एक लंबी और नानस्टाप यात्रा से थकान स्वाभाविक थी।रात भर का रात्रि जागरण भी हुआ था तो धाम में पहुंचने के बाद जल्दी से कोई ठहरने की जगह खोजने कार्यक्रम था। तीर्थ क्षेत्र में धर्मशाला,यात्री लाॅज और होटलों की कमी नहीं होती।इन विकल्पों का विचार करने के बजाय पूर्व अनुभवियों के मतानुसार होटल में ठहरना तय हुआ और वो भी समुद्र के किनारे। हालांकि समुद्री बीच के किनारे के होटल थोड़े महंगे होते हैं बताए लेकिन समुद्र में स्नान पश्चात सादे पानी से स्नान करने की सुविधा को देखते हुए वहीं ठहरना ज्यादा उचित लगा।अब हमारी गाड़ी गोल्डन बीच की ओर दौड़ पड़ी। गोल्डन बीच का नजारा अद्भुत था चारों तरफ दुकान समुद्री उत्पाद बेचने वालों की भीड़ और लोगों का जमावड़ा। मैं पहली बार सागर के दर्शन कर रहा था। इसलिए उतरते ही थोड़ी देर खड़ा होकर दृश्य को निहारने लगा।चार सदस्य होटल ढूंढने निकल पड़े और घनश्याम भाई गाड़ी को किनारे कर वहीं खड़े रहे। बमुश्किल 2 मिनट नजारों का दर्शन करके लौटा तब तक एक कर्तव्यनिष्ठ ट्रैफिक आफिसर हमारी गाड़ी की फोटो खींच रहा था।पता चला वहां बीच के किनारे गाड़ी खड़ी करने की अनुमति नहीं है।हमसे चूक हो गई थी। घनश्याम और मैंने उनसे मान मनौव्वल किया कि बड़ी दूर से आए हैं...रहम कीजिए प्रभु!!!पर प्रभु मानने के लिए तैयार नहीं थे।बोले- आनलाइन चालान घर पहुंचेगा। गाड़ी हटाओ और आगे निकलो। पत्थर में सिर पटकने वाली बात थी।आज के समय में इतने घनघोर टाईप ईमानदार कर्मचारी मिलने की उम्मीद नहीं थी। निकलते समय गाड़ी के सारे दस्तावेज अप टू डेट करके निकले थे कि कोई परेशानी ना हो।और ये अलग टाईप की परेशानी आ गई थी।फिर भी हमने हिम्मत करके पूर्व अनुभवों के आधार पर उनसे अनुनय-विनय किया तो उनका कठोर हृदय पसीजा तत्पश्चात भाव ताव की रस्म अदायगी हुई और अंततः कांड का समापन हुआ। हमने कहा जय जगन्नाथ!!संकट टली। फिर गाड़ी आगे बढ़ाकर पुनः वापिस हुए और साथियों से संपर्क किया तो उन लोगों ने होटल का पता बताया और वर्मा सर खड़े मिले मार्गदर्शन के लिए। गाड़ी होटल के सामने खड़ी करके फ्रेश हुए।फिर लहरा लेने(समुद्री स्नान)के लिए प्रस्थान किया। समुद्र का नजारा अद्भुत था। बड़ी जलराशि के नाम पर अब तक सिर्फ गंगरेल बांध के दर्शन किए थे तो अथाह समुद्र की विशालता, लहरों का वेग और गर्जन मेरे लिए रोमांचक अनुभव था।वैसे हमारा शरीर 70% पानी से बना होता है तो पानी के प्रति प्रेम स्वाभाविक है। समुद्र के किनारे मृत जेली फिश बिखरे पड़े थे। स्थानीय लोगों के अनुसार हमेशा ऐसा नहीं होता है बताए कभी-कभी ऐसा हो जाता है क्योंकि जेलीफिश समुद्र के गहरे हिस्से में पाई जाती है।कुछ मस्त मिजाज के लोग जेलीफिश को ताज के समान सर पर रखकर फोटो खींचवा रहे थे।किसी ने बताया कि जेलीफिश का अगर बदन से स्पर्श हो जाए तो खुजली होती है।इतना सारा जनरल नालेज इकट्ठा करने बाद हम सबने समुद्र में छलांग लगाया और समुद्री लहरों ने हमें उछाल कर जहां का तहां पहुंचा दिया।यही बार बार की उछलकूद ही समुद्र स्नान का आनंद है। लगभग एक डेढ़ घंटे तक नहाने के बाद वापस हो रहे थे तो शंख और मोती बेचने वाले खरीदने के लिए मनुहार करने लगे। मोती का रहस्य मैं जान चुका था इसलिए बिल्कुल भी ध्यान नहीं दिया। लेकिन शंख खरीदने की इच्छा थी। लेकिन साथियों ने मना कर दिया कि बाद में खरीद लेंगे।एक शंख वाला 200 रु में 3 शंख देने के लिए तैयार हो गया था। लेकिन साथियों ने मना किया और बोले कि बाद में इससे सस्ते में मिलेगा। लेकिन मिला नहीं। कभी-कभी पहले किया सौदा ही ज्यादा लाभदायक होता है बजाय बाद के सौदे के।अवसर बार बार नहीं मिलता।खैर, स्नान पश्चात दोबारा स्नान हुआ।जो खाद्य सामग्री लाए थे उससे पेट पूजा किए और दोपहर 11 से 3 बजे तक होटल के एसी रुम में घोड़ा बेचकर सोए।जो घोड़ा हमने बेचा था उसे कुछ लोग समुद्र के किनारे पर्यटकों को घुमा रहे थे।हा..हा..हा..ये मजाक था।
3 बजे सोकर उठने के बाद समुद्र के किनारे एक रेस्टोरेंट में भोजन करने गए।शीशे के दरवाजे और एसी की सुविधा से लैस ऐसे रेस्टोरेंट में पर्यटक भोजन के लिए कम उस सुविधा के लिए भुगतान ज्यादा करते हैं।ऐसा मुझे लगता है। किनारे पर जली हुई रुखी रोटी,फ्राई दाल और पुनश्च मिक्स वेज का भक्षण किया। भोजन में रस नहीं था इसलिए रसपान करना नहीं लिखा हूं। भोजन उपरांत फिर होटल आए और अपनी गाड़ी से ट्रैफिक में उलझते जाने के बजाय रिक्शे या आटो से जाना तय किया।आटो वाले ने भगवान जगन्नाथ स्वामी के मार्ग वाली गली में लाकर छोड़ दिया। गली से ही मंदिर का शिखर दिखाई दे रहा था।नील चक्र के दर्शन हुए तो आटो से उतरते ही हम सबने समवेत स्वर में जय जगन्नाथ का उद्घोष किया।आटो वाले को पैसा देकर मंदिर के सामने वाली गली पर आगे बढ़ने लगे।महाडिक सर ने प्रभु जगन्नाथ से कोई मनौती मांगी रही होगी, इसलिए एक नाई के पास जाकर केशकर्तन करवाने लगे और तब तक हम लोग आस-पास के मकान और दुकान का जायजा लेने लगे। ज्यादातर लोगों ने अपने घर के कुछ हिस्सों को जीवन यापन के लिए लाॅज बना रखा है।नीचे दुकानें बनी है। जिसमें से ज्यादातर खाजा(जगन्नाथ पुरी की विशेष मिठाई जो प्रभु को भोग लगता है)की दुकान और पूजा सामग्री और सजावटी सामान बेचने की दुकाने हैं।मंदिर में मोबाईल वर्जित था इसलिए महाडिक सर के आने के बाद मंदिर के सामने के एक दुकानदार के यहां 120 रु में मोबाईल और चप्पल रखकर दर्शन के लिए कतारबद्ध हो गए।बाजू में ही पंडाल लगा था जिसमें भगवान जगन्नाथ स्वामी की रथ यात्रा के लिए रथ तैयार हो रहा था।रथ के लिए विशाल पहिए वहां रखे थे और कारीगर अपने कार्य में लगे हुए थे। कुछ देर के बाद मंदिर परिसर में प्रवेश हुआ तो भगवान जगन्नाथ स्वामी के एकल मूर्ति के दर्शन हुए। फिर सीढियां चढ़ते हुए मुख्य मंदिर तक पहुंचे। सीढ़ियों पर मात्र 10 रु में भगवान जगन्नाथ के लिए तुलसी का माला पंडे बेच रहे थे।उसी समय कुछ दंडधारी हरि बोल का उद्घोष करते ओड़िया भजन करते जत्थे के साथ पहुंचे। मंदिर की बनावट अद्भुत है। देखने लगे तो बस देखते ही रह गए। भारतीय वास्तुकला का अद्भुत प्रत्यक्ष प्रमाण सम्मुख था।जब हम मंदिर परिसर में पहुंचे उसी समय मंदिर के ध्वज को बदलने का रस्म चल रहा था।एक व्यक्ति उलटे ही देखते देखते मंदिर के शिखर तक जा पहुंचा। उसने अपने कमर में नये ध्वज को बांध रखा था। उसने शीर्ष पर पहुंच कर पुराने ध्वज को उतारा और उसमें बंधे हुए तुलसी पत्र को ऊपर से जनसमूह के लिए नीचे फेंक दिया।लोग उस प्रसाद को पाने के लिए टूट पड़े।किस्मत वालों को मिला,शेष को नहीं।इस रस्म के दौरान एक व्यक्ति साथ में और रहता है। इतने ऊंचे मंदिर के शिखर पर रोज चढ़ना उतरना किसी हिम्मत वाले का ही काम है।इस काम को करने वालों को नमन। ध्वज को बदलने का क्रम बारहों मास निर्बाध चलता रहता है। कहते हैं अगर ध्वज नहीं बदला गया तो मंदिर के पट 18 साल के लिए बंद हो जायेगा। हालांकि ऐसा अवसर आज तक नहीं आया है।
इस दर्शन के पश्चात भगवान जगन्नाथ जी के मूल मंदिर में दाखिल हुए तो वहां हनुमानजी के दर्शन हुए। भगवान जगन्नाथ के सम्मुख हनुमान जी की जो मूर्ति है , उसमें उन्होंने गदा के साथ ही तलवार भी धारण किया है,जो आमतौर पर देखने को नहीं मिलता।दूसरी तरफ गरुड़ जी की मूर्ति बनी है। गर्भगृह में भगवान जगन्नाथ,माता सोहद्रा और भगवान बलभद्र का विग्रह मन को मोहित कर देता है।ऐसा लगता है कि बस खड़े रहें और भगवान की मनोहारी छवि के दर्शन करते रहें। लेकिन भक्तों की अपार भीड़ के कारण ज्यादा देर तक वहां नहीं रुक सकते। फिर भी जितनी देर तक अवसर मिला एकटक देखते रहे।उसके बाद मंदिर परिसर से मैं जैसे ही निकला एक पंडे ने बेत की छड़ी पीठ पर मारी और दक्षिणा मांगने लगे।वह युवा था और मैंने जो दिया सो रख लिया। उसने मेरे इस भ्रम को भी दूर कर दिया जो लोगों से सुन रखा था कि जगन्नाथ मंदिर के पंडे लूटते हैं। उसने बताया कि मैं आपके लिए भगवान को भोग लगी मिठाई ला सकता हूं अगर आप राशि दें। मैंने पूछा कितने रुपए का आयेगा।वो बोले कि 100 रु से शुरू हो जाता है। मैंने उसे 150 रु दिए। फिर वो थोड़ी देर में मुझे ताड़ की टोकरी में भोग प्रसादी लाकर दे दिए। फिर हम सब लोगों ने परिसर के अन्य मंदिरों के भी दर्शन किए। वहां स्थित वट वृक्ष के पास राह चलते एक पंडे ने जबरदस्ती मेरे हाथ में रुद्राक्ष रख दिया और बोले भगवान कृपा करेंगे दक्षिणा दो। मैंने तुरंत उनको उनका रुद्राक्ष ये कहते हुए थमा दिया कि उनकी कृपा है तभी यहां तक पहुंचे हैं,और आगे निकल गया। श्रद्धालुओं के धार्मिक भावना का ऐसा शोषण मुझे सही नहीं लगता। वटवृक्ष के नीचे गणेशजी की सुंदर विशाल प्रतिमा है। वहीं पर पुनश्च जगन्नाथ प्रभु के एक और विग्रह के दर्शन हुए। फिर हम लोग आनंद बाजार चले गए। आनंद बाजार उस जगह को बोलते हैं जहां भगवान जगन्नाथ की महाप्रसादी का बाजार लगता है।श्रद्धालुगण अपनी कार्यक्षमता अनुसार प्रभु भोग का आनंद लेते हैं। अनेकानेक पकवानों से सुसज्जित दुकाने हैं।हर दुकानदार चखने के लिए महाप्रसाद देता है।कोई अगर सभी दुकानों तक घूमे तो उनका पेट भर जायेगा। हमने भी महाप्रसाद के भोग का रसपान किया और घर परिवार व इष्ट मित्रों, परिजनों के लिए महाप्रसाद और मिठाइयां खरीदीं। कहते हैं कि भगवान विष्णु बद्री धाम में स्नान करते हैं,द्वारिका धाम में वस्त्र श्रृंगार करते हैं, पुरी धाम में भोजन करते हैं और रामेश्वर धाम में शयन करते हैं। सचमुच पुरी धाम में भोजन की इतनी किस्में हैं कि भगवान खाते खाते छक जाते होंगे। मिठाई की भरमार है पुरी धाम में।चूंकि महाप्रसाद खाकर तृप्त हो गए थे इसलिए और खाना नहीं खाया।वापसी के बाद फिर समुद्र तट पर टहलने निकल पड़े। वहां पर एक सैंड आर्टिस्ट ने मां दुर्गा की बेहतरीन कलाकृति बनाई थी।साथ ही अपनी कला प्रदर्शन के लिए स्वैच्छिक सहयोग मांग रहे थे।पुरी मशहूर सैंड आर्टिस्ट सुदर्शन पटनायक की कर्मभूमि है तो यहां ऐसे कलाकारों का मिलना स्वाभाविक है।एक डिब्बा सामने रखा था।लोग अपनी इच्छानुसार सहयोग कर रहे थे। यहां पर रात में घूमना और समुद्री लहरों पर घूमना आनंददायक होता है। थोड़ी देर घूमने के बाद सो गए। अगले दिन कोणार्क सूर्य मंदिर के दर्शन और वापसी का प्रोग्राम था।उसकी बात अंतिम किस्त अगले पोस्ट में...जय जगन्नाथ!!!
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें