सोमवार, 7 अक्टूबर 2024

कोणार्क.. अद्भुत अद्वितीय स्थापत्य

 

   




पुरी में रात्रि विश्राम पश्चात लगभग सुबह साढ़े बजे हमने होटल छोड़ दिया और चल पड़े भगवान साक्षी गोपाल के दर्शन के लिए। वहां पर पंडे पहुंचने के बाद तुरंत बही खाता में नाम दर्ज करवाने के लिए बोलने लगे। उसके लिए कुछ दानराशि देनी पड़ती है। मैंने और घनश्याम ने नहीं लिखवाया। भगवान हमको यहां तक लाए हैं वो खुद साक्षी हैं करके।
वहां की मूर्ति बहुत सुंदर हैं। कहते हैं बांके बिहारी जी खुद चलकर जगन्नाथ धाम में पहुंचे हैं।कथा लंबी है इसलिए नहीं लिख रहा हूं।साक्षी गोपाल जी के दर्शन पश्चात हम लोग कोणार्क सूर्य मंदिर देखने चले गए। अद्भुत अद्वितीय स्थापत्य है। कोणार्क का मेरा ये पहला दर्शन था। उससे पहले 20 रु के नोट में ही कोणार्क मंदिर के चक्के का दर्शन किया था।
शिकार, कामक्रीड़ा और जीवन के विविध प्रसंगों को बहुत ही सुन्दर ढंग से कलाकारों ने पत्थर पर उकेरा है। बताते हैं कि 12 साल तक 1200 श्रमिकों ने दिन रात एक करके इस मंदिर को तैयार किया था।अकबर के इतिहासकार अबुल फजल के मुताबिक इन 12 वर्षों में उत्कल राज्य के संपूर्ण राजस्व को इसके निर्माण में लगा दिया गया था।
दोपहर 2 बजे के लगभग कोणार्क से घर वापसी के लिए निकले।इस बार रास्ता हमने बदल लिया था। खुर्दा होते हुए सरायपाली मार्ग का रास्ता हमने लिया था। रास्ते भर मिलने वाले चटर पटर व्यंजनों का भोग लगाते आ रहे थे। जहां कुछ नया नजर आता, गाड़ी रुक जाती थी। रात्रि में एक जगह 100 रु पत्तल की दर से स्वादिष्ट भोजन का आनंद लिया।फोटो देख सकते हैं।
कुछ मिलाकर जीवन की एक अनोखी और यादगार यात्रा थी,श्री जगन्नाथ पुरी की यात्रा।अवसर मिले तो चूकिए मत...।पुरी यात्रा वृत्तांत का समापन यहीं कर रहा हूं। मिलते हैं अगले पोस्ट में किसी नई पुरानी यादों के संग...जय जगन्नाथ!!!


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