छत्तीसगढ़ गांवों का प्रदेश है। यहां शहरी आबादी कम है ग्रामीण आबादी ज्यादा है और गांवों की आय का प्रमुख स्रोत होता है कृषि और पशुपालन।बीते कुछ वर्षों से छत्तीसगढ़ ने कृषि कार्य में यांत्रिक स्वरूप लिया है।फलत:कृषि कार्यों में उपयोग होनेवाला हमारा पशुधन अनुपयोगी और तिरस्कृत हो गया।कभी गौठानों और घर के गौशाला की शोभा बढ़ाने वाला पशुधन लावारिस अवस्था में यत्र-तत्र भटकने पर विवश हुआ। आधुनिक जीवनशैली के कारण होने वाले गंभीर बिमारियां अब गांवों तक पहुंच रही है।लोग धनलिप्सा के चक्कर में स्वयं यंत्रवत व्यवहार करने लगे है।कभी गांवों में दूध की नदिया बहा करती थी अब वहां दारु का गंदा नाला बहता है। छत्तीसगढ़ के गांवों का स्वरूप अब कुछ विकृत सा होता जा रहा है।
कल छत्तीसगढ़ शासन द्वारा एक महत्वाकांक्षी योजना की घोषणा की गई है-गोधन न्याय योजना।पूरे देश में अपनी तरह की यह अनूठी योजना है जिसके अंतर्गत गांव के पशुपालकों से गांव में कार्यरत स्व सहायता समूह के माध्यम से गोबर खरीदने का कार्य किया जायेगा।यह छत्तीसगढ़ शासन के सत्ता प्राप्ति के समय की योजना नरवा गरवा घुरवा बारी योजना का ही एक अंग है जिसके माध्यम से गांव गांव में रोजगार सृजन का कार्य करने का उद्देश्य है।इस योजना में पशुधन द्वारा प्राप्त गोबर को इकट्ठा कर उसे वर्मी कंपोस्ट खाद बनाया जायेगा जिसका उपयोग छत्तीसगढ़ के खेतों में जैविक खाद के रूप में होगा और रासायनिक खाद के उपयोग में कमी आयेगी।उत्पादन अधिक होने की दशा में अन्य राज्यों को भी खाद बेचने का लक्ष्य रखा गया है।
छत्तीसगढ़ शासन की यह योजना नि:संदेह बहुत उपयोगी होगा ,अगर धरातल पर यह उचित ढंग से कार्य रूप में परिणीत होगा।प्राय:देखने में आता है कि ज्यादातर सरकारों की बहुत सी योजनाएं पावन उद्देश्य लेकर पैदा होती है और दुखद अंत के साथ परमगति को प्राप्त होती है। पूर्ववर्ती शासन का एक महत्वाकांक्षी योजना और नारा याद आ रहा है-तेल नहीं अब खाड़ी से,डीजल मिलेगा बाड़ी से।जैव ईंधन उत्पादन के पावन लक्ष्य को लेकर बनाई गई योजना करोड़ों रूपयों के खर्च के साथ पतन को प्राप्त हुई।हम आज भी ईराक -ईरान का ईंधन उपयोग कर रहे हैं। छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा बहुत से गांवों में गौठानों का निर्माण किया गया है जहां सर्वप्रथम इस योजना का क्रियान्वयन होगा।इस योजना को सफल बनाने में शासन, प्रशासन के साथ गांवों को भी अहम भूमिका निभानी पड़ेगी। वर्तमान में गांवों में लावारिस पशुओं के कारण किसानों को आर्थिक नुकसान उठाना पड़ रहा है।ये पशु हादसे का सबब भी बनते हैं जिसके कारण जान माल की हानि की खबरें समाचार पत्रों में स्थान पाती हैं।इन सबका निवारण इस योजना से हो सकता है।अभी गांवों में पशुधन निरर्थक है क्योंकि उनसे उनको आर्थिक लाभ नहीं हो पा रहा है।जब ये पशुधन आय के स्रोत बनेंगे तो लोग उनकी सुरक्षा करेंगे,उनको पुनः गौशालाओं में जगह मिलेगा और ये बेजुबान यत्र तत्र भटकेंगे नहीं।
जैविक कृषि आज समय की मांग है। उत्पादकता बढ़ाने के लिए कृषि में अंधाधुंध विषैली रासायनिक खादों के प्रयोग से अनाज भी विषैले हो रहे हैं।इस योजना के सफल क्रियान्वयन से इसमें कमी आयेगी। पशुपालन का कार्य गांवों में फिर से समृद्ध होगा। गौवंश का ध्यान रखनेवाले यदुवंशियों में पुनः उत्साह का संचार होगा और वे पैतृक व्यवसाय में फिर से जुड़ेंगे।एक अच्छी सोच और योजना के लिए शासन को शुभकामनाएं....
रीझे
1 टिप्पणी:
बहुत ही शानदार लेख आदरणीय यादव सर जी🙏🙏👌👌😄
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