जगत जननी मां जगदम्बे की आराधना का महापर्व चल रहा है।कोरोना जैसी वैश्विक महामारी के तांडव के बाद भी आस्था डगमगाई नहीं है,बस स्वरूप बदल गया है। बड़े बड़े पंडालों में देवी मूर्ति स्थापित करने की परंपरा में एक रूकावट सी आ गई। भीड़ इकट्ठी न हो, इसके लिए शासन ने कड़े निर्देश जारी किए हैं इस कारण अपेक्षाकृत धूमधाम कम दिखाई दे रही है। मंदिरों में माता के भजन आदि भी नहीं चल रहे है।अत्यंत सादगीपूर्ण कार्यक्रम आयोजित करने के लिए साल 2020 इतिहास में सदैव याद रखा जायेगा। साल 2015 में आज ही के दिन यानि पंचमी तिथि को माता रानी माई के दर्शन लाभ का संयोग बना था।मुढीपानी के शिक्षकों के सान्निध्य में ये अवसर प्राप्त हुआ था।उसकी यादें आज भी मानस पटल पर अंकित है।
रानी माता का दरबार ओडिशा और छत्तीसगढ़ के बीच गौरागढ पहाड़ी श्रृंखला पर अवस्थित है। स्थानीय लोग इसे मलेवा डोंगरी कहते है।ये पहाड़ी ओडिशा की सीमा रेखा तय करती है और छत्तीसगढ़ को स्पर्श करती है।कभी ये क्षेत्र प्राचीन दक्षिण कौशल का अभिन्न हिस्सा था।इसी पहाड़ी पर सोनाबेडा नामक स्थान हैं जो भव्य दशहरे के लिए विख्यात है।साथ ही इस सोनाबेडा का संबंध भुंजिया जनजाति की उत्पत्ति की दंतकथा से भी है।
छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से लगभग 100 किमी की दूरी पर गरियाबंद जिलांतर्गत है छुरा,और छुरा से लगभग 17 किमी की दूरी पर है रसेला गांव, जहां से पड़ोसी राज्य ओडिशा की सीमा मात्र दस बारह किमी की दूरी पर है। सीमावर्ती क्षेत्र होने के कारण रसेला के आसपास के गांवों में उत्कल प्रभाव स्पष्ट दिखाई देता है।
रसेला से लगभग-लगभग 7 किमी की दूरी पर मुढीपानी गांव है जहां से रानी माता स्थल तक जाने का मार्ग बना है। जनजातीय बाहुल्य इस मुढीपानी ग्राम पंचायत में कमार,भुंजिया,कंवर और गोंड जनजाति वर्ग के लोगों की बड़ी संख्या निवास करती है।
रानी माता के दरबार तक पहुंचने का रास्ता अत्यंत दुर्गम है। बीहड़ वन और चट्टानों को पार करके जाना पड़ता है।जंगली जानवरों का भी भय बना रहता है। संभवतः इसी कारण ज्यादातर लोग समूह में जाते हैं।ऊपर पहाड़ी पर माता के स्वरूप का अंकन एक शीला पर किया गया है,साल 2015 में मंदिर आदि का निर्माण नहीं हुआ था,ज्योति कक्ष का निर्माण कार्य आरंभिक अवस्था में था।सुना हूं कि वर्तमान में निर्माण पूर्ण हो गया है।जब ज्योतिकक्ष नहीं बना था तब पालीथीन और तिरपाल आदि की मदद से अस्थायी ज्योतिकक्ष का निर्माण किया जाता था।
जिस प्रकार रमईपाट सोरिद में आम वृक्ष के नीचे से प्राकृतिक जलधारा निकलती ठीक वैसी ही जलधारा यहां जंगली कदली(केले)के पेड़ से निकलती है।इसी कारण रानी माता का ये प्राकट्य स्थल केरापानी के नाम से जाना जाता है।इस पहाड़ी पर भालू,बाघ,चीते, वनभैंसे जैसे जानवर बड़ी संख्या में मौजूद रहते हैं और विभिन्न प्रकार की वनस्पतियां भी यहां मिलती है।जानकार लोग बताते हैं कि यहां बहुत सी आयुर्वेद में काम आने वाली जड़ी बूटियां मिलती है।
साल 1996-97 के आसपास यहां पहली बार ज्योतिकलश स्थापित किया गया था। आसपास की 7 ग्राम पंचायत क्षेत्र के निवासी रानी माता समिति के सदस्य हैं।जिनके कुशल मार्गदर्शन में समस्त कार्य संपादित होते हैं।इस विधानसभा क्षेत्र (बिन्द्रानवागढ़) के भूतपूर्व विधायक श्री ओंकार शाह ने इस स्थल के विकास के लिए विशेष प्रयास किया था।उनके द्वारा पहाड़ी के रास्ते पर श्री हनुमानजी की विशाल मूर्ति स्थापित किया गया है।
माता के प्राकट्य संबंधित कथा है कि किसी समय गांव मुढीपानी के एक कमार जनजाति के व्यक्ति को रानी मां ने स्वप्न में आकर अपने केरापानी स्थल में स्थित होने की बात बताई।तत्पश्चात उस व्यक्ति ने गांव के वरिष्ठ जनों के समक्ष स्वप्न की बात रखी।सभी लोगों ने मां की कृपा को स्वीकारा और रानी माता की पूजा-अर्चना की शुरुआत हुई।एक विशेष बात ये है कि नवरात्र में पंडा(प्रधान पुजारी)का कार्य हमेशा कमार जनजाति के व्यक्ति द्वारा किया जाता है।
हम पंचमी की विशेष पूजा के दिन पहुंचे थे इसलिए माता का भोग प्रसादी प्राप्त करके ही लौटे।मुढीपानी स्कूल के शिक्षक श्री तरूण वर्मा जी को फोटोग्राफी में विशेष रूचि है।सारे फोटोग्राफ्स उन्हीं की सौजन्य से है!
बोलो रानी माई की जय!!
1 टिप्पणी:
Ati sundar
एक टिप्पणी भेजें