रविवार, 20 सितंबर 2020

आनलाईन पढाई

 मार्च के महीने से स्कूल कालेज बंद हैं।ऐन परीक्षा के समय कलमुही कोरोना आई और बच्चों के पढ़ाई पर पानी फेर गई। खुशकिस्मती से प्राय:प्राय: बोर्ड एग्जाम का समापन हो गया था।कुछेक परीक्षाएं जो बाकी रह गई थी उनको निरस्त करना पड़ा।लोकल परीक्षाओं को स्थगित करते हुए सीधे कक्षोन्नति दे दी गई।इस प्रकार से सत्र का समापन हुआ।

 इसके बाद बच्चों को अध्ययन से जोड़े रखने के लिए अनेक जतन किए जाने लगे।चूंकि आज तकनीक का जमाना है इसलिए अध्ययन अध्यापन के कार्यक्रम को सुचारू रूप से जारी रखने के लिए आधुनिक तकनीक का सहारा लेते हुए आनलाईन कक्षा आयोजित करने की शुरुआत हुई। जिसमें लैपटाप, कंम्प्यूटर और स्मार्ट फोन जैसे माध्यमों से पढ़ाई-लिखाई जारी रखने की कवायद शुरू हुई। बच्चों और शिक्षकों का मोबाइल नंबर आदि का संग्रहण किया गया और उनको आनलाइन गतिविधि से जोड़ने का प्रयास प्रारंभ हुआ। शिक्षकों को सर्वप्रथम जूम नामक विडियो कान्फ्रेसिंग एप डाउनलोड करने के लिए आदेशित किया गया। धड़ाधड़ आदेश की तामीली कराई गई।ये प्रक्रिया चल ही रही थी कि अखबारों में जूम एप के ख़तरें सुर्खियां बनने लगे।इस एप के बारे में बताया गया कि ये यूजर की निजी जानकारियां चुराता है।सुरक्षा एजेंसियों की ओर से भी इस एप के इस्तेमाल पर आपत्ति जताई गई।जिस तेजी से एप डाउनलोड करवाया गया उसी तेजी से तत्काल प्रभाव से इस एप का उपयोग नहीं करने का आदेश प्रसारित हुआ।

 फिर एक नये एप को डाउनलोड करवाया गया और राज्य स्तरीय आनलाइन क्लास की शुरुआत की गई। छत्तीसगढ़ में इस आनलाईन अध्यापन कार्यक्रम को नाम दिया गया-"पढाई तुंहर द्वार योजना"।शहरी बसाहट के आसपास के क्षेत्रों में इसके उत्साहजनक परिणाम भी मिले लेकिन बहुसंख्यक छात्र वाले दूरस्थ अंचलों में इसका लाभ अपेक्षानुरूप बच्चों को नहीं मिल पाया।जिसके बहुत से कारण है।

सबसे बड़ा कारण है ग्रामीण अंचल के पालकों के पास स्मार्टफोन जैसे साधन की अनुपलब्धता। छत्तीसगढ़ के कुछ क्षेत्रों में अनेक लोग वनोपज संग्रहण करके और थोड़ी बहुत खेती-बाड़ी से जीवन यापन करते हैं।उनके लिए सात आठ हजार के महंगे फोन खरीद पाना अभी भी मुश्किल काम है। हालांकि पूर्ववर्ती सरकार द्वारा स्मार्ट फोन का वितरण किया गया था , लेकिन उसकी गुणवत्ता कैसी थी और उनका क्या हश्र हुआ ये उपयोगकर्ता ही बता पायेंगे।बहुत से क्षेत्रों में तो सरकार बदल जाने के कारण इस योजना का श्रीगणेश ही नहीं हो पाया।खैर,अगर कुछ लोग अपना पेट काटकर अपने बच्चों के हित के लिए ये स्मार्टफोन खरीद भी लें तो उनके डेटा का खर्च कौन उठायेगा??

इन सब परेशानी को दूर कर भी लें तो सबसे बड़ी समस्या है नेटवर्क की।आज भी बहुतेरे स्थानों पर मोबाइल कनेक्टिविटी नहीं है।अब ऐसे में कोई पालक क्या करेगा? आनलाईन क्लास में जुडने का शौक रखने वाले बच्चे चाहकर भी इसी कारण से इस आनलाइन क्लास में नहीं जुड़ पाते हैं।खराब नेटवर्क के कारण आवाज और विडियो में तकनीकी समस्या आना आम बात होती है।

 इस तरह से पढना मेरे विचार से ज्यादा प्रभावी नहीं हो पाता।ये आनलाईन पढ़ाई का कांसेप्ट दसवीं कक्षा से उस पार के बच्चों के लिए अत्यधिक उपयोगी सिद्ध हो सकता है लेकिन छोटे-छोटे बच्चों के लिए विशेष प्रभावकारी नहीं है।बालमन चंचल होता है।पल पल में उनका ध्यान भटकता है।सम्मुख बैठा शिक्षक ही बच्चों को प्रभावकारी शिक्षा दे सकता है।क्योंकि शिक्षक बच्चों की रूचि अनुरूप कक्षा संचालित करता है जिसमें बच्चों को वो पढ़ाई की बोझिलता से बचने के लिए चुटकुले, कहानियां,गीत और कविता आदि का सहारा लेता है। आनलाइन क्लास में ये सब नहीं हो पाता। इसलिए बच्चे थोड़ी देर में ही आनलाइन क्लास से गायब हो जाते हैं।

आनलाइन क्लास लेनेवाले कुछ शिक्षकों की मेहनत को भी सलाम करता हूं,जो समर्पित भाव से लगे हुए हैं और बच्चों का ज्ञानवर्धन के प्रयास में लीन हैं।निजी स्कूल भी आनलाइन क्लास चला रहे हैं लेकिन फीस को लेकर स्कूल प्रबंधन समिति के साथ खटपट की खबरें अभी समाचार पत्रों में स्थान पा रहे हैं।

 कोरोना के बढ़ते संक्रमण को देखते हुए नहीं लगता कि अभी स्कूल खुल पायेंगे। इसलिए पालकों को ही थोड़ा परिश्रम अपने बच्चों की पढ़ाई जारी रखने के लिए करना होगा।मेरे विचार से आनलाइन क्लास के स्थान पर दूरदर्शन के माध्यम से बच्चों को पढ़ाने का प्रयास ज्यादा असरदार होगा।टीवी की पहुंच आज घर घर में है। डीटीएच में प्राय:प्राय:सभी राज्यों का चैनल है। क्षेत्रीय चैनलों में बच्चों के अध्ययन अनुरूप सामग्री तैयार करवाकर प्रसारण करवाया जा सकता है।

एक उपाय जो रायपुर के मेयर ने सुझाया था वो भी ठीक हैं।उनका सुझाव था कि पूर्ववर्ती सरकार द्वारा जो मोबाइल खरीदी गई है,और वितरण न हो पाने के कारण डंप पड़ी है उनको बच्चों के पढाई अनुरूप साफ्टवेयर डलवाकर पालकों को नि: शुल्क वितरित कर दिया जाये।

आनलाइन क्लास में साधन की उपलब्धता और अनुपलब्धता का बच्चों के कोमल मन पर दुष्प्रभाव ना पड़े इसके लिए कोर्ट ने सरकारी और निजी शिक्षण संस्थानों को बच्चों के आनलाइन शिक्षण हेतु साधन की समुचित व्यवस्था का भी आदेश दिया है।इस पर भी ध्यान दिये जाने की जरूरत है....

1 टिप्पणी:

Sanjay Paleshwar ने कहा…

बात में तो दम है गुरूजी

दिन चारी मइहरवा में....सुरता स्व.मिथलेश सर के

  लोकगीतों की अपनी एक अलग मिठास होती है।बिना संगीत के भी लोकगीत मन मोह लेता है,और परंपरागत वाद्य यंत्रों की संगत हो जाए, फिर क्या कहने!! आज ...