सोमवार, 30 नवंबर 2020

माता चंपई दर्शन

सुरंग मार्ग
बेंदरा कछेरी


पहाड़ी से दृश्य

जंगली वनस्पति का सौंदर्य


 

माता चंपई और खल्लारी

छत्तीसगढ़ का कोना-कोना प्राकृतिक सौंदर्य से भरा पड़ा है।पग-पग पर कहानियां बिखरी पड़ी है।हम चाहे कितने भी आगे बढ़ जायें पर अतीत से हमारा नाता कभी नहीं टूट सकता।हर नई कहानी में पिछली कहानी का हिस्सा जरुर जुड़ा होता है।
कभी-कभी अनायास ही कहीं जाने का कार्यक्रम बन जाता है और वहां मेरे मतलब की चीजें मिल जाए तो फिर क्या कहने? घरेलू काम से आज जिला मुख्यालय महासमुंद से लगभग 14 किमी दूर स्थित मोंहदी ग्राम आने का कार्यक्रम बना तो माता चंपई के दर्शन लाभ का भी मौका मिला।
उंची पहाड़ी पर स्थित सुरंग में माता चंपई अपनी बहन माता खल्लारी के संग विराजमान हैं।सुरंग पूर्णतः प्राकृतिक है।सिर्फ चलने के लिए नीचे की ऊबड़-खाबड़ पथरीली जमीन पर सीमेंट का कार्य कराया गया है। चढ़ाई दुर्गम नहीं है।सुरंग तक पहुंचने के लिए पत्थर और सीमेंट से निर्मित पक्की सीढ़ी का निर्माण किया जा चुका है। आस-पास के चार गांव मोंहदी,तरपोंगी,अरंड और बेलर गांव के ग्रामीणों की माता चंपई पर अगाध श्रद्धा है।माता के नवरात्र पर्व पर कार्यक्रमों का संचालन इन्हीं गांवों के निवासियों के द्वारा किया जाता है। पहाड़ी पर ज्योति कक्ष का निर्माण कराया जा चुका है।
पहाड़ी के नीचे हनुमानजी और भैरवनाथ के छोटे-छोटे मंदिर हैं।वैसे हनुमानजी पहाड़ी पर तीन चार जगहों पर विराजित हैं।
माता के स्थापना के संबंध में ग्रामीणों के अनुसार जानकारी मिलती है कि माता चंपई ने गांव के बईगा को स्वप्न देकर अपनी पहाड़ी पर रहने की बात बताई थी।कुछ काल के पश्चात भीमखोज स्थित माता खल्लारी किसी बात पर नाराज़ होकर अपने मूल स्थान बेमचा पर जाने के लिए निकल पड़ीं तो माता चंपई ने उनको अपने साथ रहने के लिए मना लिया।बताया जाता है कि जब माता खल्लारी से निकली तो मार्ग में आने वाले बड़े बड़े पेड़ धराशाई हो गए थे।रास्ते भर तबाही के संकेत थे। लेकिन इस पहाड़ी के आगे से ऐसा कुछ नहीं हुआ तो माना गया कि माता खल्लारी अपनी बहन के साथ रहने लगी।तब से दोनों बहनों की साथ ही पूजा होती है। दोनों विग्रह एक स्थान पर साथ में विराजित हैं।जनमानस में कोई कहानी पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तांतरित होती है,तो उसमें बदलाव संभाव्य है इसलिए माता के संबंध में प्रचलित कहानी अपुष्ट है।
हालांकि जिस पहाड़ी पर माता विराजित हैं वहां से खल्लारी की पहाड़ियों पर स्थित माता खल्लारी का मंदिर स्पष्ट दिखाई देता है।
इस पहाड़ी पर प्राकृतिक सौंदर्य की भरमार है। पहाड़ी से आसपास का दृश्य मनोरम दिखाई देता है। फिलहाल प्राकृतिक दृश्यों पर कृत्रिम बनावट नहीं हुई है।ये अच्छी बात है।
इसी पहाड़ी पर एक स्थान को बेंदरा कछेरी कहा जाता है।नाम मजेदार है।बताते हैं कि उस स्थान पर पहले बंदर हमेशा मौजूद रहते थे।चूंकि कछेरी का तात्पर्य कचहरी से है,हो सकता है कचहरी की भीड़ की तरह वहां उमड़ने वाली बंदरों की भीड़ के कारण बेंदरा कछेरी नाम पड़ा हो।
कुछ प्रशासनिक सहयोग मिले तो संभवतः इस स्थान को पर्यटन स्थल के रूप में बदला जा सकता है।बाकी बातें अगले पोस्ट में...तब तक राम..राम..

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