सोमवार, 2 नवंबर 2020

बटोरनलाल की कलायात्रा

 


आज का समाचार पत्र देखा तो पता चला कि अंततः राज्य निर्माण के बीसवें वर्ष में हमारे वयोवृद्ध कलाकार श्री शिवकुमार'दीपक' को लोककला में उनके योगदान के लिए राज्य अलंकरण"दाऊ मंदराजी सम्मान"से अलंकृत किया गया है।इस पर पोस्ट लिखने का विचार मन में चल ही रहा था कि ललित भाई का वाट्सएप मैसेज इस विषय पर लिखने के लिए आ गया।"दीपक" जी से मेरी प्रत्यक्ष भेंट तो नहीं है पर मोर मितान चैनल के दिलीप भाई से उनकी बातचीत और उनसे संबंधित मेरी अल्प जानकारी के आधार पर ये पोस्ट लिख रहा हूं।

राज्य शासन द्वारा दीपक जी को अलंकृत किया जाना स्वागतेय है पर मुझे लगता है कि उनको ये पुरस्कार मिलने में थोड़ा विलंब हो गया,वरन वे पहले ही इसके अधिकारी थे।खैर,देर आए दुरुस्त आए।सही व्यक्ति को सही सम्मान मिला।

इस पुरस्कार के बाद उनको पद्म पुरस्कार भी मिल जाए तो श्रेयस्कर होगा। हालांकि उनसे आयु में कम और कला क्षेत्र में कम अनुभवी लोगों को पद्मश्री जैसे प्रतिष्ठित पुरस्कार से नवाजा जा चुका है।

दुर्ग जिले के पोटिया ग्राम में जन्मे शिवकुमार"दीपक"जी की बचपन से ही अभिनय में रूचि थी।बालपन में अपने साथियों के संग किसी के सूने मकान या बियारा(खलिहान) में घर की साड़ियां आदि के कपड़े,गेरू आदि से मेकअप और सिगरेट के डिब्बे की चमकीली पन्नियों का मुकुट बनाकर राम लीला खेला करते थे।

बचपन से जारी अभिनय का उनका ये शौक कालेज की पढ़ाई के दौरान भी चलता रहा और उनको एक बार कालेज की ओर से युवा महोत्सव नागपुर में अभिनय दिखाने का अवसर प्राप्त हुआ। कार्यक्रम में पं.जवाहर लाल नेहरू अतिथि थे। उन्होंने शिवकुमार का अभिनय देखा और उसको सदैव दीपक की भांति उजाला फैलाने का आशीर्वाद दिया।बस!इसी आशीर्वचन को शिवकुमार ने अपने नाम से जोड़ लिया और बन गए हमारे शिवकुमार "दीपक"।

उनकी कला यात्रा अद्भुत है।वे लोक सांस्कृतिक मंच और फिल्मों में समान अधिकार के साथ अभिनय करते हैं।सन् 1963 के आसपास जब मनुनायक जी ने छत्तीसगढ़ी भाषा की पहली फिल्म "कहि देबे संदेश"का निर्माण किया तो इस फिल्म में शिवकुमार"दीपक" ने रसिकराज नाम से फिल्म में अभिनय किया। जब छत्तीसगढ़ी फिल्म का एक लंबे दौर के विराम के बाद पुनः निर्माण प्रारंभ हुआ तो पृथक छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण के बाद प्रदर्शित पहली छत्तीसगढ़ी" मोर छंइहा भुईंया" में भी अभिनय किया।ये अपने आप में एक अनूठी बात है। तत्पश्चात प्रेम चंद्राकर के फिल्मों में स्व.कमलनारायण सिन्हा के साथ इनकी आनस्क्रीन जोड़ी "कचरा-बोदरा" के रूप में छत्तीसगढ़ के गांव गांव में प्रसिद्ध हो गया।महिला किरदार को हूबहू अभिनीत करने में उनका कोई मुकाबला नहीं है।ग्रामीण महिला के लहजे की बारिकियां वे इस कुशलता से अभिनीत करते हैं कि पहले-पहल देखने वाला अवश्य ही भ्रमित हो जायेगा कि कलाकार वास्तव में पुरुष है कि नारी।हास्य भूमिका निभाने में वे पारंगत है।

"दीपक"जी ने छत्तीसगढ़ी सहित मालवी,भोजपुरी,हिंदी और अफगानी फिल्मों में भी काम किया है।'सुहागन' व 'हल और बंदूक' उनके द्वारा अभिनीत हिंदी फिल्म है, जिनमें उनके साथ रजा मुराद,अरूण गोविल और परीक्षित साहनी जैसे कलाकारों ने काम किया है।

सन् 1971 में दाऊ रामचंद्र देशमुख जी ने छत्तीसगढ़ी लोक सांस्कृतिक मंच"चंदैनी गोंदा"का गठन किया। जिसमें अपने-अपने फन में माहिर कलारत्नों को चुना गया था।उस मंच पर भी शिवकुमार"दीपक"जी ने अपने अभिनय का जादू चलाया।दाऊ जी ने "चंदैनी गोंदा" के कुल 99 प्रदर्शन के बाद उसका बागडोर श्री खुमानलाल साव जी के हाथ में सौंप दिया।बीच में "दीपक" जी इस मंच से कुछ दिनों तक गायब रहे।फिर खुमानलाल साव जी ने उनको पुनः "चंदैनी-गोंदा" से जोड़ा जिसमें उनकी अभिनय यात्रा चलती रही।साल 2018 में अंतिम बार मैने उनको चंदैनी गोंदा के मंच पर बटोरन लाल के रूप में देखा था।जिस तरह से बटोरनलाल के चरित्र को वे मंच पर जीवंत करते हैं,शायद दूसरा कलाकार ना कर पाए।आम जन मानस की पीड़ा को वे अपने व्यंग्य के माध्यम से व्यक्त करते हैं।एक बार बीस सूत्री प्रहसन में उन्होंने तत्कालीन सरकार ऊपर तीखा व्यंग्य कर दिया था तो उनके ऊपर जांच बिठा दी गई थी।कालेज के दिनों में गांधीजी के देशसेवा करने के आह्वान पर वे अपने साथियों के साथ दुर्ग कचहरी में लगे ब्रिटिश झंडा को आग लगाने का असफल प्रयास करते पकड़े गए थे, तब उस समय के स्वतंत्रता सेनानियों ने उनको छुडाया था। डॉ खूबचंद बघेल द्वारा लिखित नाटक"जनरैल सिंह"के मंचीय संस्करण छत्तीसगढ़ रेजीमेंट प्रहसन में उनका विशुद्ध छत्तीसगढ़ी संवाद लोट-पोट कर देता है। छत्तीसगढ़ की विशिष्टता का पक्ष रखते हुए भारतीय सेना में अन्य रेजीमेंट की तरह छत्तीसगढ़ रेजीमेंट की मांग संदेश परक हास्य प्रस्तुति है।  दाऊ रामचंद्र देशमुख,श्री खुमान साव और लक्ष्मण मस्तुरिया की तरह बटोरनलाल अर्थात "दीपक जी" भी चंदैनी गोंदा की पहचान है।वैसे उनके पुत्र शैलेष साव भी अपने पिताजी के नक्शे कदम पर चलकर अभिनय में अपना जौहर दिखा रहे हैं।भूपेंद्र साहू कृत लोक सांस्कृतिक मंच"रंग-सरोवर"के साथ ही विभिन्न छत्तीसगढ़ी फिल्मों में अपनी कला का प्रदर्शन कर रहे हैं।

बढती उम्र और शारीरिक असमर्थता ने उनको अब मंच से दूर कर दिया है पर उनके भीतर का कलाकार थका नहीं है। 88 साल की उम्र में भी कलाकारी के लिए तत्पर जान पड़ते हैं।प्रख्यात लेखक श्री पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी के भतीजे रमाकांत बख्शी को अपना गुरु मानने वाले शिवकुमार"दीपक"जी शतायु हों।ऐसी कामना है...

1 टिप्पणी:

tarun kumar verma ने कहा…

Mere priy kalakar hain, Deepak ji ek baar gariyaband me shooting ke dauran unke darshan ka bhi saubhagy mila tha , afsos us samay camera wale phon nahi the ,warna us pal ko kaid kar leta 🙏

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