आज नवरात्रि का दूसरा दिन है। लेकिन चारों तरफ सन्नाटा सा पसरा हुआ है।ना कहीं मांदर की थाप में जसगीत सुनाई पड़ रही है ना कहीं आरती का स्वर।कोरोना नाम के एक विदेशी दैत्य ने हाहाकार मचा दिया है।इस दैत्य का आतंक देश दुनिया के ऊपर सर चढ़कर बोल रहा है। मीडिया ने इसको इतना खौफनाक बनाकर प्रस्तुत किया कि आज ये हमारी आस्था पर भारी पड़ गया।
पावन शारदीय नवरात्र का आनंदोल्लास सरकारी नियमों के दांव-पेंच में उलझकर रह गया। नवरात्र में मूर्ति स्थापना के लिए इतने अधिक शर्तें रख दी गई कि लोगों ने दुर्गोत्सव और मूर्ति स्थापना का विचार ही मन से निकाल दिया। सीसीटीवी कैमरे की अनिवार्यता, मूर्ति स्थापना के लिए अनुमति, रजिस्टर संधारित करना, भीड़ ना होने देने के सख्त निर्देश और भी ना जाने क्या-क्या???
पुरातन काल से जिन मंदिरों में भक्तों की भीड़ उमड़ा करती थी,आज वहां लोगों को दर्शन की अनुमति नहीं मिल पा रही है।कुल मिलाकर इस वर्ष की नवरात्रि का पर्व कोरोना की भेंट चढ़ गया।
इसके पहले चैत्र नवरात्रि में भी जंवारा आदि का कार्यक्रम स्थगित किया गया था।पता नहीं कब तक ये सिलसिला चलेगा? मूर्ति बनाने की व्यवसाय से जुड़े लोगों के समक्ष जीवन यापन का प्रश्न खडा हो गया है। गणपति की मूर्ति बनाने के नुकसान से उबरे नहीं थे कि दुर्गा मूर्ति के निर्माण में भी नुकसान हो गया। कल ही अख़बार में पढ़ा था कि किसी मूर्तिकार ने साठ मूर्तियों का निर्माण नवरात्रि के लिए किया था,पर मात्र दो मूर्तियों का ही विक्रय हो पाया।शासन के आदेश ने लोगों के हाथ बांध रखे हैं। इसलिए ये स्थिति निर्मित हुई।
कोरोना की मौजूदगी अब हमारे दैनिक जीवन का हिस्सा बन चुका है।हमें उसकी मौजूदगी के बाद भी जीवन जीने का संघर्ष करना है।जिस प्रकार शेर और चीते जैसे हिंसक जीवों की मौजूदगी के बावजूद भी जंगल के अन्य जीव खतरा उठाकर अपना जीवन जीते है ठीक वैसे ही हमें जीना होगा।आखिर घर में दुबके रहने से तो प्राण रक्षा होने से रही!!
सरकार के लाकडाऊन जैसे जतन भी विशेष कारगर साबित नहीं हुए।अभी भी कोरोना पेशेंट के मिलने का सिलसिला जारी है। हालांकि शासन भी अपनी ओर से लोगों की जीवन रक्षा के लिए भगीरथ प्रयास कर ही रही है,पर अपेक्षानुरूप सफलता मिलती दिखाई नहीं देती।
कोरोनावायरस के कारण लोगों की जीवनशैली में बहुत फर्क आया है।लोग अब अपने स्वास्थ्य के प्रति पहले से कहीं अधिक जागरूक हुए हैं।खुले हाथों में कोई भी चीज खाने से बच रहे हैं।बाहरी खान-पान पर अंकुश लगा हुआ है। साफ-सफाई के प्रति लोग जागरूक हुए हैं।ये परिवर्तन समाज में स्पष्ट दिखाई पड़ता है।
विभिन्न सामाजिक रीति-रिवाजों का स्वरूप भी बदला है। जीवन-शैली में सादगी का समावेश हुआ है। अनावश्यक खर्चों पर रोक लगी है।
इस कोरोना के कारण सबसे अधिक नुकसान विद्यार्थियों को उठाना पड़ा है।बच्चे अपने मित्रों से दूर हैं। उनमें चिड़चिड़ापन बढ़ रहा है। पढ़ाई-लिखाई से दूरी बढ़ गई है, हालांकि आनलाईन पढ़ाई-लिखाई का क्रम जारी है पर ये कितने सफल हो पा रहे हैं आये दिन समाचार पत्रों में छपने वाली खबर से जाना जा सकता है। केंद्र सरकार ने पिछले 15 तारीख से स्कूल खोलना ना खोलना राज्य सरकारों की मर्जी पर छोड़ दिया है। हालांकि दहशत का दौर अभी भी जारी है पर अब जीरो या अल्प कोरोना पेशेंट क्षेत्रों में आधी या चौथाई उपस्थिति के साथ बड़े बच्चों का स्कूल और कालेज खोलने चाहिए। परिस्थितियों को देखकर दीवाली पश्चात तीसरी-चौथी के उस पार वाले कक्षाओं को खोलने पर भी विचार किया जाना चाहिए। हालांकि ये तभी हो,जब उस क्षेत्र या संबंधित स्थान में कोरोना के मामले निरंक हो और स्कूल में कोरोना से बचाव के सारे संसाधन उपलब्ध हो।मसलन सैनिटाइजर,हैंडवाश और स्कूल से जुड़े सभी लोगों के लिए मास्क आदि।हफ्ते में प्रति कक्षा एक दिवस के अनुसार भी शाला संचालित किया जा सकता है।आखिर कब तक हम हाथ पर हाथ धरे बैठे रहेंगे।कुछ ना करने से कुछ करना बेहतर होगा।विरल आबादी वाले ग्रामीण क्षेत्रों के स्कूलों को पहले खोला जाना चाहिए तत्पश्चात शहरों केस्कूलों को।
बहरहाल गांव-गांव में सन्नाटा पसरा है।हर चौक चौराहा सुनसान है.....
कामना करें कि माता रानी कृपा बरसाये और कोरोना नाम की वैश्विक आपदा का जल्द ही अंत हो।बोलो आदिशक्ति जगदंबा भवानी की जय...
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