शनिवार, 5 मार्च 2022

गोधूलि बेला में...




शादियों का सीजन चल रहा है।रोज किसी ना किसी परिचित और पारिवारिक जन के यहां से वैवाहिक निमंत्रण के कार्ड प्राप्त हो रहे हैं।कार्ड के स्वरूप और डिजाइन में अनगिनत प्रयोग हो चुके हैं और सतत् जारी है। लेकिन एक चीज जो नहीं बदला है, वो है पाणिग्रहण का कार्ड में अंकित समय।
अक्सर आप लोग वैवाहिक कार्ड में पढ़ते होंगे, पाणिग्रहण गोधूलि बेला में।
अब ये गोधूलि बेला क्या है?और इसका क्या महत्व है? वर्तमान में अब ये महत्वपूर्ण है कि नहीं इस तथ्य को देख लेते हैं।समय के साथ क्या परिवर्तन वैवाहिक कार्यक्रम में क्या परिवर्तन हो रहा है,वो आप सब देख सुन रहे हैं।
हिंदू धर्म ग्रंथों के अनुसार शाम को जब पशु पक्षी दिनभर विचरण करके और गौ माता चारा चरने के बाद लौटती है, उस समय को गोधूलि बेला कहा जाता है।गो अर्थात गाय और धूलि अर्थात धूल।इसका तात्पर्य है कि वह समय जब गाय के चलने से धूल उड़कर अस्ताचलगामी सूर्य को ढंक लेती है।
इस समय को शास्त्रों में अत्यंत पवित्र और शुभ बताया गया है। इसलिए परिणय सूत्र में आबंधन के लिए इस समय को श्रेष्ठ माना जाता है। लगभग दसेक साल पहले तक गोधूलि बेला में ही पाणिग्रहण की रस्म पूरी की जाती थी।
लेकिन समय का चक्र सदैव गतिमान रहता है।अब गोधूलि बेला का कोई महत्व नहीं रहा। पाणिग्रहण की रस्म देर रात में संपन्न की जाती है। बारातियों और घरातियों के वैभव प्रदर्शन में ही पूरा समय निकल जाता है।
लेकिन इसका दुष्परिणाम भी समाज भुगत रहा है। मांगलिक कार्यक्रम के आयोजन में अनावश्यक खर्चे जुड़ चुके हैं और संबंध भी पहले जैसे मजबूत नहीं रहे।
जन्म जन्मांतर का संबंध कहे जाने वाले पति पत्नी के रिश्ते अब समझौते की डोरी से बांधकर बमुश्किल निभाए जाते हैं।प्रेम और समर्पण वाले दौर की विदाई हो चुकी है।

1 टिप्पणी:

Unknown ने कहा…

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