शुक्रवार, 7 अगस्त 2020

हमर छुरा

 छुरा नाम से सब परिचित होंगे। हालांकि ये नाम थोड़ा डराने वाला लगता है।जिसका शाब्दिक अर्थ होता है हजामत बनाने का औजार या बड़े फलवाला चाकू।चाकू-छुरा का सीधा संबंध खून खराबे से होता है। इसलिए छुरा को खतरनाक माना जाता है। इसका मुहावरे में प्रयोग और भी खतरनाक अर्थ देता है।छुरा घोंपना एक प्रचलित मुहावरा है जिसका प्रयोग विश्वासघात के संदर्भ में किया जाता है।खैर,हमारा छुरा ये वाला छुरा नहीं बल्कि एक छोटा सा कस्बा है,जो गरियाबंद जिले में स्थित है। छत्तीसगढ़ की प्रसिद्ध धार्मिक नगरी और तीर्थ राजिम से मात्र 45 किमी दूर।
   अब बात करते हैं इस नगर के नामकरण के बारे में। जनश्रुतियों के अनुसार ये नगर जमींदारों के जमाने में बिंद्रानवागढ जमींदारी के जमींदारों का मुख्यालय रहा है।बताया जाता है कि बिन्द्रानवागढ़ का जमींदार बूढादेव का अनन्य उपासक था।उनको बूढादेव ने उनकी उपासना से प्रसन्न होकर एक छुरी दिया था,और कहा कि इस छुरी को तुम फेंकना, जहां ये छुरी गिरेगा वहां तक तुम्हारी रियासत तक विस्तार होगा।उस समय तक नवागढ़ बिन्द्रानवागढ़ जमींदारी का केंद्र होता था।कहते हैं की उक्त छुरी जिस स्थान पर गिरा वहां तक उनकी जमींदारी का विस्तार हुआ है और छुरा नगर का नामकरण हुआ।ये मात्र एक जनश्रुति है जो बड़े बुजुर्ग बताते रहे हैं, इसकी ऐतिहासिकता और प्रमाणिकता की पुष्टि मैं नहीं करता।मुझे जो जानकारी थी, सो वो मैंने आपसे साझा किया।छुरा नगर और समूचा छुरा विकासखंड अपने आप में विशिष्ट है।छुरा नगर के पुराने महल के अवशेष अपने समय की गौरवशाली इतिहास को समेटे आज भी खड़े हैं।जन आस्था की प्रतीक शीतला माता यहां जागृत रूप में नगर के मध्य में विराजित हैं जिसके कारण यहां दुर्गोत्सव का आयोजन नहीं होता। शीतला मंदिर से कुछ ही दूरी पर मानस मंदिर है, जहां लगभग सन् 1960 से शुरू हुआ मानस यज्ञ का आयोजन अनवरत रूप से आज भी जारी है। जीर्ण-शीर्ण खड़ा महल अतीत की निशानी है।छुरा नगर में ब्रिटिशकालीन स्कूल आज भी मजबूती के साथ खड़ा है। हालांकि वक्त के साथ उसकी छत अब कवेलू वाला ना होकर पक्के सीमेंट की बना दी गई है। हालांकि इमारत की दरो दीवार और खिड़की दरवाजे आज भी पुराने वाले ही हैं।यहां थाने की स्थापना भी बहुत पहले ही हो चुकी थी।ये तो मुख्यालय की बातें हुई।अब समूचे छुरा क्षेत्र को देखें तो पांडुका का इलाका ऐतिहासिकता को समेटे हुए है। विकास खंड के अंतिम छोर पर स्थित कुटेना ग्राम में पैरी नदी के तट पर सिरकट्टी आश्रम हैं, जहां पुराने समय की सिरकटी प्रतिमाएं प्राप्त हुई हैं।पैरी नदी के तट पर अतीत में बंदरगाह होने का संकेत भी पुरातत्व विशेषज्ञों के द्वारा मिला है। संभावना जताई जा रही है कि पुराने जमाने में संभवतः नदी यातायात से व्यापार होता रहा होगा। प्रख्यात आध्यात्मिक गुरु महर्षि महेश योगी का जन्म भी पांडुका में हुआ था, जिन्होने नीदरलैंड को मुख्यालय बनाकर"राम" मुद्रा चलाई थी।उनके भावातीत ध्यान को अपनाने वाले अनेकों शिष्य देश विदेश में फैले हुए हैं। ऐसा माना जाता है कि पांडुका के समीप स्थित अतरमरा गांव में महर्षि अत्रि का आश्रम था और कुम्हरमरा ग्राम में श्रृषि कुंभज का आश्रम था।
   देवी तीर्थों के लिए भी छुरा विकास खंड प्रसिद्ध है। यहां सोरिद के समीप माता रमईपाट विराजित हैं, जहां सीताजी की एकमात्र गर्भवती स्वरूप वाली मूर्ति मिलने की बात बताई जाती है। यहां आम्र वृक्ष के जड़ से निरंतर जल धारा प्रवाहित होती है।
खोपलीपाट माता भी कुछ ही दूरी पर है, जहां प्रतिवर्ष विशाल भंडारे और मानस यज्ञ का आयोजन होता है।टेंगनही माता,जतमाई माता,घटारानी,रानी मां,जटयाई माता ख्यातिप्राप्त देवी तीर्थ है। विशेष रूप से घटारानी और जतमाई धाम मनमोहक प्राकृतिक सौंदर्य और झरने के कारण प्रदेश के पर्यटन मानचित्र पर तेजी से स्थापित हो रहा है।सल्फी के पेड़ बस्तर की पहचान है। जहां सल्फी का रस आदिवासियों का प्रिय पेड़ है। आमतौर पर ये वृक्ष छत्तीसगढ़ के अन्य क्षेत्रों में देखने को नहीं मिलता है।मगर छुरा ब्लाक के हीराबतर ग्राम में सल्फी के बहुत सारे पेड़ आप देख सकते हैं।
टोनहीडबरी ग्राम में स्थित स्वयंभू शिवलिंग भी प्रसिद्ध पर्यटन स्थल है।छुरा विकासखंड पड़ोसी राज्य ओडिशा की सीमा को स्पर्श करता है, इसलिए ओडिशा क्षेत्र वासियों का भी यहां आना-जाना लगा रहता है।छुरा के अंतिम गांव से ओडिशा की दूरी मात्र 3 किमी है। गरियाबंद जिले का एकमात्र निजी विश्वविद्यालय भी कोसमी छुरा में स्थापित है।
 छत्तीसगढ़ शासन द्वारा कमार और भुंजिया जनजाति को विशेष दर्जा दिया गया है।इनकी भी बडी संख्या विकासखंड में मौजूद है। विद्वतजन और कलाकारों की भी इस क्षेत्र में कमी नहीं है।बताते हैं कि संस्कृत महाविद्यालय रायपुर में प्रोफेसर रहे श्री सरयूकांत त्रिपाठी छुरा निवासी थे। राजनीति के क्षेत्र में यहां के राजा त्रिलोकशाह ने सन् 1967 में कांकेर लोकसभा का प्रतिनिधित्व सांसद के रूप में किया था। बिन्द्रानवागढ़ विधानसभा का प्रतिनिधित्व कुमार ओंकार शाह दो बार कर चुके हैं।गीत,संगीत और साहित्य के क्षेत्र में छुरा क्षेत्र अग्रणी रहा है। छत्तीसगढ़ के प्रख्यात लोकगायक मिथलेश साहू और साहित्यकार रामेश्वर वैष्णव,मेहतर राम साहू,नारायण लाल परमार का नाता भी छुरा के पांडुका ग्राम से रहा है।आशुकवि उधोराम झखमार को कौन भूला सकता है भला!!वे भी हमारे क्षेत्र की पहचान थे।छगपापुनि के लेखक मंडल में शामिल गजानन प्रसाद देवांगन भी छुरा से थे।कलाकारी के क्षेत्र में भी यहां के कलाकार अनेक लोककलामंचों के माध्यम से लोककलाओं के संवर्धन में लगे हैं।ग्राम कुडेरादादर निवासी पुकेश मानिकपुरी छत्तीसगढ़ के नामी लोकमंच"राग अनुराग" में संगीतकार हैं।वहीं के कामताप्रसाद छत्तीसगढ़ के मशहूर कीर्तनकार है ।पीपरहट्ठा मानस मंडली तो पूरे प्रदेश में विख्यात हो गई है। वर्तमान समय के छत्तीसगढी सिनेमा की तारिका मुस्कान साहू का संबंध भी छुरा से है,ये उनका ससुराल है।हास्य के लिए मशहूर और तेजी से उभरते यूट्यूबर अमलेश नागेश का गृहग्राम कामराज भी छुरा विकासखंड का हिस्सा है। स्वतंत्रता समर में भी इस क्षेत्र के कुछ लोगों का नाम उल्लेखनीय है जिनमें श्री लालदास, गोविंद राम,प्यारेलाल,पंचम और श्री गणेश राम जी का नाम 15अगस्त 1973 को स्थापित जय स्तंभ पर अंकित है।इस पर फिर कभी चर्चा करेंगे। वैसे देश के लिए बलिदान की परंपरा को क्षेत्र के शहीदों  ने बखूबी निभाया है।सोरिद,कोसमबुडा,भैंसामुडा और कामराज में स्थापित प्रतिमाएं उनके बलिदान की स्मृतियां हैं।कुछ अनूठे कलाकार भी छुरा में मौजूद हैं जैसे भोला सोनी। उन्होंने विश्व की सबसे छोटी लालटेन बनाई है,जो जलती है।इस उपलब्धि के लिए उनका नाम लिम्का बुक में दर्ज है।इसके अलावा छोटी तराजू और अपने ही रिकॉर्ड तोड़ने के लिए फिर से एक छोटी लालटेन का निर्माण कर रहे हैं।
और हां,एक समय में छुरा क्रिकेट प्रतियोगिता के आयोजन के लिए भी मशहूर था, जहां दूर दूर से खिलाड़ी अपने खेल का प्रदर्शन करने के लिए आते थे।अगली बार और कोई बात....
तब तक राम राम

8 टिप्‍पणियां:

Nagusen ने कहा…

छुरा के बारे में इतना सुंदर लेख पहली बार।बहुत ही बेहतरीन भैया जी

tarun kumar verma ने कहा…

गागर में सागर भरना इसी को कहते हैं, बहुत ही अच्छी जानकारी है । जो लोग इसे मात्र एक कस्बा मानते होंगे उनके आंखे खोलने वाली जानकारी आपने दी है । साधुवाद

झांपी-यादों का पिटारा ने कहा…

धन्यवाद भाई

झांपी-यादों का पिटारा ने कहा…

धन्यवाद

Unknown ने कहा…

bahut khub likha hai apne.... aage aor likhte rahiye...

Unknown ने कहा…

bahut khub likha hai apne.... aage aor likhte rahiye...

झांपी-यादों का पिटारा ने कहा…

धन्यवाद

Aateshwar Nishad ने कहा…

बहुत बढ़िया💯💯

दिन चारी मइहरवा में....सुरता स्व.मिथलेश सर के

  लोकगीतों की अपनी एक अलग मिठास होती है।बिना संगीत के भी लोकगीत मन मोह लेता है,और परंपरागत वाद्य यंत्रों की संगत हो जाए, फिर क्या कहने!! आज ...