सोमवार, 3 अगस्त 2020

रक्षाबंधन और फोमवाली राखी


समय कभी नहीं रूकता। वक्त का पंक्षी कब फुर्र से उड जाए पता ही नहीं चलता।बचपन का जमाना गुजरे 25 साल हो गए। लेकिन लगता है कि कुछ साल ही हुए हैं। उम्र और शरीर भले ही बढ़ गए लेकिन नादानी नहीं गई है।मेरी मूर्खतापूर्ण हरकतों का दौर अब भी जारी है। और ये मुझे ठीक भी लगता है।ज्यादा सयाना होना भी अच्छी बात नहीं है।
    आज रक्षाबंधन है,भाई बहन के पवित्र नाता का पर्व।बचपन में इस त्यौहार का बडी बेसब्री से इंतजार होता था।मेरे दृष्टिकोण से इसके दो कारण थे-पहला ये कि इस दिन खूब मिठाई खाने को मिलती थी और दूसरी एक से बढ़कर एक सुंदर राखियां पहनने को मिलती थी जिस पर पहनने के बाद एकमेव अधिकार होता था। रक्षाबंधन के दूसरे रोज जब स्कूल जाते थे तो खूब सारी राखियां बांधके जाते थे।अपने पास राखी कम पड़ती तो रौब जमाने के लिए घर के बड़े लोगों की राखियां भी अपनी कलाई पर बंधवा लेते थे।उस जमाने में जिसके कलाई में जितनी राखियां होती अपने हम उम्र साथियों के बीच अलग ही रौब(आज की भाषा में स्टेटस)होता था।राखी त्यौहार के तीसरे दिन हम राखियों का कत्लेआम किया करते थे।तब आज के जैसी डोर वाली राखी नहीं,बल्कि फोम और चमकीली पन्नियों वाली बड़ी बड़ी राखियां होती थी।जिसमें ओम्,स्वास्तिक,श्री,मेरे भैय्या और प्यारे भैया वाले बड़े खूबसूरत स्टीकर लगे होते थे।जरी वाली चमकीली राखियां भी होती थीं पर वो फोमवाली राखी की तुलना में हमारे लिए कम उपयोगी होती थी।
  फोमवाली राखियां हमारे लिए खजाने की तरह होती थीं। उसमें लगे फोम को निकालकर हम अपनी स्लेट साफ करते थे।चमकीली पन्नियों और स्टीकर से अपनी कापियां सजाते थे।कुछ कलाकार बंदे तो पोला के समय बैल को सजाने, गणेशोत्सव में गणेशजी की बैठक को सजाने और दशहरे के समय रामलीला की मुकुट तक इस फोम वाली राखी से बना लिया करते थे। बड़ी बड़ी फोमवाली राखियों की बात ही अलग थी। धीरे-धीरे ये चलन से बाहर होने लगी। हमारे बचपन और इन फोमवाली राखियों की बिदाई लगभग साथ साथ ही हुई।अब फोमवाली राखियों की जगह ऊन और रेशम की नग जडी राखियों ने ले ली है।पर इन राखियों में अब वो मजा नही,जो फोमवाली राखियों में हुआ करती थी।
बड़े खूबसूरत थे वो दिन
जब शकल ही नहीं,दिल भी खूबसूरत होता था।

2 टिप्‍पणियां:

तरुण कुमार ने कहा…

सही बात है। उस राखी की बात ही अलग होती थी, आज भी रखीबके बारे में सोचो तो दिमाग में वो बड़ी से राखी आती हैं , रंग बिरंगी , चमकीली कुछ महंगी राखियों में तो पैसे भी लगे होते थे ।

तरुण कुमार ने कहा…

और सबसे बड़ी बात वो स्वदेशी राखी होती थी ।

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