गुरुवार, 22 अक्टूबर 2020

ब्रम्हचारिणी स्वरूपा मां जटियाई

 जैसा कि मैंने पिछले पोस्ट में बताया था कि मां जटियाई की महिमा के बारे में कुछ भी जानकारी प्राप्त होगी साझा करूंगा ।सो जानकारी प्रस्तुत है।

 माता जगदंबे की महिमा निराली है।वह अपने भक्तों की पीड़ा हरने के लिए अनगिनत रूप में स्थान स्थान पर विराजित हैं। छत्तीसगढ़ अंचल में अनेक ग्राम्य देवी-देवताओं की उपासना की जाती है। मातृशक्ति की उपासक इस धान के कटोरा का एक छोटा सा विकास खंड मुख्यालय है छुरा,जो गरियाबंद जिले में अवस्थित है।छुरा से लगभग 9 किमी की दूरी पर स्थित है जटियातोरा ग्राम।इसी गांव से लगा हुआ जटियाई पहाड़ी जिसमें माता जटियाई विराजमान है।धरातल से लगभग-लगभग 400 फीट ऊंची पहाड़ी पर माता का मंदिर स्थित है।ऊपर पहाड़ी तक जाने के लिए किसी भी प्रकार की सीढ़ी आदि का निर्माण नहीं हुआ है।कुछ दूरी तक मुरूम का रास्ता है, लेकिन ज्यादा रास्ता पथरीला है। पहाड़ी पर चढ़ाई आसान नहीं है। चट्टानों के बीच टेढ़े-मेढ़े पगडंडियों से होकर पहाड़ी की खड़ी चढ़ाई चढ़नी पडती है। जैसे-जैसे हम ऊपर जाते हैं सांस फूलने लगती है।किसी को सांस संबंधी कोई परेशानी हो तो पहाड़ी पर चढ़ने का प्रयास बिल्कुल ना करे। महिलाओं, बुजुर्गों और बच्चों के लिए पहाड़ी की चढ़ाई वर्तमान में सुगम नहीं है।दूसरी खास बात ये है कि शारदीय नवरात्र पर्व के अलावा वर्ष के अन्य महीनों में पहाड़ी निर्जन होता है,साथ ही हिंसक जंगली जानवरों का भय भी रहता है तो उस समय भी आना उचित नहीं होगा।

माता का मंदिर विशाल चट्टान के नीचे बनाया गया है। मंदिर आकार में छोटा है, जहां माता की सुंदरमुखाकृति वाली मूर्ति स्थापित है।खास बात ये है कि माता की यहां श्वेत पूजा होती है।किसी भी प्रकार की पशु बलि आदि यहां पूर्णतः निषिद्ध है।माता की पूजा श्वेत पुष्प से होती है और माता को श्वेत सिंगार सामग्री चढ़ाई जाती है।बताया जाता है कि माता यहां साध्वी(ब्रम्हचारिणी) स्वरूप में विद्यमान है।हालांकि माता के जटियाई नामकरण के पीछे किसी प्रकार की कोई किंवदंती नहीं है।पर ऐसा प्रतीत होता है कि सामान्यतः साधुगण जटाजूट धारी होते हैं और साध्वी के केश भी लट बंधाके जटा के रूप में बदल जाती है। संभवतः इसके कारण ही जटियाई(जटा वाली)नाम प्रचलित हुआ हो।

माता आदिकाल से इस पहाड़ी पर विराजमान है ऐसी मान्यता क्षेत्र में प्रचलित है।इसके संबंध में एक कहानी का उल्लेख करते हुए सेंदबाहरा निवासी गोपीराम ठाकुर ने बताया कि माता के साक्षात्कार की बहुत सी कहानियां बुजुर्ग बताते रहे हैं।ऐसा माना जाता है कि माता भिन्न भिन्न रूप में पहाड़ी के आस-पास भटकने वाले लोगों का मार्गदर्शन करती थी और भोजन आदि की व्यवस्था भी करती थी।

किसी समय हरिराम नाम का एक माता का भक्त जटियातोरा गांव में रहा करता था।माता जटियाई की उस पर अगाध आस्था थी और पहाड़ी के नीचे ही उसका खेत था। प्रतिदिन वह अपने कृषि कार्य से खेत जाता था,परंतु उसकी पत्नी को उसके लिए भोजन लाने में विलंब हो जाया करता था।माता भला अपने भक्त को भूखा कैसे रखती।तब माता जटियाई उसके लिए एक ग्रामीण महिला का वेष बनाकर उसको भोजन करा देती।तत्पश्चात उसकी पत्नी भोजन लेकर जाती तो वह पेट भरा है कहकर भोजन करने से इंकार कर देता।

इस बात से उसकी पत्नी के मन में शंका उत्पन्न हुई और वह सत्यता जानने के लिए एक खेत के मेड़ की ओट में छुपकर देखने लगी।दोपहर का वक्त हुआ और खाना खाने का समय हुआ तो एक ग्रामीण स्त्री हरिराम के लिए बटकी(एक प्रकार का गहराई वाला पात्र,बासी खाने के लिए प्रयोग होता है) में बासी लेकर आई और उसको भोजन कराया।जब हरिराम की पत्नी ने ये सब देखा तो उसके क्रोध का पारावार न रहा। ग्रामीण वेषधारी माता से उसने झूमा झटकी करना शुरू कर दिया।इस दौरान माता के हाथ में जो बटकी थी उसने उसे दूर तक फैंकते हुए कहा कि तुमने मुझ पर शंका किया है, इसलिए अब मैं यहां नीचे नहीं आउंगी, पहाड़ी पर ही रहूंगी। कहकर अंतर्ध्यान हो गई।तब दोनों पति-पत्नी  माता से क्षमा याचना करने लगे और माता सौम्य रूप में  पहाड़ी पर विराजमान हो गई।जिस स्थान पर माता ने बटकी फैंकी थी,वो आज भी बटकी बाहरा के नाम से जाना जाता है।

एक अन्य कहानीनुसार एक बार समीपस्थ ग्राम हीराबतर का गडहाराम नाम का आदमी छुरा बाजार से अपनी साइकिल में जरी खेंडहा की सब्जी लिए वापिस घर लौट रहा था।सेंदबाहरा पार करने के बाद पहाड़ी के समीप पहुंचने पर उसे लघुशंका करने की जरूरत महसूस हुई।उसने अपना साइकिल वहीं सडक किनारे खड़ी किया और सडक के नीचे लघुशंका के उद्देश्य से उतरने लगा।तभी उसको ऐसा महसूस हुआ कि शायद आसपास महिलाएं हैं।ऐसा सोचते सोचते वह थोड़ी दूर निकल आया।तभी कुछ दूरी पर उसको एक महलनुमा सुंदर मकान दिखाई दिया।जिज्ञासावश वह वहां चला गया। वहां माता जटियाई मोहक मुस्कान के साथ बैठी थी। उसने माता को प्रणाम किया तो माता ने कहा कि भोजन करके चले जाना।गडहाराम को वहां छप्पन भोग खाने को मिला।उसने जीवन भर में ऐसा भोजन नहीं खाया था।

इधर गडहाराम के रात तक घर ना आने पर उसके परिजन उसको ढूंढने निकल पड़े।सप्ताह बीत गया गडहाराम की खोज में,पर उसके संबंध में कोई जानकारी प्राप्त नहीं हुआ।इधर गडहाराम माता के सान्निध्य में था तो उसे कुछ पता नहीं था।भोजन के बाद गडहाराम ने माता से जाने की आज्ञा मांगी तो माता ने उसको जाने का मार्ग बता दिया। वहां से गडहाराम अपनी साइकिल पकड़ कर घर आया।उसके साइकिल में जरी खेडहा की सब्जी जस के तस हरी के हरी थी।घर वालों ने बताया कि उसके लौटने तक सात दिन बीत चुके हैं।गडहाराम मानने को तैयार ही नहीं था।वह उन लोगों को ये कहता था कि अगर इतने दिन बीत गए हैं तो सब्जी मुरझाया या खराब क्यों नहीं हुआ।इधर खोजबीन के दौरान लोगों को और रास्ते से गुजरने वाले लोगों को भी दैवीय कृपा से वह साइकिल नजर नहीं आती थी।गडहाराम घरवालों को बताता था कि माता ने उसको छप्पन भोग खिलाया था और वह भोजन उपरांत तुरंत लौटा है।जबकि वास्तविकता में बाहरी दुनिया में एक सप्ताह गुजर चुका था।तो ऐसी है माता की लीला और चमत्कार!!!

पहाड़ी पर पहुंचने के बाद आप देखेंगे कि


माता मंदिर के सामने ही ज्योतिकक्ष का निर्माण किया गया है। हनुमानजी जी की सीमेंट से निर्मित मूर्ति भी पहाड़ी पर खुले में स्थापित है।उसी प्रकार माता काली और शिवजी के स्वरूप का अंकन भी पहाड़ी पर किया गया है। पूर्णतः नैसर्गिक वातावरण है,जो मन को भाव विभोर कर देता है। आसपास के 27 गांव मिलाकर जटियाई सेवा समिति का गठन किया गया है,जिनके मार्गदर्शन में प्रतिवर्ष शारदीय नवरात्र का आयोजन हर्षोल्लास से किया जाता है।सन् 2000 से यहां पर मनोकामना ज्योति प्रज्ज्वलित की जा रही है। पहाड की चढ़ाई वर्तमान में थोडा कष्टसाध्य है। यहां सीढ़ी आदि का निर्माण हो जाए तो भक्तों को पहुंचने में सुगमता हो सकती है।
पहाड़ी की चढ़ाई कठिन होने पर भी यहां स्थानीय श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है।मन में माता की छवि लिए इस भाव के साथ...
 सेत सेत तोर ककनी बनुरिया

सेते पटा तुम्हारे हो मां

सेत हवय तोर गर के सुतिया

गज मोतियन के हारे...


बोलो जटियाई महारानी की जय!!

पोस्ट के आखिर में बताना चाहूंगा कि माता के संबंध में जानकारी देनेवाले श्री गोपी ठाकुर जी एक कुशल चित्रकार और जसगीत गायक है।वर्तमान में माता जटियाई की गाथा को लिपिबद्ध करने का स्तुत्य प्रयास कर रहे हैं।माता जटियाई की कृपादृष्टि सब पर बनी रहे। 



1 टिप्पणी:

Unknown ने कहा…

Aise hi ज्ञान वर्धक एवम् ऐतिहासिक पोस्ट करते रहे रीझे भईया जी

दिन चारी मइहरवा में....सुरता स्व.मिथलेश सर के

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