भारत गांवों का देश कहा जाता है।देश की कुल आबादी का तिहाई हिस्सा गांवों में ही निवास करता है।देश की कला, संस्कृति और परम्पराओं का जतन भी गांव में ही होता है।गांव हैं तो खेत है, कुआं है,तालाब हैं,किसान हैं और किस्से कहानियां भी है। छत्तीसगढ़ अंचल के ओनहा कोनहा(सभी हिस्सों) में लोककथा की भरमार है।जरूरत है अपने आनेवाली पीढ़ियों के लिए उसको सहेज कर रखने कि ताकि उन्हें अपने इतिहास का स्मरण रहे और ये किस्से कहानियां जीवनपथ पर उनका मार्गदर्शन करता रहे।बहुत दिनों से मैं अपने क्षेत्र के वीर कचनाधुरवा महराज के किस्से कहानियां इकट्ठा करने के प्रयास में हूं।कुछ सफलता भी मिली है,पर अभी और खोज जारी है।
फिलहाल मैं अपने गांव के नामकरण से संबंधित जनश्रुति और ग्राम की आराध्य देवी टेंगनही माता के चमत्कार के बारे में बताउंगा,जो मुझे ग्राम के कुछ वरिष्ठ जनों के मुख से सुनकर ज्ञात हुआ है। दरअसल मेरे गांव का नाम माता टेंगनही के नाम से जुडकर बना है। हमारे गांव से लगभग चार किलोमीटर की दूरी पर स्थित पहाड़ी में माता टेंगनही का दरबार है।इस माता के चमत्कार की घटनाएं आस-पास के गांव में सुनने को मिल सकता है।बताते हैं कि किसी समय नवागढ़ के राजा ने माता टेंगनही से अपने राज्य विस्तार की इच्छा से मनौती मांगी थी तब माता ने उनको तीन सिंगवाले बकरे की बलि मांगी थी।राजा को बहुत प्रयास करने पर भी कहीं तीन सिंगवाला बकरा नहीं मिला तो उन्होंने माता से विनती किया तब माता ने उनको स्वप्न में आकर आदेश दिया कि मेरे निवास से कुछ दूर पर स्थित सरार(सरोवर)से तीन सिंग वाले टेंगनामछरी को लाकर बलि दो।माता की आज्ञानुसार राजा ने बलि दिया।तब से प्रतिकात्मक रूप से माता टेंगनहीं को टेंगना मछली की स्वर्ण प्रतिकृति मनौती पूर्ण होने पर चढ़ाई जाती है।टेंगनहीं माता का नामकरण भी इसी कारण टेंगनहीं हुआ।
जिस सरार से टेंगनहीं माता को टेंगनामछली की बलि दी गई वो सरार आज भी हमारे गांव में विद्यमान है जहां आज भी प्रचुर मात्रा में टेंगना मछली मिलता है। जनश्रुति है कि माता टेंगनहीं उसी सरार में स्नान के लिए आया करती थी और कुछ समय के लिए वास भी करती थी,जिसके कारण ग्राम का नाम टेंगनाबासा पड़ा।हो सकता है टेंगनहीवासा ना बोलकर सहूलियत के लिए टेंगनाबासा ज्यादा उचित लगा हो लोगों को।
ये तो नामकरण का किस्सा हुआ।एक और अचरज भरी बात है इस गांव की। यहां कोई तेली(जाति)का परिवार निवास नहीं कर सकता।मान्यता है कि तेली जाति के लोगों का वंश यहां नहीं फल फूल सकता है।इसके पीछे फिर माता की कहानी है।बताते हैं कि किसी समय में कोई तेली परिवार इस ग्राम में व्यवसाय के लिए आया था और यहीं निवासरत हो गया।एक दिन उस व्यापारी ने माता टेंगनहीं को सरार में स्नानरत देखकर उसको साधारण युवती समझकर छेड़छाड़ करने की कोशिश की तब माता ने उसको श्राप दिया कि तुम्हारी जाति के लोग इस गांव में कभी अपना वंश आगे नहीं बढ़ा पायेंगे।तब से इस लोकमान्यता का असर दिखाई देता है।आज भी हमारे गांव में तेली जाति का कोई व्यक्ति निवास नहीं करता।है ना अचरज की बात!!!जबकि हमारा पड़ोसी ग्राम रावनाभाठा तेली बाहुल्य है।
गांव पर माता की असीम कृपा है।इस गांव को आशीष मिला है कि यहां कभी भी माता का प्रकोप(चेचक जैसी संक्रामक बिमारी) नहीं होगा।दूसरी जगह से भले ही पहुनास्वरूप आ सकती है लेकिन यहां कभी पैदा नहीं हो सकती।गांववाले इस बात की पुष्टि करते हैं।माता के प्रति अगाध आस्था के कारण किसी भी शुभ कार्य को प्रारंभ करने से पहले माता को नेवता अवश्य दिया जाता है।गांव की रामायण मंडली से लेकर स्वयं सहायता समूह का नाम भी माता पर आधारित है।
कुछ और भी विशिष्टता है।जैसे कि इस ग्राम पर माता सरस्वती और लक्ष्मी की विशेष कृपा है।गांव धन-धान्य से संपन्न और शिल्प कारों का गांव है।यहां राजमिस्त्री,बढई,पेंटर आदि कामों के जानकार घर घर है।दूसरी बात अजीब बात है कि ये ग्राम विवाहित बेटी और दमांदो को खूब फलता है।गांव की आधी से ज्यादा आबादी उन्हीं की है।
एक बात सबसे अच्छी है कि गांव में एकता है।जब बस्ती महज अस्सी नब्बे घर की थी तब भी एक ही स्थान पर कमरछठ पूजा,गौरी गौरा स्थापना और माता दुर्गा की स्थापना होती थी और आज जबकि घरों की संख्या बढ़कर एक सौ पचास के पार चली गई है तब भी स्थिति जस की तस है।आज जब एक परिवार में संख्या बढने पर कोई आयोजन अलग-अलग होने लगता है उस स्थिति में एक बड़े गांव का एक रहना अपने आप में बेमिसाल है।
अभी के लिए बस इतना.....
3 टिप्पणियां:
घरजमाई जायदा हैं मतलब , गांव में
हां,कुछ कुछ ऐसा ही समझिए।लेकिन ज्यादातर लोग काम काज आदि के चक्कर में अपने ससुराल ग्राम में ही रहने लगे थे।
काफी सुंदर लेख है मेल य्या वाट्सप कीजिये07803090006
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