मंगलवार, 20 अक्टूबर 2020

जटियाई डोंगर में....

 








   इस नवरात्रि के तीसरे दिवस मां जटियाई धाम जाने का प्रोग्राम बनाया।फिर जाने के लिए अपनी मित्र मंडली के ठेलहा(फुरसतिये)लोगों को अपनी मेमोरी में सर्च किया।तब याद आया कि अभी डी कमल उपलब्ध है,उसी को पूछा जाये।फिर दोपहर एक बजे के करीब मैंने अपने चलित दूरभाष यंत्र से कमल को टुनटुनाया।उसकी ओर से आदरणीय अमिताभ बच्चन जी का कोरोना संदेश प्राप्त हो रहा था। संदेश समाप्ति के कगार पे था तभी कमल ने फोन उठाया और बताया कि वो बिल्कुल फ्री है,लेकिन खाना खाके बताता हूं,बोलके फोन रख दिया।दोपहर के लगभग दो बज गये उसका वापसी काल नहीं आया।शायद भाई साहब खा पीके निद्रादेवी के आगोश में चले गए हों।मेरा प्रोग्राम अब फेल होने के करीब था।अकेले जाने में रिस्क था।इस साल कोरोना के कारण देवी तीर्थ स्थलों में नवरात्र पर्व को स्थगित किया गया है।ज्योति प्रज्वलन और जंवारा का कार्यक्रम भी नहीं है। कहीं मंदिर में जाने पर कोई नहीं मिला तो??ये आशंका थी।तब सेंदबाहरा के एक शिक्षक से फोन पर जानकारी लिया तो उन्होंने बताया कि एक ही ज्योति जल रही है।दिन में लोग रूकते हैं शाम तक लौट जाते हैं।

इतनी जानकारी साहस दिलाने के लिए पर्याप्त थी।दोपहर भोजन करने की तैयारी थी तभी जय का फोन आया। उसने बताया कि वो आज फुरसत में है।तुरंत मैंने उसको प्रोग्राम के बारे में बताया तो वो जाने के लिए तैयार हो गया।इसको कहते हैं संयोग!!!

माता के दरबार में जाने की इच्छा प्रबल हो तो संयोग बन जाता है।ये सिद्ध हो गया। थोड़ी देर के बाद जय आया तो दोनों मेरी मोटर साइकिल में जटियाई माता के दर्शन के लिए चल पड़े।

जटियाई माता छुरा से लगभग 7 किमी की दूरी पर जटियातोरा और सेंदबाहरा ग्राम के मध्य स्थित पहाड़ी पर विराजित हैं।छुरा से निकलने के बाद मेरे गांव से ही माता की पहाड़ी धनुषाकार आकृति में दूर से ही नजर आने लगती है।

जाते वक्त जय बोला कि माता के दरबार में दर्शन के लिए जा रहे हैं तो श्रीफल मतलब नारियल रख लेते हैं। मैंने उसकी हां में हां मिलाया और सेम्हरा के सडक किनारे के दुकान से नारियल ले लिया।वैसे मेरी सोच देवस्थल में जाने पर अलग है। मैं कोई भी देवस्थल में किसी भी प्रकार का भेंट आदि चढ़ाने के लिए नहीं लेके जाता।मेरा मानना है कि जिसने संसार को सब कुछ दिया है उसको कुछ देने की मेरी क्या औकात??

हालांकि हमारे धर्म ग्रंथ कहते हैं कि देवता,मित्र और गुरू के पास जाते समय खाली हाथ नहीं जाना चाहिए।कुछ न कुछ भेंट अवश्य ले जाना चाहिए। मंदिर में देवता को द्रव्य या धनराशि नहीं तो कम से कम पुष्प जरूर अर्पित करने चाहिए।खैर,सबका अपना-अपना ढंग, आराधना के अनेकों तरीके!!पर ईश्वर की कृपा सब पर बराबर रहती है।

थोड़ी देर बाद हम पहाड़ी के नीचे थे।ऊपर पहाड़ी तक जाने के लिए किसी भी प्रकार की सीढ़ी आदि का निर्माण नहीं हुआ है।कुछ दूरी तक मुरूम का रास्ता है, लेकिन ज्यादा रास्ता पथरीला है। पहाड़ी पर चढ़ाई आसान नहीं है। चट्टानों के बीच टेढ़े-मेढ़े पगडंडियों से होकर पहाड़ी की खड़ी चढ़ाई चढ़नी पडती है। जैसे-जैसे हम ऊपर जाते हैं सांस फूलने लगता है। पहाड़ी की उंचाई धरातल से अंदाजन तीन चार सौ फीट जरूर होगी।किसी को सांस संबंधी कोई परेशानी हो तो पहाड़ी पर चढ़ने का प्रयास बिल्कुल ना करे। महिलाओं, बुजुर्गों और बच्चों के लिए पहाड़ी की चढ़ाई वर्तमान में सुगम नहीं है।दूसरी खास बात ये है कि नवरात्र पर्व के अलावा साल के बाकी महीनों में पहाड़ी निर्जन होता है,साथ ही हिंसक जंगली जानवरों का भय भी रहता है तो उस समय भी आना उचित नहीं होगा।

माता का जयकारा लगाते मैं और जय पथरीली पगडंडियों और चट्टानों के बीच से गुजरते हुए अंततः हम माता के दरबार तक पहुंच ही गए।पर माता के मंदिर के पास जाते ही हमें आश्चर्य का सामना करना पड़ा।

 नवरात्रि के पर्व में अन्य वर्षों में यहां मेले सा माहौल होता था।दुर्गम चढ़ाई के बावजूद लोगों की भीड़ उमड़ा करती थी। विभिन्न प्रकार की दुकानें सजा करती थी। वहां सन्नाटा व्याप्त था।

माता के पुजारी और स्थानीय लोगों के मौजूद होने की आशा से पहाड़ी पर चढ़े थे पर माता के अलावा वहां हमें कोई ना मिला। सुनसान निर्जन वन्यक्षेत्र में सिर्फ हम दो प्राणियों की मौजूदगी थोड़ी भयदायक थी,पर हम माता के आंचल की छत्रछाया में थे तो भयभीत नहीं हुए।जय पहली बार आया था,मैं पहले तीन चार बार और आ चुका था। दोनों हांफ रहे थे और माथे पर पसीना उभर आया था।

फिर मैंने और जय ने माता के चरणों में प्रणाम निवेदित करते हुए श्रीफल भेंट किया।चूंकि उस पहाड़ी पर सिर्फ मैं और जय ही थे इसलिए शाम होने के पहले उतरने की जल्दी थी। लगभग 15 मिनट तक हम वहां माता की छत्रछाया में रहे और इधर उधर का फोटो मैं अपने मोबाइल से लेता रहा।फिर माता को प्रणाम कर लौटने लगे।

माता का मंदिर विशाल चट्टान के नीचे बनाया गया है। मंदिर आकार में छोटा है, जहां माता की सुंदरमुखाकृति वाली कमर तक की मूर्ति स्थापित है।

सामने ही ज्योतिकक्ष का निर्माण किया गया है। हनुमानजी जी की सीमेंट से निर्मित मूर्ति भी पहाड़ी पर खुले में स्थापित है।उसी प्रकार माता काली और शिवजी के स्वरूप का अंकन भी पहाड़ी पर किया गया है।

चूंकि पहाड़ी पर इस स्थल के बारे में जानकारी देने वाला कोई नहीं मिला तो फिलहाल मैं माता के स्थापना के संबंध में जानकारी नहीं दे पाऊंगा।माता रानी की कृपादृष्टि रही तो अगले किसी ना किसी पोस्ट में जरूर उल्लेख करूंगा।

जय ताज्जुब में था पक्के ज्योतिकक्ष के निर्माण को देखकर।ऊपर पहाड़ी तक पानी और भवन निर्माण सामग्री पहुंचाने का काम आसान नहीं रहा होगा।स्थानीय जटियाई माता समिति के संचालक गण और ग्रामीणों के श्रम को प्रणाम है।

दिन डूबने के पहले ही माता जटियाई की कृपा से हम सुरक्षित वापस लौट आए....

बोलो जटियाई महारानी की जय!!!

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