मंगलवार, 3 नवंबर 2020

मोर भुजा में लाखन लोग पलै,मैं घर हारे जगजीता अंव


 लक्ष्मण मस्तूरिया छत्तीसगढ़ का जाना-पहचाना नाम है।जो लोग उनको चेहरे से नहीं पहचानते वे उन्हें उनके गाए गीतों और कविता के माध्यम से पहचानते हैं। आकाशवाणी से प्रसारित गीतों से वे छत्तीसगढ़ के गांव गांव में लोकप्रिय हो गए। संभवतः उनके जैसी लोकप्रियता किसी और गायक कवि को नहीं मिला है।

बिलासपुर के मस्तूरी में जन्म लेकर रायपुर आने तक का उनका सफर बहुत संघर्षपूर्ण रहा है।उनके समकालीन साहित्यकार रवि श्रीवास्तव जी बताते हैं कि लक्ष्मण मस्तूरिहा ने राजिम में पवन दीवान और कृष्णारंजन जी का सान्निध्य प्राप्त किया था। उन्होंने राजिम में बहुत समय बिताया था और नवापारा में जाकर टेलरिंग का काम भी किया करते थे।इस दौरान उनका काव्य सृजन चलता रहा और वे आकाशवाणी से प्रसारित होने लगे थे।

आकाशवाणी से प्रसारित किसी गीत को सुनकर बघेरा वाले दाऊ रामचंद्र देशमुख उनकी आवाज और गीत से इतने प्रभावित हुए कि वे उनको अपनी लोक सांस्कृतिक प्रस्तुति"चंदैनी-गोंदा" में काम करने के लिए मनाने के लिए राजिम आ गए।

"चंदैनी-गोंदा" से जुड़ने के बाद उनके द्वारा लिखित और गाए गीतों को अपार ख्याति मिली।"चंदैनी गोंदा" के अधिकांश गीत उनकी लेखनी का ही सृजन है,जो आदरणीय खुमान  साव जी का संगीत पाकर कालजयी बन गये।कविता हिरकने,अनुराग ठाकुर,साधना यादव,महादेव हिरवानी जैसे अनेक कलाकारों को उनके गीतों से प्रसिद्धि मिली।मस्तूरिया जी के लिखे गीतों की फेहरिस्त बहुत लंबी है जिनमें से धरती मैय्या जय होवय तोर,मन डोले रे माघ फागुनवा,वा रे मोर पडकी मैना,मोर संग चलव रे,आओ मन भजो गणपति महाराज,बखरी के तुमानार,तोर खोपा मा गजरा,पता ले जा गाडीवाला,चौरा मा गोंदा,धनी बिना जग लागे सुन्ना,मंगनी मा मांगे,पुन्नी के चंदा,भारत माता के रतन बेटा,नाच नचनी झूमा झूम के,मोर खेती खार रूनझुन जैसे गीत प्रमुख हैं।आकाशवाणी श्रोताओं के बीच लक्ष्मण मस्तुरिया जी के गीतों की मांग आज भी जस की तस बनी हुई है। लक्ष्मण मस्तूरिया जी ने पं सुंदरलाल शर्मा लिखित"छत्तीसगढ़ी दानलीला" को भी श्रीमती छाया चंद्राकर और सुश्री तीजन पटेल के सहस्वर के साथ अपनी आवाज दिया है।उनकी कृति मैं छत्तीसगढ़ के माटी अंव को खुमान साव जी के मोहक संगीत के संग श्रीमती कविता वासनिक, महादेव हिरवानी और स्वयं मस्तूरिहा जी ने स्वर दिया है।ये सब यूट्यूब पर उपलब्ध है और इसका संगीत तथा गायन मंत्रमुग्ध कर देता है।

सत्तर के बाद के दशकों में जब पृथक छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण की मांग जोर पकड़ने लगी तो आम जनमानस को इस आंदोलन से जोड़ने का काम लक्ष्मण मस्तूरिहा के गीतों ने किया। अभावग्रस्त, शोषित,सहज और सरल छत्तीसगढ़ के आम मजदूर किसान के मनोभावों को मस्तूरिहा जी के गीतों ने आवाज दिया। इसलिए उनको जनकवि भी कहा जाता है।

साल 1974 में छत्तीसगढ़ के मशहूर शायर मुकीम भारती के संग मस्तुरिया जी को गणतंत्र दिवस के अवसर पर दिल्ली के लालकिले से काव्य पाठ का मौका मिला जहां उन्होंने अपनी कविता से छत्तीसगढ़ को गौरवान्वित किया।उन्होंने बहुत सारे गीत लिखे हैं और उनकी पुस्तक रूप में प्रकाशित-प्रसारित कृतियों में हमूं बेटा भुईंया के,गंवई-गंगा,चंदैनी-गोंदा, छत्तीसगढ़ के माटी,सोनाखान के आगी,घुनही बंसुरिया और मोर संग चलव प्रमुख है।

मस्तुरिया जी की प्रसिद्ध कविता मैं छत्तीसगढ़ के माटी अंव में आप संपूर्ण छत्तीसगढ़ का दर्शन सहज रूप से कर सकते हैं।इसका आडियो संस्करण बन चुका है और अच्छी बात ये है कि उनकी ये मशहूर रचना छत्तीसगढ़  में"छंद के छ" कक्षा के संस्थापक और साहित्यकार जनकवि स्व.श्री कोदूराम'दलित' जी के सुपुत्र श्री अरूण निगम जी के यूट्यूब चैनल पर उपलब्ध है।मस्तूरिहा जी की रचना को आदरणीय खुमान साव जी के संगीत में पिरोकर सर्वसुलभ बनाने में निगम जी का प्रयास स्तुत्य है।

 मस्तूरिहा जी छत्तीसगढ़ के प्रसिद्ध गायक,गीतकार और कवि हैं। वर्ष 1988 से राजकुमार कालेज में प्रोफेसर के रूप में लगातार कार्यरत रहे। सेवानिवृत्त होने के बाद उन्होंने"लोकसुर"नामक पत्रिका का संपादन भी किया था।पत्रिका उच्च क्वालिटी की थी पर किन्हीं कारणवश अधिक अंक नहीं निकल पाए।वर्ष 2014 में राजनीति में किस्मत आजमाने निकले और नवगठित आम आदमी(आप) पार्टी के टिकट पर उन्होंने महासमुंद लोकसभा सीट से सांसद पद का चुनाव लडा।उस समय महासमुंद सीट पर पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी सहित 11 चंदूलाल साहू नाम के प्रत्याशी चुनाव मैदान में थे,जिसके कारण यह सीट काफी चर्चित रहा। यहां तक कि अमिताभ बच्चन द्वारा प्रस्तुत मशहूर क्वीज शो इस केबीसी में इस पर प्रश्न भी पूछा गया था।इस चुनाव में उनको आशातीत सफलता नहीं मिली।

आडियो विडियो के दौर में उनके गीतों का एल्बम भी आया और वे पहले की तरह ही सराहे गए।राज्य गठन के दौरान आए सुपरहिट छत्तीसगढ़ी फिल्म"मोर छंईहा भुंईया" में लिखे उनके गीत बहुत लोकप्रिय हुए।इसके अलावा अन्य फिल्मों में भी गीत लेखन किया। उनके प्रसिद्ध गीत मोर संग चलव को बालीवुड के गायक सुरेश वाडेकर जी ने स्वर दिया था।

उनको अनेकों पुरस्कार और सम्मान प्राप्त हो चुके हैं।कवि सम्मेलन के सितारा कवि थे। लोग उनकी रचना सुनने के लिए प्रतीक्षा करते थे।उनका गीत और कविता लेखन चलता ही रहता यदि अकस्मात 3 नवंबर 2018 को उनका देहावसान ना होता। छत्तीसगढ़ महतारी का ये लाडला बेटा उसी की गोद में चिरनिद्रा में लीन हो गया।उनके निधन पश्चात उनके नाम पर राज्य पुरस्कार स्थापित करने की मांग साहित्यकार बिरादरी की ओर से उठ रही है।जिन लोगों को राजनीतिक कलाकारी नहीं आती प्राय:वे उपेक्षित किए जाते हैं। दुर्भाग्य से अपेक्षाकृत कम योग्य लोगों को प्रतिष्ठित पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है पर मस्तूरिहा जी को पद्म पुरस्कार ना मिल पाना खलता है। उनके लेखनी को प्रणाम करते हुए मस्तूरिहा जी को नमन जो पीड़ितों और शोषितों की आवाज बनकर न्याय प्राप्त करने की आवाज बुलंद करते थे।माटी सोनाखान के काव्यकृति की पंक्तियां देखिए....

सरन परे भिखमंगा आइन

छिन भर म होगिन धनवान

तपसी आइन इहि माटी म

मया करिन बनगिन भगवान


इहि माटी के गुन आगर हे

जेखर गली गली परमान

सतवादी हें लांघन भूखन

मंजा करत बइठे बइमान


जेहि पतरी म खाइन बइरी

उहि पतरी म छेद करिन

जेहि म जीव लुकाइन

उहि घर मुडि़यामेंट करिन


राजा अउ परजा के मंझ म

बड चतुरा बयपारी यार

नफा कमावै मजा उडावै

काम करै बइमानी सार

1 टिप्पणी:

अरुण कुमार निगम (mitanigoth2.blogspot.com) ने कहा…

बहुत विस्तार सहित श्री लक्ष्मण मस्तुरिया जी पर आलेख है। ऐसी ही जानकारियाँ नयी पीढ़ी के लिए धरोहर होती हैं। शुभकामनाएँ।

दिन चारी मइहरवा में....सुरता स्व.मिथलेश सर के

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