सोमवार, 21 सितंबर 2020

कचनाधुरवा...एक अमर प्रेमगाथा-4


नमस्कार मित्रों!कुछ दिनों पहले मैंने नवागढ के राजा और अंचल के प्रसिद्ध देव वीर कचनाधुरवा पर तीन पोस्ट में कहानी लिखी थी। जिसमें पहले पोस्ट के बाद बाकि पोस्ट में पाठकों के रूचि मुझे कम नजर आई इसलिए मैंने उस गाथा के क्रम को और आगे बढ़ने पर रोक लगा दी। लेकिन कुछ पाठक मित्रों ने वाट्सएप के माध्यम से बताया कि वो वीर कचनाधुरवा की प्रेमगाथा के बारे में भी जानने के लिए इच्छुक हैं। इसलिए उस क्रम को फिर से जारी करना पड़ा।इस प्रेमगाथा की सत्यता पर मुझे व्यक्तिगत रूप से संदेह है क्योंकि मैं कचनाधुरवा को एक संपूर्ण व्यक्तित्व मानता हूं क्योंकि लोकमान्यताएं और अंचल में स्थापित कचना धुरवा की प्रतिमाएं इसकी पुष्टि करते हैं।
लेकिन कुछ लोगों का ये मानना है कि धुरवा नवागढ़ के राजा थे और कचना जिसे कहीं कहीं कचनार भी उल्लेखित करते हैं वह धर्मतराई(वर्तमान धमतरी)नरेश की पुत्री थी।इन दोनों के बीच प्रेम का प्रस्फुटन ही कहानी का आधार है।
प्रेम कहानी की भरमार है हमारे देश में;और देश में ही क्यों पूरी दुनिया में प्रेमियों और प्रेम कहानियों की भरमार है।रोमियो जूलियट, लैला-मजनूं,शीरी-फरहाद,हीर-रांझा,सोहनी-महिवाल,लोरिक-चंदा और इसी क्रम में कचना-धुरवा।
  हमारे आराध्य श्री राधा-कृष्ण की प्रेमगाथा तो जगत विख्यात है ही।वैसे प्रेम ने दुनिया को नाच नचाया है और कभी दुनिया दो प्रेमियों के प्रेम के आगे झुकती नजर आई तो कभी प्रेमियों को दुनिया के सामने नतमस्तक होना पड़ा।कबीर ने तो प्रेम को ही सर्वोपरि माना है।उनका कहना था पोथी पढ़-पढ़ जगमुआ पंडित भया ना कोय,ढाई आखर प्रेम का पढ़े सो पंडित होय।पर इसके ठीक उलट देखने सुनने में आता है कि ज्यादातर प्रेमगाथाओं का दुखद और त्रासदीपूर्ण समापन होता है। प्रेमियों को मुसीबतों और कठिनाई का सामना करना ही पडता है चाहे वो मीरा का कृष्ण से दिव्य प्रेम हो या पृथ्वीराज और संयोगिता का सांसारिक प्रेम।
एक मिनिट.. इस क्रम में एक और नाम है चंद्रकांता का।चंद्रकांता कौन?अरे!वही सीरियल वाली प्रेम-कहानी जिसने लोगों को टीवी सैट खरीदने के लिए मजबूर कर दिया था।जो बाबू देवकीनंदन खत्री लिखित उपन्यास पर आधारित थी। उसमें का क्रुरसिंह होने को तो क्रूर था लेकिन था बड़ा प्यारा...यक्क् पिताजी!यक्कू!!!वाला उसका डायलॉग हमारा फेवरेट था।इसका टाइटल सांग भी बड़ा प्यारा था-
नौगढ,विजयगढ में थी तकरार
नौगढ का था जो राजकुमार
चंद्रकांता से करता था प्यार....
विनोद राठौड़ के दमदार आवाज वाली गीत आज भी याद है।वैसे नौगढ़ और नवागढ़ में अंतर भी क्या है? सिर्फ राजा बस अलग है और प्रेम कहानी तो लगभग वही है।
तो चलिए कहानी का आगाज करते हैं-ये गाथा है एक वीर योद्धा की जो शौर्य और साहस का पर्याय था।वीरता और प्रेम जिसके नस-नस में भरी थी।वीर धुरवा का जन्म राजपुत्र होने के बाद भी बड़ी कठिन परिस्थितियों में हुआ था।उसके पिताजी को शत्रुओं ने विष देकर धोखे से मार दिया था।मां ने एक ब्राम्हण के आश्रय में धुरवा का लालन-पालन किया। युवावस्था में आने के बाद अपने पराक्रम से धुरवा ने नवागढ़ राज्य की नींव रखी और अपने क्षेत्र का विस्तार करने लगा।
युवा राजा धुरवा एक दिन आखेट के लिए धर्मतराई और नवागढ़ के संगमक्षेत्र के जंगल में गया तो एक राजकुमारी के सौंदर्य पर मोहित हो गया जो धर्मतराई नरेश की पुत्री कचना थी।अपनी सखियों के संग वन विहार के लिए आई कचना भी उस सजीले नौजवान को देखकर मुग्ध हो गई।क्योंकि वो स्वप्न में एक सफेद घोड़े पर सवार राजकुमार को रोज देखती थी,जिसका चेहरा अस्पष्ट सा जान पड़ता था।धुरवा को देखते ही वो अस्पष्ट स्वरूप साकार हो उठा। फिर क्या था एक अनूठी प्रेमगाथा का आरंभ हो गया।
अब तो दोनों के बीच प्रेम का बीज अंकुरित हो चुका था सो वे वन्यक्षेत्र में बहुधा मिला करते थे। लेकिन वो कहते हैं ना कि इश्क और मुश्क छुपाए नहीं छुपती सो धीरे-धीरे इस बात की खबर धर्मतराई नरेश को हुई तो उसने कचना को ये संबंध समाप्त करने की चेतावनी दी और धुरवा को भूल जाने का आदेश दिया। लेकिन प्रेमियों पर किसी की बातों का भला क्या असर??उनकी मुलाकातें होती रही और प्रेम परवान चढ़ता रहा। तब राजा ने धुरवा को मरवाने का कई बार प्रयास किया,पर असफल रहे।धुरवा को दैवीय शक्तियां प्राप्त थी इसलिए शत्रु उसका बाल भी बांका नहीं कर पाते थे।राजा ने जब इसके संबंध में जानकारी पता लगाने गुप्तचरों को भेजा तो उन्होंने राजा को बताया कि राजा की मृत्यु का रहस्य अज्ञात है।वीर धुरवा का कोई करीबी ही उसकी मृत्यु का रहस्य जान सकता है।तब राजा ने एक महिला के माध्यम से नशे की स्थिति में धुरवा से उसकी मृत्यु के भेद का पता लगा लिया तो ज्ञात हुआ कि धुरवा की मृत्यु तभी हो सकती है जब उसका सिर तलवार से कटने के उपरांत भूमि पर और धड़ पानी में गिरे।तब राजा ने धुरवा को विवाह प्रस्ताव के बहाने धर्मतराई और नवागढ़ राज्य के बीच बहनेवाली पैरी नदी  के पास बुलाया और छलपूर्वक उसकी हत्या कर दी।कुछ जानकारों का मानना है कि ये स्थान कुटेना के पास स्थित सिरकट्टी नामक स्थान है और कुछ लोगों का मानना है कि ये स्थान धमतरी जिला अंतर्गत स्थित डाभा करेली गांव के पास है।खैर,इस बात की तस्दीक इतिहास कार सही सही कर पायेंगे। तलवार के वार से वीर धुरवा का सिर जमीन पर गिर गया और धड़ पानी में गिरा।जब कचना ने धुरवा की हत्या की खबर सुनी तो उसने भी जहर खाकर अपनी जान दे दी।इस प्रकार से दो अद्भुत प्रेमियों की प्रेमगाथा का अंत हो गया। मृत्यु के बाद कचनाधुरवा का नाम एक हो गया और वे जनसामान्य में देवता के रूप में पूजित हो गए।अनेक गांवों में जागृत देव के रूप में उनकी पूजा होती है। कहते हैं चिंगरापगार की वादियों और पैरी नदी के आसपास के जंगलों में आज भी उनकी प्रेमगाथा गुंजित हुआ करती है। बताते हैं कि जब धुरवा का सिर कटकर अलग हो गया तो दुश्मन उसे वहीं छोड़ कर चले गए उसी दौरान एक बुढ़िया गोबर आदि इकट्ठा करने के लिए आई तो धुरवा के शीश ने उसको अपनी राजधानी नवागढ़ तक ले जाने का आग्रह किया तब उस बुढ़िया ने धुरवा राजा के सिर को अपनी टोकरी में रखा और नवागढ़ के लिए चल पड़ी। मान्यता़ है कि  नवागढ़ की लंबी यात्रा के दौरान जिस जिस स्थान पर उस बुढ़िया ने अपनी टोकरी रखी वहां वहां वीर धुरवा राजा की स्थापना है। जिसमें बारूका ग्राम के पास स्थित पहाड़ी,झालखम्हार के पास स्थित स्थान प्रमुख है। यात्रा के अंतिम स्थल नवागढ की पहाड़ी में राजा के शीश को स्थापित कर दिया गया।कचना धुरवा अमर है,उसकी गाथा अमर है।अंचल में गाए जानेवाले कुछ देवी जस गीतों में उनका वर्णन होता है।सफेद घोड़े पर सवार उनकी प्रतिमा देखकर एक गीत बरबस याद आ जाता है....
एक घोड़ा कुदाये खदबद खदबद हो.....
बोलो कचना धुरवा महराज की जय!!!
एक बात और...कहानी अभी बाकि है दोस्त....इस गाथा के पांचवें पड़ाव मे फिर मिलेंगे।तब तक स्वस्थ रहें...मस्त रहें

दिन चारी मइहरवा में....सुरता स्व.मिथलेश सर के

  लोकगीतों की अपनी एक अलग मिठास होती है।बिना संगीत के भी लोकगीत मन मोह लेता है,और परंपरागत वाद्य यंत्रों की संगत हो जाए, फिर क्या कहने!! आज ...