शनिवार, 30 जनवरी 2021

हमारे बापू

 मोहनदास करमचंद गांधी;नाटे कद का एक ऐसा विराट व्यक्तित्व जिसके आगे बड़े से बड़े व्यक्ति का कद भी बौना साबित होता था।एक ऐसा करिश्माई शख्सियत जिसने पूरी दुनिया को अहिंसा का पाठ पढ़ाया और सत्य की ताकत का एहसास कराया।पूरा भारतवर्ष उनको महात्मा,बापू और राष्ट्रपिता के संबोधन से संबोधित करता है।उनके व्यक्तित्व से समूचा विश्व प्रभावित रहा है। आज के युवाओं के चहेते आईफोन बनाने वाली कंपनी "एप्पल"के संस्थापक स्टीव जॉब्स गांधी जी के मुरीद थे।वे उनके सम्मान में उनके जैसे ही गोल फ्रेम का चश्मा पहनते थे। अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा किसी मृत व्यक्ति से मुलाकात का अवसर मिलने के प्रश्न पर उनसे मिलने की इच्छा जताते हैं।दलाई लामा, नेल्सन मंडेला समेत अनेक हस्तियां उनके व्यक्तित्व से प्रभावित हैं।

अहिंसा के इस पुजारी के सम्मान में संयुक्त राष्ट्र संघ ने सन् 2007 में उनकी जयंती को विश्व अहिंसा दिवस घोषित किया।सबसे बड़ी बात ब्रिटेन के पूर्व प्रधानमंत्री रहे जिस विंस्टन चर्चिल ने गांधी जी को 'अधनंगा फकीर' कहा था उसी चर्चिल के प्रतिमा के बगल में 4 मार्च 2015 को लंदन के पार्लियामेंट स्क्वायर में गांधी जी की 9 फुट ऊंची कांस्य प्रतिमा लगाई गई है।ये कुछ उदाहरण है हमारे बापू के विराट व्यक्तित्व के आभामंडल का।

2 अक्टूबर 1869 को गुजरात के पोरबंदर शहर में जन्म लेकर मोहनदास गांधी ने महात्मा की पदवी पाने तक एक लंबे संघर्ष का मार्ग तय किया है।सन् 1914 में बैरिस्टर बनकर स्वदेश वापसी के बाद वे चाहते तो एक वकील के रूप में अपना जीवन निर्वाह कर सकते थे। लेकिन उन्होंने पराधीनता की पीड़ा को महसूस किया और अहिंसा के मार्ग पर चलते हुए स्वतंत्रता प्राप्ति के कठिन मार्ग को अपने जीवन का लक्ष्य बनाया। अनेकों उतार चढ़ाव उनके जीवन में आते रहे पर वे अपने सिद्धांतों पर अडिग रहे।कोई भी कठिनाई उनके अटल नियम और निश्चय को तोड़ पाने में असफल रही।

स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए मीलों की पैदल यात्रा, लगातार देश भर में भ्रमण,देशभर के अपने अनुयायियों के साथ पत्र व्यवहार उनके जीवन चर्या का अभिन्न अंग था।

बापू कभी थकते नहीं थे। संयमित जीवनशैली को स्वयं अपनाते थे और अन्य लोगों को भी अपनाने के लिए प्रेरित करते थे।

भारतीय राजनैतिक आंदोलन में उन्होंने समूचे राष्ट्र का नेतृत्व किया।अनेक आंदोलनों का शंखनाद किया और ब्रिटिश सरकार की चूलें हिलाकर रख दिया।उनके इस सफर में पं जवाहरलाल नेहरू,सरदार पटेल और अनेक नेताओं ने उनके साथ कदम पर कदम मिलाकर काम किया।

उनकी आत्मकथा"सत्य के प्रयोग" एक खुली किताब है जिसमें उन्होंने बड़ी बेबाकी से अपने जीवन के प्रसंगों को उजागर किया है।हालांकि कुछ लोगों को गांधीजी के कुछ राजनैतिक निर्णय असहज लगते हैं और इस पर उनकी आलोचना भी होती रहती है।पर अंततोगत्वा वे सर्वमान्य नेता थे।

उनके जीवन की सरलता और सहजता प्रेरणादायक है।उनके विचार आज भी निराश मन में नई ऊर्जा का संचार करते हैं। बल्कि मुझे तो लगता है आज के मारकाट वाले दौर में उनके विचार और अधिक प्रासंगिक हैं।उनका कथन "आंख के बदले आंख फोड़ देने की सोच समूचे विश्व को अंधा बना देगी।"क्या गलत है?

30 जनवरी सन् 1948 को नाथूराम गोडसे ने इस महामना की हत्या कर दी।वह गांधी जी के कुछ निर्णय और विचारों से सहमत नहीं था।लेकिन गांधीजी का निधन भारत के लिए अपूरणीय क्षति थी।

गांधीजी के बारे में 2 अक्टूबर 1944 को प्रख्यात वैज्ञानिक "आइंस्टीन" ने कहा था कि-"आनेवाली नस्लें शायद मुश्किल से ही विश्वास करेंगी कि हाड़ मांस का बना हुआ कोई ऐसा  व्यक्ति भी धरती पर चलता-फिरता था।"

गांधीजी की लोकप्रियता समूचे विश्व में है। हमारे छत्तीसगढ में भी दो बार उनका आगमन सन् 1920 और 1933 में हुआ था।ये ऐतिहासिक तथ्यों से ज्ञात होता है। गांधीजी से छत्तीसगढ़ का भी जुड़ाव है।

  हमारे विकास खंड छुरा की सीमा से लगा हुआ महासमुंद जिले का एक छोटा सा गांव तमोरा है।माना जाता है कि इस ग्राम में भी गांधीजी का आगमन हुआ था, लेकिन इस संबंध में ऐतिहासिक दस्तावेज प्राप्त नहीं हैं।लेकिन गांधीजी की यादें ग्रामीणों के मन में आज भी बसती है।सन् 1930 में यहां तमोरा जंगल सत्याग्रह हुआ था,जिसका नेतृत्व स्व. शंकरलाल गनोदवाले,स्व.यति यतनलाल और तमोरा निवासी स्व. रघुवर दीवान  ने किया था।इस स्थान पर 8 सितंबर से 24 सितंबर 1930 तक आंदोलन हुआ था।इस आंदोलन के दौरान एक आदिवासी बालिकाद दयावतीने अंग्रेज अधिकारी को तमाचा भी जड़ा था, जो स्व.रघुवर दीवान की भतीजी थी।आजादी के पश्चात सन् 1955 से ग्रामीणों के द्वारा आपसी सहयोग से प्रतिवर्ष गांधी जी के पुण्य तिथि के अवसर पर गांधीग्राम-तमोरा में गांधी मेला का आयोजन होता है। जहां आसपास के ग्रामीण जुटते हैं और राष्ट्रपिता को श्रद्धांजलि देकर कृतज्ञता ज्ञापित करते हैं। दिनकर के शब्दों के साथ बापू को भावभीनी श्रद्धांजलि-

लौटो, छूने दो एक बार फिर अपना चरण अभयकारी,

रोने दो पकड़ वही छाती, जिसमें हमने गोली मारी।


रविवार, 17 जनवरी 2021

फिल्मी पोस्टर











 पिछले दिनों हिंदी फिल्म जगत के पोस्टर डिजाइन करने वाले महान कलाकार दिवाकर करकरे जी का निधन हो गया।एक ऐसे कलाकार जिसकी कूची ने अमिताभ को एंग्रीयंगमैन के रूप में पोस्टर के द्वारा प्रतिष्ठित किया।जिनके रंग संयोजन में उनकी भावनाओं को स्पष्टतया समझा जा सकता था।

फिल्मों के लिए पोस्टर बनाने की शुरुआत तो भारतीय सिनेमा के जनक दादासाहेब फाल्के ने ही करी थी। उन्होंने अपनी पहली फिल्म"राजा हरिश्चंद्र" के पोस्टर भी स्वयं बनाये थे और कलाकारों के नाम को अपने हाथों से लिखा था।बाद में बाबूराव पेंटर जैसे कलाकारों ने पोस्टर कला को ऊंचाईयां प्रदान की। पश्चिम के देशों की तरह हमारे यहां चीजें संग्रहित करने की परंपरा में विशेष रुचि ना होने के कारण पोस्टर संग्रह का काम सिनेमा के शुरुआती दिनों में नहीं हुआ।बाद के वर्षों में लोगों ने पोस्टर संग्रहण शुरू किया और नोट छापे।बताया जाता है कि शाहरुख खान ने फिल्म मुगल-ए-आजम के हस्तनिर्मित पोस्टर को अच्छा खासा दाम देकर खरीदा था।
 मशहूर चित्रकार एमएफ हुसैन साहब ने भी हिंदी फिल्मों के पोस्टर डिजाइन किए थे।इसके अलावा अपने अलग डायलॉग डिलीवरी के लिए मशहूर अभिनेता नाना पाटेकर ने भी फिल्म पोस्टर बनाने का काम किया है।वे मुंबई के मशहूर जेजे स्कूल आफ आर्ट के छात्र रह चुके हैं।
फिल्म पोस्टर पहले हस्तनिर्मित होते थे। सिद्धहस्त चित्रकार अपनी कल्पना से फिल्म के किरदारों को जीवंत रूप में पोस्टर पर चित्रित करते थे।
ये बहुत से कलाकारों के लिए आय का स्त्रोत भी था।पहले हस्तनिर्मित पोस्टर कागज पर बनाये जाते थे।बाद के वर्षों में प्रिंटिंग मशीनों का आगमन हुआ और हस्तनिर्मित उन पोस्टरों की सैकड़ों हूबहू कापियां निकाल ली जाती थी।फिर जब कैमरे से फोटो लिए जाने लागे तो पोस्टर को मशीन से ही डिज़ायनिंग की जाने लगी।लेकिन उनमें वो बात नहीं थी जो कलाकारों के ब्रश स्ट्रोक्स से बने पोस्टरों में हुआ करती थी।
साल 2000 के बाद हस्तनिर्मित पोस्टर बनने पूर्ण रूपेण बंद हो गये।अब फ्लैक्स बनते हैं जो कम्यूटर के माध्यम से डिजाइन की जाती हैं।
पुराने जमाने के पोस्टरों की बात ही निराली होती थी। फिल्म की कहानी के विशेष दृश्यों को पोस्टरों में स्थान मिलता था। पोस्टर फिल्म देखने के लिए आए दर्शको के मन में कौतूहल पैदा करती थी और फिल्म देखने के लिए प्रेरित भी करती थी।
पोस्टर ब्वाय तड़के सवेरे पान के खोमचों,चौक चौराहों,बसों के पिछले हिस्से, ट्रेन में पोस्टर चिपकाने का काम करते थे।पोस्टर में जादू ही ऐसा होता था कि दर्शक टाकीजों तक खिंचे चले आते थे।मुझे याद आता है जब टाकीज के पोस्टर ब्वाय और एनाउंसर साइकिल रिक्शा पर माइक लेकर पोस्टर चिपकाते घूमा करते थे और उनका अंदाज होता था....कदरदान, मेहरबान, दोस्तों...आपके शहर में पहली मर्तबा...पहली बार... सुपरस्टार अमिताभ बच्चन... शहंशाह के रूप में....चले आइए अपने परिवार के साथ...फलाने टाकिज पर रोजाना चार खेलों के साथ....
चित्र-इंटरनेट से साभार

बुधवार, 6 जनवरी 2021

छत्तीसगढ़ में मितानी परंपरा




मित्रता का सभी मनुष्य के जीवन में महत्वपूर्ण स्थान होता है।किसी व्यक्ति के मित्रों के व्यक्तित्व से ही संबंधित व्यक्ति के व्यक्तित्व का अंदाजा सहज रूप से लगाया जा सकता है।सरल शब्दों में कहा जाये तो दो मित्र एक दूसरे का प्रतिबिंब होते हैं।ये एक ऐसा नाता होता है जिनमें रक्त संबंध नहीं होता पर ये उससे बढ़कर होता है।

हमारे पौराणिक ग्रंथों में भी राम-सुग्रीव,राम-विभिषण, कृष्ण-सुदामा,कृष्ण-अर्जुन,दुर्योधन-कर्ण जैसे मित्रों का वर्णन मिलता है।मुंशी प्रेमचंद के साहित्य में भी मित्रता ने स्थान पाया है।चाहे वह इंसान से इंसान की मित्रता हो जानवर की।

छत्तीसगढ़ में भी मित्रता के नाते को महत्त्वपूर्ण स्थान दिया गया है।हमारे यहां मितान बदने की परंपरा है।मतलब किसी धार्मिक आस्था से जुड़ी वस्तुओं का साक्षी रखकर जीवन भर के लिए मित्र (मितान/मितानिन)बनाया जाता है।मितान बदने वाले दो परिवार जीवनपर्यंत इस संबंध का निर्वहन करते हैं।महापरसाद, गंगाजल,गंगाबारू,गजामूंग,भोजली,जंवारा,तुलसीदल,रैनी,दौनापान,गोबरधन आदि मितान बदने के संबोधन है।मितान बदने के बाद मितान/मितानिन का नाम नहीं लिया जाता बल्कि उसे उपरोक्त संबोधन से संबोधित किया जाता है। परस्पर भेंट होने पर सीताराम महापरसाद,भोजली या अन्य संबोधन का प्रयोग होता है।मितान बदने में लैंगिक भेदभाव नहीं होता। स्त्री-पुरुष दोनों इस मित्रता संबंध में बंध सकते हैं।

भिन्न-भिन्न अवसर और पर्व आदि पर मितान बदने की परंपरा है।

गजामूंग-आषाढ महीने में भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा निकलती है और इस अवसर पर गजामूंग(अंकुरित चना व मूंग)के प्रसाद का वितरण होता है। महाप्रभु के इस प्रसाद को साक्षी मानकर गजामूंग मितान बदा जाता है।

महापरसाद-छत्तीसगढ का पड़ोसी राज्य ओडिशा से विशेष जुडाव है।यहां की संस्कृति में उत्कल प्रभाव देखा जा सकता है। छत्तीसगढ़ के लोगों की जगन्नाथ भगवान पर अगाध श्रद्धा है।हर साल बड़ी संख्या में छत्तीसगढ़ के श्रद्धालु जगन्नाथपुरी की यात्रा करते हैं। वहां पर मिलने वाले जगन्नाथ महाप्रभु के भोग महापरसाद को लोग लेकर आते हैं।महापरसाद खिलाकर महापरसाद बदा जाता है।

गंगाजल-हिंदू धर्मावलंबियों का गंगा मैया पर विशेष श्रद्धा है।जब किसी को गंगा मैया के दर्शन लाभ का अवसर मिलता है तो अपने साथ गंगाजल लेकर जरूर लौटते हैं।गंगाजल लेकर गंगाजल बदा जाता है।

गंगाबारू-गंगाजल की तरह गंगा की रेत,जिसे गंगाबारू कहा जाता है।इसका भी बड़ा महत्व है।गंगा की रेत से गंगाबारू बदा जाता है।

भोजली-भादो मास में छत्तीसगढ़ में भोजली बोने की परंपरा है।भोजली आदिशक्ति जगदंबा की आराधना का माध्यम है।भोजली के विसर्जन के समय भोजली बदा जाता है।

जंवारा-छत्तीसगढ मातृशक्ति का उपासक राज्य है। यहां ठांव-ठांव पर आदिशक्ति जगदंबा भिन्न-भिन्न नाम रूप में विराजित है। चैत्र और क्वांर दोनों नवरात्र पर छत्तीसगढ़ में जंवारा बोने की परंपरा है।जंवारा विसर्जन के समय जंवारा बदा जाता है।

रैनी-नवरात्र पर्व के बाद आता है।अच्छाई की बुराई पर जीत का महापर्व दशहरा। छत्तीसगढ़ के गांव-गांव में रावण दहन किया जाता है।रावण दहन पश्चात एक दूसरे को रैनी पान भेंटकर दशहरे की शुभकामना दी जाती है।इस अवसर पर रैनी बदने की परंपरा है।

गोबरधन-दीपावली का पर्व छत्तीसगढ़ में धूम धाम से मनाया जाता है। गौ-पालन की संस्कृति से जुड़े छत्तीसगढ़ में गोवर्धन पूजा की विशिष्ट परंपरा है। गोवर्धन पूजा के दिन गोठान में छोटे से बछड़े को सोहाई बांधकर और उसका पूजन कर अन्य ग्राम्य देवी-देवताओं की पूजा अर्चना की जाती है।इसके बाद गौ के गोबर का एक दूसरे के ऊपर तिलक लगाकर गोवर्धन पूजा की बधाई दी जाती है।इस अवसर पर गोवर्धन बदा जाता है।

दौनापान-छत्तीसगढ के ग्रामीण क्षेत्रों के घर और बाड़ी में एक खुशबूदार पेड़ दौना जरूर लगाई जाती है।इस पौधे के पत्तियों को एक दूसरे के कान में खोंसकर दौनापान बदा जाता है।

तुलसीदल-तुलसी का पेड़ छत्तीसगढ़ के घर घर में मिलता है।जनमानस में तुलसी के प्रति अगाध श्रद्धा देखने को मिलती है।हर शाम तुलसी चौरा में दीपक जलाने की परंपरा छत्तीसगढ़ में पुरातन काल से चली आ रही है।तुलसी की पत्तियों से तुलसीदल बदा जाता है।

पर्व विशेष से जुड़े मितान बदने की परंपरा पर्वादि पर ही होते हैं जबकि महापरसाद,गंगाजल,तुलसीदल,दौनापान कभी भी बदा जा सकता है।खासतौर से गांव में बूढी औरतें जो कि मुंहबोली दादियां होती है छोटे-छोटे नाती सदृश्य बच्चों के साथ उपरोक्त मितान जरूर बदती हैं।

मितान को जन्म जन्मांतर का संबंध माना जाता है। इसलिए विशेष रूप से पूरी जिम्मेदारी के साथ इस परंपरा का निर्वहन किया जाता है। विभिन्न पर्व आदि पर एक दूसरे के घर दाल-चावल और सब्जियों आदि का भेंट भिजवाया जाता है।एक व्यक्ति के किसी परिवार में मितान बदने के साथ ही पूरा परिवार मितानी संबंध से बंध जाता है। सामान्यतः इसे फुलवारी संबंध कहा जाता है।मतलब मितान/मितानिन के पिताजी को फुलबाबू,माता को फुलदाई कहा जाता है और भाई बहनों को फुलवारी भाई बहन।मितान बदने में ऊंच-नीच, जाति-पाति,धर्म और अमीरी-गरीबी आड़े नहीं आती।प्राय: सुख-दुख के सभी मौके पर मितान/मितानिन एक दूसरे के साथ दृढ़ता से खड़े मिलते हैं।मितानी परंपरा सीख देती है अपने मित्र (मितान)के प्रति विश्वास और जिम्मेदारी को जीवन पर्यन्त निभाने की। छत्तीसगढ़ की मितान परंपरा को सम्मान देने के लिए ही छत्तीसगढ़ शासन द्वारा गांव में प्राथमिक स्वास्थ्य सुविधाएं प्रदान करने वाली माता-बहनों को मितानिन का नाम दिया गया है।गोस्वामी तुलसीदास ने लिखा भी है-

जे न मित्र दुख होहिं दुखारी, तिन्हहि विलोकत पातक भारी।

निज दुख गिरि सम रज करि जाना,मित्रक दुख रज मेरू समाना।

सीताराम मितान!!!

सोमवार, 4 जनवरी 2021

उम्मीदें 2021

 


त्रासदी भरा साल 2020 अपनी दुखद स्मृतियों के साथ विदा हुआ और साल 2021 ने दस्तक दे दी है।उम्मीद करते हैं कि नया साल सबके लिए मंगलकारी होगा।वैसे हर नये साल के मंगलकारी होने की कामना तो हम हर बदलते कैलेंडर के साथ करते हैं,पर साल का अच्छा या बुरा होना हमारे बस में नहीं होता।अपना सोचा कब होता है?वो जब सोचे तब होता है। वो मतलब ऊपर नीली छतरी वाला मालिक।सबका सृजनकर्ता, पालनहार,जगतनियंता ईश्वर।
इंसान को ऊपरवाले ने ही बनाया है लेकिन नश्वर धन-दौलत और संपत्ति के मोह में फंसा माटी का पुतला जब कुदरत को ललकारने का दुस्साहस करता है तब उसका हश्र बहुत बुरा होता है।
वैसे पिछले साल की महामारी ने अब तक पीछा नहीं छोड़ा है। वैज्ञानिकों की मानें तो कोरोना नाम का दैत्य अब अपडेटेड होकर अधिक घातक होकर लोगों की जान लेने पर आमादा है।
भारत जैसे बड़ी जनसंख्या वाले देश में अल्प सुविधाओं के बावजूद कोरोना जैसी महामारी का नियंत्रण काबिले तारीफ है।इसके लिए भारत की सभी राज्य सरकारों और केंद्र सरकार की पीठ थपथपाई जा सकती है।जिस देश में कभी पीपीई किट नहीं बनती थी,वो देश अपने दृढ़ संकल्प से पीपीई किट के उत्पादन में विश्व में बहुत जल्दी ही दूसरे नंबर पर आ गया।लोगों को स्वास्थ्य सुविधा प्रदान करने में सरकारी तंत्र की तत्परता, चिकित्सा पेशे से जुड़े सभी लोगों का समर्पण निश्चित रूप से वंदनीय है।
साल 2021 में आशा करते हैं कि देश का विकास होगा और लोगों की जिंदगी में खुशियों का संचार होगा।हम सबको महामारी से निपटते हुए बच्चों की पिछड़ती हुई शैक्षिक गतिविधियों पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है। पिछले साल अगर किसी का सर्वाधिक नुकसान हुआ है तो वे विद्यार्थी ही थे।लंबे समय तक स्कूल के बंद हो जाने से बच्चों की पढ़ाई लिखाई का बहुत अधिक नुकसान हुआ है। हालांकि शिक्षकों के माध्यम से बच्चों को आनलाईन पढ़ाई से जोड़े रखने का वैकल्पिक प्रयास किया जा रहा है। कहीं कहीं पर इसके अच्छे परिणाम भी देखने को मिल रहे हैं। छत्तीसगढ़ में मोहल्ले क्लास के माध्यम से बच्चों को पढ़ाई-लिखाई से जोड़े रखने का प्रयास किया जा रहा है।
मेरे विचार से अब स्कूलों को खोलने की दिशा में विचार किये जाने की जरूरत है। जिन क्षेत्रों में केस में कमी आ गई है या जहां कोरोना केस निरंक हैं उन क्षेत्रों में व्यापक सुरक्षा प्रबंध के साथ 50% बच्चों की अल्टरनेट उपस्थिति सिस्टम से स्कूलों में पढ़ाई शुरू किये जाने की जरूरत है ताकि ये शैक्षणिक सत्र खाली ना गुजरे।
कोरोना महामारी की मार से प्रभावित छोटे-छोटे व्यावसायियों और प्राइवेट फर्म में नौकरी कर रहे लोगों को आर्थिक सहायता दिए जाने की जरूरत है ताकि वे आत्मनिर्भरता की ओर कदम बढ़ा सकें। आखिर हाथ पर हाथ धरे बैठे रहने से कुछ नहीं हो सकता। बदलाव की दिशा में प्रयास जरूर होना चाहिए।
आप सभी को नये साल 2021 की अशेष शुभकामनाएं!!!नया साल आप सबके लिए कल्याणकारी हो... मिलते हैं अगले पोस्ट में..तब तक राम राम

फोटो सोशल मीडिया से साभार

अलविदा 2020

अंततः साल 2020 का सफर खत्म हुआ..! गजब का साल रहा बीता साल!!जिसने गजब ढाया था।ये ऐसा साल साबित हुआ जिसके समापन के लिए लोग बेसब्री से इंतजार कर रहे थे। आखिर हो भी क्यों ना? ज्यादातर लोगों के लिए साल 2020 मुसीबतें लेकर ही आया था।ये साल इतिहास में कोरोना महामारी के कारण सदा सदा के लिए ऐतिहासिक हो गया।इस साल की कड़वी यादें लोगों के जेहन में हमेशा रहेगी।

चीन में जन्मी कोरोना नाम की महामारी ने साल 2020 में पूरी ‌दुनिया को नचा दिया।इटली और अमेरिका जैसे देशों को नाकों चने चबाने मजबूर कर दिया।सभी छोटे बड़े देशों की आर्थिक स्थिति डांवाडोल हो गई।

भारत में मार्च महीने में स्कूलों को बंद कर दिया गया और लाकडाऊन का एक लंबा दौर चला।बेबस मजदूरों को घर वापसी के लिए संघर्ष करना पड़ा।कई लोगों की जान घर वापसी की जद्दोजहद में चली गई।कोरोना की दहशत ने लोगों के सामाजिक जीवन को तहस-नहस कर दिया।सामूहिक आयोजन रद्द करने पड़े।इस कोरोना ने ये साबित कर दिया कि आप चाहे कितने ही प्लान बनाकर रख लो कुदरत उसको पलभर में मटियामेट कर सकती है।इस कोरोना ने लोगों को जीने का ढंग भी सिखाया।

लाकडाऊन के दौरान लोगों ने न्यूनतम आवश्यकताओं के साथ जीना सीखा। बिजनेस और नौकरी की भागदौड़ में फंसे लोगों को परिवार के साथ वक्त बिताने का मौका दिया। प्रकृति की स्वत: सफाई का मार्ग बना। प्रदूषण में कमी आई। बच्चों की पढ़ाई के लिए तकनीक के प्रयोग का मार्ग प्रशस्त हुआ। भारत में प्रचलित वैवाहिक आयोजनों में की जाने वाली अनावश्यक खर्च के आडंबर में कमी आई।कुल मिलाकर साल 2020 लोगों को सबक सिखाने वाला साल साबित हुआ।मेरे लिए भी कुछ खास नहीं रहा। सिर्फ ब्लाग लेखन का कार्य ही सार्थक हुआ।कुछ पाठक मित्रों की सराहना भी मिली। कामना करते हैं आगामी नववर्ष सबके लिए मंगलमय हो....राम राम

फ़ोटो सोशल मीडिया से साभार




दिन चारी मइहरवा में....सुरता स्व.मिथलेश सर के

  लोकगीतों की अपनी एक अलग मिठास होती है।बिना संगीत के भी लोकगीत मन मोह लेता है,और परंपरागत वाद्य यंत्रों की संगत हो जाए, फिर क्या कहने!! आज ...