शुक्रवार, 19 नवंबर 2021

वक्त से डरकर रहें...


 व्यस्तता इतनी अधिक है कि लेखन गतिविधियां लगभग अवरूद्ध सा है। इसलिए ब्लाॅग अभी थम सा गया है। लेकिन कल और आज में दो लोगों की जिंदगी में आए मोड़ को देखकर ताज्जुब में हूं‌।कल जनजातीय ग्राम कनफाड़ में जाना हुआ। वहां एक धाकड़ और वजनदार व्यक्तित्व वाले जनजाति नेता थे। पिछले दो सालों से उनसे मुलाकात नहीं हुई थी।सोचा आया हूं तो हालचाल पूछता चलूं। फिर उनके घर के सामने जाकर आवाज लगाया।जब दो तीन बार पुकारने पर भी कोई जवाब  नहीं आया तो उनके खुले द्वार से झांककर देखा तो आंगन नजर आया जहां वो बुजुर्ग मुझे अपने हाथ पैर से घिसटते नजर आए। मैं स्तब्ध था, एक दौर था जब वो शख्स धड़धड़ाते हुए किसी भी कार्यालय में चला जाता था और साइकिल में ही कई किलोमीटर की दूरी नाप देता था।आज घिसटकर चलने पर मजबूर है। उनकी दशा देखकर दुख हुआ। गांव वालों से पूछने पर पता चला कि पिछले साल भर से उनकी ऐसी ही दशा है। वक्त भी अजीब सितम ढाता है।
आज नजदीकी गांव सेम्हरा में कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर लोक कला मंच लोरिक चंदा की प्रस्तुति देखने गया तो वहां भी एक आश्चर्य मेरा इंतजार कर रहा था। वहां लगभग पागलों जैसी हालत में एक शख्स कार्यक्रम देखने पहुंचा था।मुझे उसे देख कर एक पुराने कलाकार की याद आई।पूछने पर ज्ञात हुआ कि वो वही थे।जो नशे की लत में अपना जीवन तबाह कर चुके हैं। गुजरे दौर में वे एक शिक्षक,एक मंचीय अभिनेता और गायक के रूप में जाने जाते थे। लेकिन उस पर वक्त की मार ऐसे पड़ी कि उसका पूरा जीवन बिखर गया।उनका वैवाहिक जीवन असफल रहा और उसने नशे की राह में कदम बढ़ा दिया।जो शनै:शनै: उसे बर्बादी की ओर ले गया।कब किसके साथ क्या घटित हो जाए कुछ कह नहीं सकते। इसलिए अपने अच्छे दौर में हमेशा ईश्वर के प्रति कृतज्ञता का भाव और दीन दुखियों के लिए सहयोग की भावना होनी चाहिए।
उन दोनों शख्स के अच्छे दौर से भी मैं परिचित था, और उनके बुरे दौर से भी मेरा साक्षात्कार हुआ।दोनों के हालत पर मुझे एक ही बात याद आ रही है....
किसी की मजबूरियों पे मत हॅंसिए, कोई मजबूरियां खरीद कर नहीं लाता।
वक्त से हमेशा डरकर रहें, बुरा वक्त बताकर नहीं आता...
और फिल्म वक्त में साहिर लुधियानवी का गीत भी तो यही सिखाता है...
वक़्त से दिन और रात, वक़्त से कल और आज
वक़्त की हर शै गुलाम, वक़्त का हर शै पे राज । 

वक़्त की गर्दिश से है, चाँद तारों का निजाम
वक़्त की ठोकर में है क्या हुकूमत क्या समाज । 

वक़्त की पाबंद हैं आती जाती रौनकें
वक़्त है फूलों के सेज, वक़्त है काँटों का ताज । 

आदमी को चाहिए वक़्त से डर कर रहे
कौन जाने किस घड़ी वक़्त का बदले मिजाज । 

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