अभी पूरे देश को हैदराबाद की घटना ने हिलाकर रख दिया। सर्वत्र इस अमानुषिक कृत्य की निंदा की जा रही। आरोपियों को तत्काल फांसी पर चढाने की मांग को लेकर लोग आंदोलनरत हैं। पीड़िता को न्याय दिलाने के लिए आम आदमी,युवा वर्ग और मिडिया भी उद्वेलित है।ये अच्छी बात है और होनी भी चाहिए।
इस घटना के पूर्व एक अमानवीय घटनाक्रम साल 2012 में भी घटित हुआ था।जब पूरा देश पीड़िता के लिए न्याय की मांग को लेकर उठ खड़ा हुआ था। तब दामिनी और निर्भया कांड के नाम से चर्चित अनाचार की उस घटना ने शासन-प्रशासन को कुंभकर्णी नींद से जागने के लिए मजबूर कर दिया था। इंसानियत को शर्मसार करने वाली उस घटना ने समूचे देश को हिलाकर रख दिया था।जन आंदोलन के दबाव में तब पीड़िता को न्याय दिलाने की त्वरित कोशिश की गई।सभी आरोपियों की गिरफ्तारी के बाद उनको सजा दिलाने का त्वरित प्रयास हुआ। तब वकीलों ने आरोपियों का मुकदमा लडने से इंकार कर दिया और भारत की उस मासूम बच्ची के नाम पर शासन की ओर से निर्भया फंड की स्थापना की गई।जिसके तहत प्राप्त राशि को महिलाओं और बच्चियों की सुरक्षा में खर्च करने का प्रावधान रखा गया।
उस लोमहर्षक घटना के बाद बलात्कार संबंधी सजा के नियमों में बदलाव किया गया और ऐसे जघन्य अपराध के लिए कठोर दंड की व्यवस्था की गई।तब ऐसा लगा जैसे देश में अब बेटियां सुरक्षित हो गई।अब ऐसे अपराधों में कमी आयेगी।लेकिन इस सोच के ठीक विपरीत दुष्कर्म की घटनाओं में लगातार इजाफा हो रहा है।ज्यादातर ऐसी घटनाएं उत्तर भारत के क्षेत्रों में ज्यादा देखने-पढने में आता था। धीरे-धीरे ऐसी घटनाएं भारत के कोने-कोने से समाचार पत्र की सुर्खियां बनने लगीं।
बीते 27 नवंबर की रात घटे हैदराबाद दुष्कर्म की घटना से ये साबित हो गया कि नरपिशाच सर्वत्र मौजूद है।इंसानी खाल में छुपे भेड़िए हर जगह खुले घूम रहे हैं।जरा सी चूक इन भेड़ियों के लिए मौका साबित हो रहा है।हम अपनी बेटियों को इन वहशी दरिंदों से बचाने में नाकाम साबित हो रहे हैं।शासन का सुरक्षातंत्र ऐसी घटनाओं से प्राय: अनभिज्ञ ही बना रहता है।एक ओर हम मातृशक्ति के उपासक के रूप में पूरी दुनिया में अपनी बड़ाई करते फिरते हैं। नवरात्रि के नौ दिन शक्ति की आराधना में बिताते हैं।नवरात के अंतिम दिन नौ कन्या पूजन का विधान भी करते हैं।तो फिर ये नरपिशाच,नराधम,और वहशी दरिंदे कहां से पैदा हो रहे हैं। बेटियां हर जगह अपनी सुरक्षा को लेकर चिंतित क्यों रहती हैं?हर तरफ घूरने वाली निगाहों से अपने आप को बचाने की चेष्टा क्यो?क्यों अकेली औरत को सब मौका समझते हैं?शायद इस क्यों का जवाब बहुतेरों के पास नहीं है।
आज तकनीक ने आदमी को सुविधा संपन्न बना दिया है। लेकिन तकनीक के कारण ही आज अपराध में बढ़ोतरी भी हो रही है। इंटरनेट उपयोग की खुली छूट ने देश के बच्चों और युवा पीढ़ी का बेड़ा गर्क कर रखा है। इंटरनेट पर अश्लील सामग्री की भरमार है।इन सामग्रियों के कारण बच्चों से लेकर बूढों तक के दिमाग में विकृति आ रही है। मोबाइल के आगमन से लोगों का एकाकीपन बढ रहा है।लोग वास्तविकता के बजाय आभासी दुनिया में रमने लगे हैं।लोग भले ही अपने पड़ोसी को न पहचानते हों पर सोशल मीडिया के माध्यम से देश दुनिया के लोगों के साथ परिचय रखते हैं।ये अच्छे संकेत नहीं हैं।
जब हम परस्पर जुडाव और एक दूसरे के प्रति सम्मान की भावना रखते हैं तो एक अपनेपन का एहसास होता है।हमारी नई पीढ़ी को तकनीक के ज्ञान के साथ-साथ संस्कार देने की भी जरूरत है ताकि वे सबका सम्मान करना सीख सकें।रिश्तों की मर्यादा और अहमियत को समझ सकें।हमें अपनी सामाजिक जिम्मेदारी समझनी होगी।अपनी बहन बेटियों की सुरक्षा के प्रति सचेत रहना होगा।पहले गांवों में परंपरा थी सबकी बहू बेटियों को अपना समझने की।पूरा का पूरा गांव रिश्तों की डोर से बंधा होता था।तब किसी की नीयत गंदी नहीं होती थी।और गंदी नियत के लिए कठोर सजा तय हुआ करती थी।हम अपने धर्म ग्रंथों को खोलकर देखेंगे तो पाएंगे कि स्त्री के सम्मान की रक्षा के लिए रामचंद्र जी ने रावण को उसी के घर में जाकर मारा था।गंदी नियत वाले रावण की पूरी लंका जला दी गई थी। महाभारत के प्रसंग में नारी अपमान करने वाले दु:शासन के छाती को चीरा गया था।दुर्योधन की टांगे तोड़ दी गई थी। हमें भी दुष्कर्म करने वाले के लिए ऐसे ही कठोर दंड की व्यवस्था करनी होगी ताकि किसी भी नराधम का साहस न हो ऐसे दुष्कृत्य के लिए।दुष्कर्मी केअपराध को साबित करने के लिए प्रत्येक राज्य में फोरेंसिक लैब की स्थापना की जानी चाहिए ताकि अपराध जल्द से जल्द साबित हो और पीड़ित को न्याय मिले।पुलिस स्टेशन और कोर्ट में खाली पड़े पदों को भरा जाए ताकि स्टाफ की कमी का रोना बंद हो और न्याय प्रक्रिया सहज और सुलभ बन सके। पीड़िता के प्रति सामाजिक नजरिए में बदलाव की भी जरूरत है।उनके साथ ऐसा व्यवहार न हो जो उन्हें ठेस पहुंचाए।प्राय:देखने में आता है कि अपराधी से ज्यादा पीड़िता का जीवन कष्टप्रद हो जाता है।उनके प्रति सम्मान और स्नेह का भाव होना चाहिए तिरस्कार का नहीं।
शासन को स्वास्थ्य,शिक्षा, सुरक्षा और न्याय के लिए सजग होना होगा।मुफ्त की चीजें बांटने और अन्य सहूलियत देकर लोगों को अकर्मण्य बनाने के बजाय उक्त चारों व्यवस्था को सुधारने का यत्न करना चाहिए।न्याय मिलने में देरी से पीड़ित का आत्मविश्वास डगमगाता है।सजा में नरमी और देरी से अपराधियों के हौसले बुलंद होते है।शासन को ऐसे घटनाक्रम में आरोपियों की सजा के लिए तुरंत कार्रवाई की जरूरत है।
ईश्वर करे आगे से किसी और बेटी के साथ ऐसा अमानवीय घटना ना घटे। पीड़िता को श्रद्धांजलि,नमन।
रीझे
टेंगनाबासा(छुरा)
इस घटना के पूर्व एक अमानवीय घटनाक्रम साल 2012 में भी घटित हुआ था।जब पूरा देश पीड़िता के लिए न्याय की मांग को लेकर उठ खड़ा हुआ था। तब दामिनी और निर्भया कांड के नाम से चर्चित अनाचार की उस घटना ने शासन-प्रशासन को कुंभकर्णी नींद से जागने के लिए मजबूर कर दिया था। इंसानियत को शर्मसार करने वाली उस घटना ने समूचे देश को हिलाकर रख दिया था।जन आंदोलन के दबाव में तब पीड़िता को न्याय दिलाने की त्वरित कोशिश की गई।सभी आरोपियों की गिरफ्तारी के बाद उनको सजा दिलाने का त्वरित प्रयास हुआ। तब वकीलों ने आरोपियों का मुकदमा लडने से इंकार कर दिया और भारत की उस मासूम बच्ची के नाम पर शासन की ओर से निर्भया फंड की स्थापना की गई।जिसके तहत प्राप्त राशि को महिलाओं और बच्चियों की सुरक्षा में खर्च करने का प्रावधान रखा गया।
उस लोमहर्षक घटना के बाद बलात्कार संबंधी सजा के नियमों में बदलाव किया गया और ऐसे जघन्य अपराध के लिए कठोर दंड की व्यवस्था की गई।तब ऐसा लगा जैसे देश में अब बेटियां सुरक्षित हो गई।अब ऐसे अपराधों में कमी आयेगी।लेकिन इस सोच के ठीक विपरीत दुष्कर्म की घटनाओं में लगातार इजाफा हो रहा है।ज्यादातर ऐसी घटनाएं उत्तर भारत के क्षेत्रों में ज्यादा देखने-पढने में आता था। धीरे-धीरे ऐसी घटनाएं भारत के कोने-कोने से समाचार पत्र की सुर्खियां बनने लगीं।
बीते 27 नवंबर की रात घटे हैदराबाद दुष्कर्म की घटना से ये साबित हो गया कि नरपिशाच सर्वत्र मौजूद है।इंसानी खाल में छुपे भेड़िए हर जगह खुले घूम रहे हैं।जरा सी चूक इन भेड़ियों के लिए मौका साबित हो रहा है।हम अपनी बेटियों को इन वहशी दरिंदों से बचाने में नाकाम साबित हो रहे हैं।शासन का सुरक्षातंत्र ऐसी घटनाओं से प्राय: अनभिज्ञ ही बना रहता है।एक ओर हम मातृशक्ति के उपासक के रूप में पूरी दुनिया में अपनी बड़ाई करते फिरते हैं। नवरात्रि के नौ दिन शक्ति की आराधना में बिताते हैं।नवरात के अंतिम दिन नौ कन्या पूजन का विधान भी करते हैं।तो फिर ये नरपिशाच,नराधम,और वहशी दरिंदे कहां से पैदा हो रहे हैं। बेटियां हर जगह अपनी सुरक्षा को लेकर चिंतित क्यों रहती हैं?हर तरफ घूरने वाली निगाहों से अपने आप को बचाने की चेष्टा क्यो?क्यों अकेली औरत को सब मौका समझते हैं?शायद इस क्यों का जवाब बहुतेरों के पास नहीं है।
आज तकनीक ने आदमी को सुविधा संपन्न बना दिया है। लेकिन तकनीक के कारण ही आज अपराध में बढ़ोतरी भी हो रही है। इंटरनेट उपयोग की खुली छूट ने देश के बच्चों और युवा पीढ़ी का बेड़ा गर्क कर रखा है। इंटरनेट पर अश्लील सामग्री की भरमार है।इन सामग्रियों के कारण बच्चों से लेकर बूढों तक के दिमाग में विकृति आ रही है। मोबाइल के आगमन से लोगों का एकाकीपन बढ रहा है।लोग वास्तविकता के बजाय आभासी दुनिया में रमने लगे हैं।लोग भले ही अपने पड़ोसी को न पहचानते हों पर सोशल मीडिया के माध्यम से देश दुनिया के लोगों के साथ परिचय रखते हैं।ये अच्छे संकेत नहीं हैं।
जब हम परस्पर जुडाव और एक दूसरे के प्रति सम्मान की भावना रखते हैं तो एक अपनेपन का एहसास होता है।हमारी नई पीढ़ी को तकनीक के ज्ञान के साथ-साथ संस्कार देने की भी जरूरत है ताकि वे सबका सम्मान करना सीख सकें।रिश्तों की मर्यादा और अहमियत को समझ सकें।हमें अपनी सामाजिक जिम्मेदारी समझनी होगी।अपनी बहन बेटियों की सुरक्षा के प्रति सचेत रहना होगा।पहले गांवों में परंपरा थी सबकी बहू बेटियों को अपना समझने की।पूरा का पूरा गांव रिश्तों की डोर से बंधा होता था।तब किसी की नीयत गंदी नहीं होती थी।और गंदी नियत के लिए कठोर सजा तय हुआ करती थी।हम अपने धर्म ग्रंथों को खोलकर देखेंगे तो पाएंगे कि स्त्री के सम्मान की रक्षा के लिए रामचंद्र जी ने रावण को उसी के घर में जाकर मारा था।गंदी नियत वाले रावण की पूरी लंका जला दी गई थी। महाभारत के प्रसंग में नारी अपमान करने वाले दु:शासन के छाती को चीरा गया था।दुर्योधन की टांगे तोड़ दी गई थी। हमें भी दुष्कर्म करने वाले के लिए ऐसे ही कठोर दंड की व्यवस्था करनी होगी ताकि किसी भी नराधम का साहस न हो ऐसे दुष्कृत्य के लिए।दुष्कर्मी केअपराध को साबित करने के लिए प्रत्येक राज्य में फोरेंसिक लैब की स्थापना की जानी चाहिए ताकि अपराध जल्द से जल्द साबित हो और पीड़ित को न्याय मिले।पुलिस स्टेशन और कोर्ट में खाली पड़े पदों को भरा जाए ताकि स्टाफ की कमी का रोना बंद हो और न्याय प्रक्रिया सहज और सुलभ बन सके। पीड़िता के प्रति सामाजिक नजरिए में बदलाव की भी जरूरत है।उनके साथ ऐसा व्यवहार न हो जो उन्हें ठेस पहुंचाए।प्राय:देखने में आता है कि अपराधी से ज्यादा पीड़िता का जीवन कष्टप्रद हो जाता है।उनके प्रति सम्मान और स्नेह का भाव होना चाहिए तिरस्कार का नहीं।
शासन को स्वास्थ्य,शिक्षा, सुरक्षा और न्याय के लिए सजग होना होगा।मुफ्त की चीजें बांटने और अन्य सहूलियत देकर लोगों को अकर्मण्य बनाने के बजाय उक्त चारों व्यवस्था को सुधारने का यत्न करना चाहिए।न्याय मिलने में देरी से पीड़ित का आत्मविश्वास डगमगाता है।सजा में नरमी और देरी से अपराधियों के हौसले बुलंद होते है।शासन को ऐसे घटनाक्रम में आरोपियों की सजा के लिए तुरंत कार्रवाई की जरूरत है।
ईश्वर करे आगे से किसी और बेटी के साथ ऐसा अमानवीय घटना ना घटे। पीड़िता को श्रद्धांजलि,नमन।
रीझे
टेंगनाबासा(छुरा)
2 टिप्पणियां:
सही कहना है एक दो महिने मे जाँच करके अगर वह सही मे अपराधी है बलात्कार का तो ऐसे लोगो को जेल मे नही किसी चौराहे मे फाँसी नही पत्थर लाठी से तड़पा तड़पा के मारा जाय और उसका लाइव प्रसारन किया जाय ताकि देख कर डर इतना अधिक हो जाय कि कोई सपने मे भी मत सोचे ऐसे दुष्कर्म करने के लिए।
Bilkuल सहि केहेव आप हा गा, आइसं साले कुकुर मन ला फांसी मा लटका देना ही जादा बने रही ताकि कोनो आइसं करेके के पहिली सौ बार सोचय्य
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