चंदैनी गोंदा,एक छोटा सा खुशबूदार और सदाबहार पुष्प जो आमतौर गांवों में सहज रूप से कुएं के पास या बाड़ी में मिल जाया करती है।इसके छोटे-छोटे लाल पीले रंगत लिए फूल बड़ी मात्रा में छोटे-से पौधे मे खिलते हैं,जो सामान्यत: देव-पूजा में प्रयुक्त होते हैं।चंदैनी मतलब चांदनी।जिस प्रकार आकाश में एक साथ अनगिनत चांदनी दिखाई पड़ते हैं,उसी प्रकार चंदैनी गोंदा के नन्हें पौधे पर भी अनगिनत फूल खिलते हैं।
चंदैनी गोंदा का सौंदर्य देखते ही बनता है।नाम अनुरूप छत्तीसगढ़ का प्रतिष्ठित सदाबहार लोक सांस्कृतिक मंच है"चंदैनी-गोंदा"।दाऊ रामचंद्र देशमुख द्वारा रोपित और आदरणीय खुमान लाल साव जी के श्रम से सिंचित"चंदैनी-गोंदा"समय की मार से आज तक कुम्हलाया नहीं है।यह कार्यक्रम छत्तीसगढ़ में राजनीतिक और सांस्कृतिक जागरण का शंखनाद था।
मुझे याद है साल 2002 में हमारे निकटतम कस्बे छुरा में दशहरे के अवसर पर"चंदैनी-गोंदा"का कार्यक्रम आया था।तब मुझे इस संस्था के बारे में ना तो कोई जानकारी थी और ना ही मुझे लोकमंच के कार्यक्रम में विशेष रूचि थी।सोचा था कि रावण दहन के पश्चात एकाध घंटे कार्यक्रम देखके लौट आयेंगे। लगभग-लगभग रात के 10 बजे"चंदैनी-गोंदा" कार्यक्रम की प्रस्तुति की शुरुआत हुई। छत्तीसगढ़ लोक संस्कृति और देशभक्ति गीत की प्रस्तुति के बाद उन जाने पहचाने गीत की प्रस्तुति होने लगी जिन्हें मैं बचपन से रेडियो आदि पर सुनते आ रहा था।वापस घर लौटने का इरादा बदल गया और मैं कार्यक्रम देखने में रम गया। छत्तीसगढ़ रेजीमेंट और बटोरनलाल वाला प्रहसन देखकर तो एकदम जमके बैठ गया।पूरे रात-भर कार्यक्रम चला और कार्यक्रम के समापन के बाद भोर हुई तब घर लौटा।ऐसा आकर्षण था चंदैनी गोंदा का।इस लोकमंच के कार्यक्रम को देखकर छत्तीसगढ़ी गीत-संगीत का जादू मुझ पर इस कदर चढ़ा कि आज तक झूम रहा हूं।तब कार्यक्रम के कलाकारों के नाम से परिचित नहीं था।कुछ बीतने के बाद जब जानकारी बढ़ी तब ज्ञात हुआ कि हारमोनियम वादन करने वाले चंदैनी गोंदा के आधार स्तंभ खुमान साव जी थे और बटोरनलाल की भूमिका में प्रख्यात हास्य कलाकार शिवकुमार'दीपक' और उसके पीए की भूमिका में हेमलाल कौशल थे।अभी दो साल पहले ही मेरे गृहग्राम में भी"चंदैनी-गोंदा"का आयोजन हुआ था।तब भी पूरी रात जागकर कार्यक्रम देखा था।कुछ कलाकारों का बदलाव हुआ था पर कार्यक्रम का तेवर और खुमान जी का अंदाज नहीं बदला था। बीच-बीच में सिगरेट के कस लगाते रहते और हारमोनियम पर उनकी उंगलियों का जादू चलते रहता।उनका रचा संगीत अजर अमर हो गया है।मुझे इस मंच पर प्रस्तुत होनेवाली देशभक्ति गीत रोमांचित कर देती है।देशभक्तों की कुर्बानी और अंग्रेजों के अत्याचार का दृश्यांकन देखकर देह घुरघुराने लगता है।अजादी के परसाद नाटक में हास्य के साथ ही जोरदार संदेश भी मिलता है।बटोरन लाल जैसे नेताओं के कारण देश की दुर्गति और विषम परिस्थितियों के कारण उपजी युवाशक्ति का आक्रोश इस प्रस्तुति में देखने को मिलती है।
"चंदैनी-गोंदा"मनोरंजन मात्र के उद्देश्य से स्थापित एक लोकमंच नहीं था बल्कि मनोरंजन के साथ-साथ लोगों में जागरण का संदेश पहुंचाना भी था।"चंदैनी गोंदा" की सर्वप्रथम प्रस्तुति दाऊ रामचंद्र देशमुख के गृहग्राम बघेरा में 7 नवंबर सन् 1971 को हुई थी।इस लोक सांस्कृतिक मंच के कलाकारों के तलाश में उन्होंने कई कोस की यात्रा की थी।तब जाकर उन्हें एक से बढ़कर एक नगीने मिल पाए। अपने-अपने हुनर में माहिर कलाकारों की कलाकारी जब मंच पर अवतरित हुई तो लोग वाह-वाह कर उठे। छत्तीसगढ़ महतारी के वैभव को देखकर दर्शक मंत्रमुग्ध हो गए।चंदैनी गोंदा के गीत लोगों की जुबां पर आ गए।अल्प समय में ही चंदैनी गोंदा को अपार ख्याति मिली।भारत मां के रतन बेटा,धरती के अंगना मा,पता ले जा रे गाड़ी वाला,शहर डहर के जवइया जैसे अनेक गीतों को अपार ख्याति मिली।चंदैनी गोंदा के तकरीबन 22 गीतों की रिकार्डिंग आकाशवाणी रायपुर से हुई जिसका निरंतर प्रसारण आज भी हो रहा है।
दाऊ रामचंद्र देशमुख में बचपन से ही मंचीय कला के प्रति रूझान था।गांव में आयोजित होने वाली रामलीला देखकर लगभग 14-15 साल की उम्र में उन्होंने हमउम्र साथियों के साथ मिलकर खुद की लीला मंडली बना ली थी।सन् 1951 में उनके द्वारा "छत्तीसगढ़ देहाती कला विकास मंडल"की स्थापना की गई जो लगभग तीन वर्ष तक चला और विभिन्न प्रस्तुतियां हुई।
सत्तर के बाद का दशक पृथक् छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण की अकुलाहट का था। राजनीतिक उथल-पुथल का दौर भी था ये समय। सन् 1967 में दाऊजी के ससुर और लोकप्रिय नेता श्री खूबचंद बघेल ने "छत्तीसगढ़ भातृ संघ" का गठन किया और पृथक् राज्य निर्माण के संघर्ष को गति प्रदान किया।कला के माध्यम से लोगों को जगाने का दायित्व उन्होंने दाऊजी को सौंपा।
दाऊ रामचंद्र देशमुख छत्तीसगढ़ और छत्तीसगढ़ी की श्रेष्ठता को स्थापित करना चाहते थे।वे चाहते थे कि छत्तीसगढ़ी को महज आंचलिक भाषा समझकर उसका तिरस्कार ना हो। छत्तीसगढ़ की लोककला को सम्मान मिले।नाचा में हास्य के नाम पर फूहडता का समावेश होने लगा था।आम जन जीवन की व्यथा कथा को वे मंच पर पूरी शिद्दत के साथ प्रस्तुत करने को आतुर थे।दाऊजी अध्ययनशील व्यक्ति थे।बताया जाता है कि उनके पास लगभग 15000 से अधिक पुस्तकों का संग्रह था।वे छत्तीसगढ़ी गीत के नाम पर द्विअर्थी गीतों को नहीं परोसना चाहते थे इसलिए चुन-चुनकर छत्तीसगढ़ के साहित्य जगत के साहित्यिक रचनाओं को चंदैंनी गोंदा में प्रस्तुति के लिए चुना गया।दाऊजी की इस परंपरा का निर्वहन बाद में खुमान साव जी ने भी किया।उनका कहना था कि नारी के गाल,बाल और शारीरिक अंगों का वर्णन करना ही चलन बन गया है आजकल के रचनाकारों में।वे इसके बिलकुल विरोधी थे।उनका कहना था कि गीतों में छत्तीसगढ़ और छत्तीसगढ़ी संस्कृति की झलक मिलनी चाहिए।
"चंदैनी-गोंदा" में साहित्य स्थान पाता था।तभी तो पं.रविशंकर शुक्ल,पं.द्वारिका प्रसाद तिवारी"विप्र",संत पवन दीवान,मुकुंद कौशल,लक्ष्मण मस्तूरिया,भगवती सेन कोदूराम दलित जी के गीत चंदैनी गोंदा की शोभा बने और जन-जन में लोकप्रिय हुए। इसमें सर्वाधिक गीत लक्ष्मण मस्तुरिया के थे।
खुमान लाल साव जी चंदैनी गोंदा में आने से पहले अपने मौसेरे भाई और छत्तीसगढ़ी नाचा के प्रवर्तक दाऊ मंदराजी के रवेली साज के हारमोनियम वादक थे।कभी-कभी महसूस होता है कि दाऊ रामचंद्र देशमुख,खुमान साव और लक्ष्मण मस्तुरिया का अगर मेल ना हो पाता तो छत्तीसगढ़ इस कालजयी प्रस्तुति से वंचित हो जाता।
"चंदैनी-गोंदा"ने छत्तीसगढ़ी भाषा और छत्तीसगढ़ी रचनाकारों को प्रतिष्ठित किया।लगभग 99 कार्यक्रम की प्रस्तुति के बाद दाऊजी ने "चंदैनी-गोंदा"के संचालन का भार आदरणीय खुमान साव जी को सौंप दिया, जिन्हें वे ताउम्र संचालित करते रहे। छत्तीसगढ़ पाठ्य पुस्तक निगम द्वारा छत्तीसगढ़ के विशिष्ट व्यक्तियों के ऊपर चित्र कथा की किताबें बच्चों के पढ़ने के लिए प्रकाशित किया गया है उसमें एक दाऊ रामचंद्र देशमुख के ऊपर भी आधारित है। उसमें बताया गया है कि दाऊजी असाधारण चिंतक, वैज्ञानिक पद्धति से कृषि करने वाले कृषक, आयुर्वेद के अच्छे जानकार और कला मर्मज्ञ थे।लकवा की दवाई के लिए दाऊजी का नाम और बघेरा ग्राम प्रसिद्ध था।उनकी जीवनसंगिनी "चंदैनी-गोंदा"के कलाकारों को मातृतुल्य स्नेह दिया करती थी।
"चंदैनी गोंदा"एक ऐसा लोक सांस्कृतिक संस्था थी जिसे लोकसांस्कृतिक कलामंच का वट वृक्ष कहा जाय तो अतिश्योक्ति नहीं होनी चाहिए।अभी वर्तमान में छत्तीसगढ़ के जो प्रसिद्ध लोककला मंच चल रहे हैं उनमें से अधिकांश के संचालक आदरणीय खुमानजी के शिष्य-शिष्याएं हैं।कविता वासनिक,अनुराग ठाकुर,दुष्यंत हरमुख,केदार यादव,लक्ष्मण मस्तूरिहा,महादेव हिरवानी जैसे अनेक नगीने इसी मंच की देन है।
अभी पिछले दिनों ही इस कलामंच के विशिष्ट कलाकार शिवकुमार'दीपक'जी को राज्य के प्रतिष्ठित अलंकरण "दाऊ मंदरा जी" सम्मान से अलंकृत किया गया है।दुखद बात है कि इस मंच के दो प्रमुख आधार स्तंभ श्री लक्ष्मण मस्तुरिया सन् 2018 में और खुमान लाल साव जी पिछले वर्ष सन् 2019 में हमसे बिछड़ गए।
दाऊजी रामचंद्र देशमुख के"चंदैनी-गोंदा" सफर इस वर्ष आधी सदी को पूरा कर रहा है। प्रथम प्रस्तुति के बाद आज इस संस्था को पूरे 50 साल पूरे हो गए हैं।किसी भी लोक सांस्कृतिक संस्था का इतना लंबा सफर शायद ही कहीं और मिलेगा।"चंदैनी-गोंदा"के ऊपर कार्यक्रम के सर्वप्रथम उद्घोषक और दाऊ जी के भतीजे प्रोफेसर सुरेश देशमुख जी की किताब आने वाली है।जिसका कलाप्रेमियों को बेसब्री से इंतजार रहेगा।दाऊ रामचंद्र देशमुख जी के दौर वाले चंदैनी गोंदा को देखने का अवसर तो नहीं मिला पर मैं खुमान बबा के दौर के "चंदैनी गोंदा"को देखना अपनी किस्मत समझता हूं।"चंदैनी-गोंदा"के सभी ब्रम्हलीन और वर्तमान कला साधकों को नमन करते हुए इस अद्भुत लोकसांस्कृतिक मंच के 50 साल पूरे होने की समूचे छत्तीसगढ़ वासियों को बधाई।
एक बात और ये सुखद संयोग है कि आज बतौर ब्लागर ये मेरा 50 वां पोस्ट है। मैंने भी ब्लाग लेखन का अर्द्धशतक पूर्ण कर लिया है।मेरे एक यूट्यूबर मित्र दिलीप भाई ने बताया है कि कल यानि 8 नवंबर को दुर्ग में"चंदैनी-गोंदा"के पचास साल पूरे होने पर कार्यक्रम का आयोजन किया गया है।
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