बहुत दिनों के बाद आज खुल्ला पान खरीदने के लिए पानठेला (पान बेचने के खोमचे) में जाना हुआ। दुकानदार ने बड़ी उम्मीद से पूछा-कौन सा पान बनाऊं?तो मैंने उनको मायूस करने वाला जवाब दिया-भाई मुझे खुल्ले पान चाहिए,कुछ काम है।तो उन्होंने दस रूपए लेकर मुझे बंगला पान के चार पत्ते कागज में लपेटकर थमा दिए। मैं भी पान लेकर लौट आया।मुझे ताज्जुब हुआ कि उसने बिना पूछे मुझे बंगला पान ही क्यों दिया?
अगले दिन उनके दुकान पर फिर जाना हुआ तो मैंने उनसे अपने मन की बात कही।तो उन्होंने बताया कि ज्यादातर पूजा पाठ के लिए बंगला पान का ही उपयोग होता है, इसलिए बिना पूछे ही दे दिया।ये होता है कामन सेंस!!!
वैसे पानवाले भाई साहब की याददाश्त की दाद देनी चाहिए क्योंकि उनको अपने ग्राहकों के टेस्ट और पसंद हमेशा याद रहती है।फलाने साहब की पसंद ये है,ढेकाने साहब ये बनवाते हैं।एकदम कंम्प्यूटर के मेमोरी में जैसे फिट कर दी हो। बचपन में जब किसी को पान मंगाना होता था तो वो सामनेवाले पान दुकान का नाम बता दिया करते थे और हम जाकर पानवाले को उन सज्जन का नाम बता दिया करते थे तब वो फौरन ही सामने वाले बंदे की मनपसंद पान बना दिया करते थे।बचपन में कुछ पान में डलने वाले सामानों के नाम बड़े अच्छे लगते थे। रिमझिम,किमाम,रत्ना,चमन चटनी,बाबा 420 वगैरह।उस समय हमको मालूम भी नहीं होता था कि कुछ लोग पान में तंबाकू भी डलवाया करते थे। खैर,जो बीत गई सो बात गई।
अब बात पान की करते हैं।पान भारतीय संस्कृति का हिस्सा रही है।देवपूजा से लेकर खान-पान तक में पान का उपयोग समाहित है।संस्कृत भाषा में पान को नागवल्ली और तांबूल कहा जाता है।हिंदी में पान और हमारी छत्तीसगढी में बीरो पान।नाम कुछ भी हो पर पान वही है,दिल के आकार वाली। भारत में पान की ज्यादातर खेती दक्षिण प्रदेशों में होती है। छत्तीसगढ़ में एक समय में छुईखदान का पान फेमश हुआ करता था।पान की कई प्रजातियां होती हैं और स्वाद और गुण के आधार पर नाम भी अलग-अलग होते हैं। मैं ज्यादा नाम तो नहीं जानता पर कपूरी,मीठा पत्ती और बंगला पान आदि नामों से परिचित हूं।।पान सिर्फ मुंह की शोभा या स्वाद बढाने के लिए नहीं खाया जाता,पान में औषधीय गुण भी होते हैं।भोजन के बाद पान खाना स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से अच्छा होता है और पाचन में सहायक होता है।ये मुंह को बैक्टीरियल संक्रमण से भी बचाते हैं।कटने छिलने पर घाव में बांधने से घाव जल्दी भर जाते हैं।वैसे हमारे यहां माउथ फ्रेशनर के रुप में ही ज्यादातर पान का उपयोग करते हैं। इसमें डाले जाने वाले मसाले के अनुसार पान के नाम भी अलग अलग होते हैं।जैसे चुनिया,सादा,मीठा मसाला वगैरह।चुनिया पान खानेवालों का अंदाज ही निराला होता है।वो पान चबाते चबाते बीच-बीच में चूना चाटते रहते हैं।बताते हैं कि इससे कैल्शियम की कमी पूरी होती है।
एक दौर होता था जब दुनिया भर की ब्रेकिंग न्यूज पान के ठेले खोमचे से ही मिला करती थीं।पान चबाते-चबाते दुनिया भर की बातें इधर से उधर हुआ करती थी यहां।इन ठेलों में एक आईना और एक जलती हुई ढिबरी जरूर होती थी।मै छोटा था तब हर पान दुकान में दिन के उजाले में भी जलती हुई ढिबरी को देखकर आश्चर्य होता था।दिन में भला ढिबरी जलाने का क्या मतलब?
थोड़ा बड़ा होने के बाद समझ में आया कि तब दुकानदार माचिस मांगने वालों से तंग आकर और धुम्रपान करने वालों की सुविधा के लिए दिन में भी ढिबरी जलाया करते थे। जहां सिगरेट कैस के छोटे-छोटे कतरन काट के रखे होते।उसी से ढिबरी की लौ से धुम्रपान के शौकीन लोग बीड़ी सिगरेट जलाया करते थे।है न मितव्यता की बात!!
पान के असर से बालीवुड भी अछूता नहीं रहा है।एक से बढ़कर एक लाजवाब गीत पान पर बने हैं।खईके पान बनारस वाला तो याद ही होगा और पान खाए संईया हमारो सांवली सुरतिया होंठ लाल लाल" को कौन भूल सकता है। छत्तीसगढ़ी गीत पान खई लेबे मोर राजा ने भी धूम मचाया था। संबलपुरी गीत ए पानवाला बाबू तब मेले मडई में दूर तक गूंजा करते थे।
पान के असर से बालीवुड भी अछूता नहीं रहा है।एक से बढ़कर एक लाजवाब गीत पान पर बने हैं।खईके पान बनारस वाला तो याद ही होगा और पान खाए संईया हमारो सांवली सुरतिया होंठ लाल लाल" को कौन भूल सकता है। छत्तीसगढ़ी गीत पान खई लेबे मोर राजा ने भी धूम मचाया था। संबलपुरी गीत ए पानवाला बाबू तब मेले मडई में दूर तक गूंजा करते थे।
पान अतिथि सत्कार का माध्यम हुआ करते थे। तब गुटखे का चलन शुरू नहीं हुआ था।पान में थोड़ी सी महंगाई का दौर आया और विकल्प के रूप में लोगों ने गुटखे को अपनाया।अठन्नी में मिलने वाले गुटखे ने देश की युवा पीढ़ी,लोगों का स्वास्थ्य,घर की दीवारों और इन पान दुकानों का बेड़ा गर्क कर रखा है। स्वास्थ्य के लिए बेहद ख़तरनाक गुटखे का प्रयोग बढता ही जा रहा है। इससे मुंह के कैंसर जैसी बिमारियों में इजाफा हुआ है। खासतौर से देश की जवान पीढ़ी इसके घातक चपेट में है। ईश्वर करे पान का दौर फिर वापस आए और हमारी पीढियां सुरक्षित रहें।अब पान विक्रेता फंक्शन वगैरह में पान लगाने की बुकिंग लेकर इस पेशे को कायम रखे हुए है। खासतौर से शादी की पार्टियों में इनकी विशेष डिमांड होती है।कुछ लोगों ने इसमें रचनात्मकता जोडकर नाम और दाम भी कमाया है। गरियाबंद के एक डिजाइनर पानवाले ने पान की गिलौरी को अलग-अलग रूप देकर प्रसिद्धि प्राप्त किया है।उनकी इस कला को विभिन्न टेलीविजन चैनलों ने प्रसारित किया था। फिल्म कलाकार भी उनके पान के दीवाने हैं।
पान का बीड़ा उठाने से ही "बीड़ा उठाना"कहावत बनी है शायद।किसी भी जोखिम भरे या मुश्किल काम को करते वक्त कहा जाता है-अमुक ने फलाने काम का बीड़ा उठाया है।मतलब बीड़ा उठाना साहस का काम होता है।खैर, हमारे यहां साहसी बंदों की भरमार है। छत्तीसगढ़ में भी कहा जाता है-सियान संग रहिबे त खाबे बीरो पान,लइका संग रहिबे त कटाबे दूनों कान।इसका मतलब ये है कि बुद्धिमान आदमी के साथ रहने से पान खाने को मिल सकता है जबकि नादान के साथ रहने से कान कटाने तक की नौबत आ सकती है।
सदा गुलजार रहनेवाले इन पानठेलों पर आज वक्त की मार और बदलाव से सन्नाटा पसरा हुआ है।इस धंधे से जुड़े लोगों के सामने जीवन यापन की समस्या खड़ी हो गई है।कामना करते हैं जल्द ही पहले की तरह यहां रौनक लौटे।आज यहीं पर विश्राम...बाकि बातें अगली बार.. राम-राम
रीझे
टेंगनाबासा
पान का बीड़ा उठाने से ही "बीड़ा उठाना"कहावत बनी है शायद।किसी भी जोखिम भरे या मुश्किल काम को करते वक्त कहा जाता है-अमुक ने फलाने काम का बीड़ा उठाया है।मतलब बीड़ा उठाना साहस का काम होता है।खैर, हमारे यहां साहसी बंदों की भरमार है। छत्तीसगढ़ में भी कहा जाता है-सियान संग रहिबे त खाबे बीरो पान,लइका संग रहिबे त कटाबे दूनों कान।इसका मतलब ये है कि बुद्धिमान आदमी के साथ रहने से पान खाने को मिल सकता है जबकि नादान के साथ रहने से कान कटाने तक की नौबत आ सकती है।
सदा गुलजार रहनेवाले इन पानठेलों पर आज वक्त की मार और बदलाव से सन्नाटा पसरा हुआ है।इस धंधे से जुड़े लोगों के सामने जीवन यापन की समस्या खड़ी हो गई है।कामना करते हैं जल्द ही पहले की तरह यहां रौनक लौटे।आज यहीं पर विश्राम...बाकि बातें अगली बार.. राम-राम
रीझे
टेंगनाबासा
2 टिप्पणियां:
विस्तृत लिखा गया है,बढ़िया है।
धन्यवाद दीदी
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