जैसा कि मैंने पिछले पोस्ट में बताया था कि मैं और ललित मां टेंगनही दरबार की ओर चल पड़े थे,तब रास्ते में ललित भाई पहले और अब कि स्थिति में हुए परिवर्तन के बारे में बता रहे थे।उसने बताया कि पहले सडक के दोनों तरफ खूब पेड़ और झाड़ियां हुआ करती थीं।अकेले इस सडक पर चलने में डर लगता था।जंगली जानवरों के अचानक निकल आने का भय बना रहता था। कुछ बरस पहले यहां के आसपास रहनेवाले ग्रामीणों से पैसेवाले व्यापारियों ने बेहद कम कीमत पर जमीनों को खरीदा और अब उन जमीनों पर उन्होंने फार्म हाउस बना रखे हैं। पहाड़ी के नीचे वाला आसपास हिस्सा वीरान ग्राम टेंगनाभाठा के नाम से राजस्व रिकार्ड में दर्ज है।पर अब यहां भी आबादी का आगमन और बसाहट प्रारंभ हो गया है। बढ़ती जनसंख्या के कारण अब धरती का क्षेत्रफल कम पड़ने लगा है।ऐसे ही दुनिया भर की बातों का सिलसिला रास्ते भर चलता ही रहा थोड़ी देर बाद हम पहाड़ी के नीचे मौजूद थे।
ये पहाड़ी विकासखण्ड मुख्यालय छुरा से लगभग-लगभग 6 किमी की दूरी पर कोसमी-चुरकीदादर रोड के किनारे स्थित है और उंची पहाड़ी पर विराजमान है मां टेंगनही।वैसे ये रोड पड़ोसी राज्य ओडिशा को छत्तीसगढ़ से जोड़ती है।
माता टेंगनही की क्षेत्र में विशेष मान्यता है।
माता के स्थापना और नामकरण के संबंध में जनश्रुति है कि माता इस पहाड़ी पर विराजमान थीं और एक बार उन्होंने बिन्द्रानवागढ़ के राजा को स्वप्न में आकर अपने पहाड़ी पर विराजित होने की बात कही और दर्शन देने के लिए उनको तीन सिंगवाले बकरे की बलि देने की शर्त रखी।माता की आज्ञा शिरोधार्य करके राजा ने तीन सिंग वाले बकरे की खोज आरंभ कर दिया;पर बहुत यत्न करने पर भी राजा को तीन सिंग वाला बकरा नहीं मिला।थक हारकर राजा माता के द्वारा बताए हुए स्थान पर पहुंचा और माता से विनती किया कि वे उनकी शर्त पूरी करने में असमर्थ हैं। तब माता ने पुन: उनको स्वप्न में आकर बताया कि मेरे निवास से कुछ ही दूरी पर एक सरोवर स्थित है।उस सरार(सरोवर) में मिलने वाले तीन सिंग वाले टेंगनामछरी को लाकर बलि दो।तब माता की आज्ञानुसार राजा ने बलि दिया और माता ने उनको दर्शन देकर कृतार्थ किया।तब से प्रतिकात्मक रूप से माता टेंगनहीं को टेंगना मछली की स्वर्ण या चांदी प्रतिकृति मनौती पूर्ण होने पर भक्तों द्वारा चढ़ाई जाती है।टेंगनहीं माता का नामकरण भी इसी कारण टेंगनहीं हुआ।
जिस सरार की इस कहानी में प्रसंग आया है वह मेरे गृहग्राम टेंगनाबासा में आज भी मौजूद है और माता टेंगनहीं के नाम से ही गांव का नाम जुड़ा है।कुछ लोग मानते हैं कि ये सरार फिंगेश्वर में स्थित सरार से जुड़ा है।फिंगेश्वर स्थित सरार अब गंदगी से अटा पड़ा है लेकिन हमारे गांव के सरार में आज भी स्वच्छ निर्मल जल भरा रहता है और उसमें रहने वाली टेंगना मछली को पानी के अंदर तैरते देखा जा सकता है।
माता टेंगनही पहाड़ी में प्राकृतिक सुंदरता की भरमार है।पहाड़ी से नीचे देखने पर अद्भुत दृश्य दिखाई देता है। पहाड़ी के ऊपर विशाल शिला खंड पर चढ़कर ऐसा लगता है मानों बादलों को छू लेंगे।नीचे हरे हरे पेड़ों की हरियाली और खेतों में लहलहाती धान की फसल मन को प्रफुल्लित कर देता है।इस पहाड़ी में कई दुर्लभ वनौषधियां सहज रूप में उपलब्ध है। ललित भाई को पेड़ों की अच्छी जानकारी है।पहाड़ी के ऊपर बरगद की प्रजाति का एक पेड़ है। ललित ने बताया कि स्थानीय भाषा में उसको पाकर कहा जाता है।कुछ दूर पर केंवाच की बेलें पेड़ों पर चढ़ी हुई थी। उसमें लगे फूल और हरी हरी फलियां खूबसूरत लग रही थी।पर जितना ये देखने में खूबसूरत लगा पकने के बाद उतना ही खतरनाक हो जाता है।इस पेड़ के फलियों से अगर किसी व्यक्ति के शरीर का स्पर्श हो जाए तो इससे तीव्र खुजलाहट होने लगती है।बताते हैं कि इस खुजली से मुक्ति तभी मिलती है जब उस व्यक्ति को गोबर से नहलाया जाता है।खैर, वहीं पर एक प्रकार के जंगली मूंग की बेलें भी नजर आई। ललित ने बताया कि इसे मूंगेसर बोलते हैं। फिर मैं और ललित मूंगेसर खोजकर खाने लगे। आमतौर पर ये जंगली मूंग खेतों की मेड़ों पर भी उगते हैं।इसकी कच्ची फलियां स्वादिष्ट होती है। बचपन में बहुत खाते थे।
माता के दरबार की बात करें तो माता के स्थापना स्थल पर किसी भी प्रकार की अतिरिक्त बनावट नहीं की गई है,ना ही माता के लिए मंदिर का निर्माण किया गया है।सुरक्षा के लिए लोहे की रेलिंग लगी हुई है पहाड़ी पर।एक छोटा सा लोहे का गेट भी लगाया गया है। माता आज भी दो विशाल शिलाखंड के बीच स्थित गुफानुमा स्थान पर विराजित हैं।
दो विशाल शिला खंड पता नहीं किस प्रकार से पहाडी पर बिना किसी जोड़ के टिका है,समझ में नहीं आता। देखने से ऐसा लगता है कि ये अब तब लुढ़क सकते हैं।पर ये सदियों से वैसे ही विद्यमान हैं।वाकई ये कुदरत का चमत्कार है।नीचे आने पर एक स्थान पर राम तुलसी और श्याम तुलसी का झुरमुट एक साथ नजर आया। मैंने अच्छे अच्छे दृश्यों को अपने मोबाईल कैमरा में कैद कर लिया।पर अफसोस!!!सारे फोटो ब्लाग में डालते नहीं बनता।
पहले पहाड़ी के ऊपर बिजली की सुविधा नहीं थी लेकिन अब नवरात्र पर्व आदि पर बिजली की सुविधा पहाड़ी के ऊपर तक उपलब्ध हो जाती है।
पहाड़ी के नीचे भाग में हनुमानजी जी सहित अन्य देवी-देवताओं के मंदिर भक्त गणों द्वारा बनवाया गया है।स्थानीय 12 पंचायत समिति के द्वारा मंदिर की देखरेख की जाती है।पहले चैत्र पूर्णिमा के दिन चइतरई जात्रा मनाने का ही प्रचलन था।उस दिन माता के भक्तों के द्वारा यहां मनौतीस्वरूप बकरे आदि की बलि दी जाती थी,मेले का आयोजन होता था।आज भी प्रतिवर्ष जात्रा के दिन भव्य मेले का आयोजन किया जाता है और भक्तों की भीड़ उमड़ती है।जात्रा परब के साथ ही कालांतर में यहां शारदीय नवरात्र में ज्योतिकलश स्थापित किया जाने लगा जो आज भी निरंतर जारी है।विशाल ज्योति कक्षों का निर्माण स्थानीय जनप्रतिनिधियों के सहयोग द्वारा किया गया है। पहाड़ी पर चढने के लिए पक्के सिढियों का निर्माण हो चुका है। चढ़ाई दुर्गम नहीं है।
अगर आप प्राकृतिक सौंदर्य के प्रेमी हैं और माता टेंगनहीं के दर्शन के अभिलाषी हैं तो जरूर पधारियेगा।
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