको महात्मा,बापू और राष्ट्रपिता के संबोधन से संबोधित करता है।उनके व्यक्तित्व से समूचा विश्व प्रभावित रहा है। आज के युवाओं के चहेते आईफोन बनाने वाली कंपनी "एप्पल"के संस्थापक स्टीव जॉब्स गांधी जी के मुरीद थे।वे उनके सम्मान में उनके जैसे ही गोल फ्रेम का चश्मा पहनते थे। अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा किसी मृत व्यक्ति से मुलाकात का अवसर मिलने के प्रश्न पर उनसे मिलने की इच्छा जताते हैं।दलाई लामा, नेल्सन मंडेला समेत अनेक हस्तियां उनके व्यक्तित्व से प्रभावित हैं।
अहिंसा के इस पुजारी के सम्मान में संयुक्त राष्ट्र संघ ने सन् 2007 में उनकी जयंती को विश्व अहिंसा दिवस घोषित किया।सबसे बड़ी बात ब्रिटेन के पूर्व प्रधानमंत्री रहे जिस विंस्टन चर्चिल ने गांधी जी को 'अधनंगा फकीर' कहा था उसी चर्चिल के प्रतिमा के बगल में 4 मार्च 2015 को लंदन के पार्लियामेंट स्क्वायर में गांधी जी की 9 फुट ऊंची कांस्य प्रतिमा लगाई गई है।ये कुछ उदाहरण है हमारे बापू के विराट व्यक्तित्व के आभामंडल का।
2 अक्टूबर 1869 को गुजरात के पोरबंदर शहर में जन्म लेकर मोहनदास गांधी ने महात्मा की पदवी पाने तक एक लंबे संघर्ष का मार्ग तय किया है।सन् 1914 में बैरिस्टर बनकर स्वदेश वापसी के बाद वे चाहते तो एक वकील के रूप में अपना जीवन निर्वाह कर सकते थे। लेकिन उन्होंने पराधीनता की पीड़ा को महसूस किया और अहिंसा के मार्ग पर चलते हुए स्वतंत्रता प्राप्ति के कठिन मार्ग को अपने जीवन का लक्ष्य बनाया। अनेकों उतार चढ़ाव उनके जीवन में आते रहे पर वे अपने सिद्धांतों पर अडिग रहे।कोई भी कठिनाई उनके अटल नियम और निश्चय को तोड़ पाने में असफल रही।
स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए मीलों की पैदल यात्रा, लगातार देश भर में भ्रमण,देशभर के अपने अनुयायियों के साथ पत्र व्यवहार उनके जीवन चर्या का अभिन्न अंग था।
बापू कभी थकते नहीं थे। संयमित जीवनशैली को स्वयं अपनाते थे और अन्य लोगों को भी अपनाने के लिए प्रेरित करते थे।
भारतीय राजनैतिक आंदोलन में उन्होंने समूचे राष्ट्र का नेतृत्व किया।अनेक आंदोलनों का शंखनाद किया और ब्रिटिश सरकार की चूलें हिलाकर रख दिया।उनके इस सफर में पं जवाहरलाल नेहरू,सरदार पटेल और अनेक नेताओं ने उनके साथ कदम पर कदम मिलाकर काम किया।
उनकी आत्मकथा"सत्य के प्रयोग" एक खुली किताब है जिसमें उन्होंने बड़ी बेबाकी से अपने जीवन के प्रसंगों को उजागर किया है।हालांकि कुछ लोगों को गांधीजी के कुछ राजनैतिक निर्णय असहज लगते हैं और इस पर उनकी आलोचना भी होती रहती है।पर अंततोगत्वा वे सर्वमान्य नेता थे।
उनके जीवन की सरलता और सहजता प्रेरणादायक है।उनके विचार आज भी निराश मन में नई ऊर्जा का संचार करते हैं। बल्कि मुझे तो लगता है आज के मारकाट वाले दौर में उनके विचार और अधिक प्रासंगिक हैं।उनका कथन "आंख के बदले आंख फोड़ देने की सोच समूचे विश्व को अंधा बना देगी।"क्या गलत है?
30 जनवरी सन् 1948 को नाथूराम गोडसे ने इस महामना की हत्या कर दी।वह गांधी जी के कुछ निर्णय और विचारों से सहमत नहीं था।लेकिन गांधीजी का निधन भारत के लिए अपूरणीय क्षति थी।
गांधीजी के बारे में 2 अक्टूबर 1944 को प्रख्यात वैज्ञानिक "आइंस्टीन" ने कहा था कि-"आनेवाली नस्लें शायद मुश्किल से ही विश्वास करेंगी कि हाड़ मांस का बना हुआ कोई ऐसा व्यक्ति भी धरती पर चलता-फिरता था।"
गांधीजी की लोकप्रियता समूचे विश्व में है। हमारे छत्तीसगढ में भी दो बार उनका आगमन सन् 1920 और 1933 में हुआ था।ये ऐतिहासिक तथ्यों से ज्ञात होता है। गांधीजी से छत्तीसगढ़ का भी जुड़ाव है।
हमारे विकास खंड छुरा की सीमा से लगा हुआ महासमुंद जिले का एक छोटा सा गांव तमोरा है।माना जाता है कि इस ग्राम में भी गांधीजी का आगमन हुआ था, लेकिन इस संबंध में ऐतिहासिक दस्तावेज प्राप्त नहीं हैं।लेकिन गांधीजी की यादें ग्रामीणों के मन में आज भी बसती है।सन् 1930 में यहां तमोरा जंगल सत्याग्रह हुआ था,जिसका नेतृत्व स्व. शंकरलाल गनोदवाले,स्व.यति यतनलाल और तमोरा निवासी स्व. रघुवर दीवान ने किया था।इस स्थान पर 8 सितंबर से 24 सितंबर 1930 तक आंदोलन हुआ था।इस आंदोलन के दौरान एक आदिवासी बालिकाद दयावतीने अंग्रेज अधिकारी को तमाचा भी जड़ा था, जो स्व.रघुवर दीवान की भतीजी थी।आजादी के पश्चात सन् 1955 से ग्रामीणों के द्वारा आपसी सहयोग से प्रतिवर्ष गांधी जी के पुण्य तिथि के अवसर पर गांधीग्राम-तमोरा में गांधी मेला का आयोजन होता है। जहां आसपास के ग्रामीण जुटते हैं और राष्ट्रपिता को श्रद्धांजलि देकर कृतज्ञता ज्ञापित करते हैं। दिनकर के शब्दों के साथ बापू को भावभीनी श्रद्धांजलि-
लौटो, छूने दो एक बार फिर अपना चरण अभयकारी,
रोने दो पकड़ वही छाती, जिसमें हमने गोली मारी।
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